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छह में से एक बच्चा व चार में से एक बच्ची होते हैं यौन शोषण के शिकार

इस परियोजना का मकसद अभिभावक, शिक्षकों और बच्चों को अच्छे स्पर्श और बुरे स्पर्श में भेद करने की जरूरत पर जागरुक बनाने की जानकारी देना है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 07 Dec 2017 02:54 PM (IST)Updated: Thu, 07 Dec 2017 02:54 PM (IST)
छह में से एक बच्चा व चार में से एक बच्ची होते हैं यौन शोषण के शिकार
छह में से एक बच्चा व चार में से एक बच्ची होते हैं यौन शोषण के शिकार

कोलकाता, [जागरण संवाददाता]। महानगर के दो नामी प्राइवेट स्कूलों में यौन उत्पीड़न के दो मामलों के मद्देनजर भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) की युवा शाखा यंग इंडियन्स (वाइआइ) के कोलकाता खंड ने अपने 'प्रोजेक्ट मासूम' के जरिए राज्य में बाल यौन शोषण के प्रति जागरुकता लाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं।

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इस देशव्यापी परियोजना और मिशन के जरिए ज्यादा से ज्यादा बच्चों तक पहुंचने का प्रयास किया जा रहा है। आमिर खान के टीवी कार्यक्रम सत्यमेव जयते से प्रेरित होकर वर्ष 2015 में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा शुरू, सीआइआइ की यह परियोजना बच्चों को 'अच्छे स्पर्श' और 'बुरे स्पर्श' के बारे में संवेदनशील बनाने और सुरक्षा और बचाव के तरीके बताती है। यंग इंडिया-कोलकाता खंड की प्रमुख अलिफिया कलकत्तावाला ने कहा कि वाइआइ कोलकाता पहले से ही राज्य भर के स्कूलों में जागरुकता सत्र आयोजित करने में लगा हुआ है। साथ ही लंदन पेरिस मल्टीप्लेक्स के सहयोग से वाइआइ मासूम सप्ताह (14 नवंबर से 20 नवंबर) के दौरान हम अपनी कलाकृतियों को प्रदर्शित कर पाए और 78,000 लोगों को संवेदनशील बना सके। उन्होंने कहा कि इस परियोजना का मकसद अभिभावक, शिक्षकों और बच्चों को अच्छे स्पर्श और बुरे स्पर्श में भेद करने की जरूरत पर जागरुक बनाने और उस हिसाब से कार्य करने की जानकारी देना है।

वहीं, कोलकाता में इस परियोजना का नेतृत्व कर रहे रचित मलिक ने बताया कि यंग इंडिया के परामर्शदाता बच्चों के अनुकूल तरीकों का इस्तेमाल करते हैं जैसे मासूमों को समझाने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली एनिमेटेड फिल्म कोमल को प्रदर्शित करने का इंतजाम करना। सीआइआइ के आंकड़े खुलासा करते हैं कि छह में से एक लड़का और चार में से एक लड़की 18 वर्ष का होने से पहले किसी न किसी तरह के यौन शोषण का शिकार होते हैं।

आंकड़ों के मुताबिक 89 फीसद मामलों को परिवार के लोग अंजाम देते हैं। लड़कियों (62 फीसद से ज्यादा) के मुकाबले लड़कों (72 फीसद से ज्यादा) को बाल शोषण का ज्यादा सामना करना पड़ता है। 70 फीसद से अधिक मामलों की कोई रिपोर्ट नहीं दर्ज कराई जाती और यहां तक कि परिवार के सदस्यों और परिजन के साथ भी नहीं साझा किए जाते।


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