केरल, कर्नाटक के बाद कोलकाता में घातक 'निपाह' की दस्तक, जवान की मौत
केरल के इस सैनिक को वायरल बुखार होने की वजह से कोलकाता लाकर आर्मी के कमांड अस्पताल में भर्ती कराया गया था। केरल में ही निपाह वायरस की पुष्टि हुई थी।
कोलकाता, जागरण संवाददाता। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में निपाह वायरस के संभावित संक्रमण से पहली मौत का मामला प्रकाश में आया है। अलीपुर के कमांड अस्पताल में भर्ती एक सैनिक की मौत रविवार को हुई है। सोमवार को उनका अंतिम संस्कार किया गया है और बुधवार को इस बारे में सेना की ओर से आधिकारिक जानकारी दी गई है। मृत सैनिक का नाम सीनू प्रसाद है। मूल रूप से केरल के रहने वाले सीनू सेना के पूर्वी क्षेत्रीय मुख्यालय फोर्ट विलियम में पोस्टेड थे।
सैन्य सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि केरल स्थित गांव में रहने के दौरान ही उन्हें वायरल बुखार हो गया था। संभावित निपाह संक्रमण की वजह से बेहतर इलाज के लिए उन्हें कोलकाता लाकर आर्मी के कमांड अस्पताल में गत 20 अप्रैल को भर्ती कराया गया था। केरल में ही जांच के दौरान निपाह वायरस के संभावित संक्रमण की पुष्टि हुई थी। उसके बाद बेहतर इलाज के लिए उन्हें कोलकाता लाया गया था। कमांड अस्पताल में लगातार इलाज चल रहा था। कई तरह के जांच भी हुए थे। इस बीच, रविवार को सीनू ने दम तोड़ दिया। एक सैन्य अधिकारी ने बताया कि मृत सैनिक के शरीर से नमूने संग्रह किए गए हैं। इन्हें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में जांच के लिए भेजा गया है, ताकि निपाह से मौत की पुष्टि हो सके।
वायरल बुखार से संबंधित इलाज के लिए कोलकाता के एक मात्र सरकारी बेलियाघाटा आइडी अस्पताल में अभी तक तीन लोग संभावित निपाह संक्रमण से पीड़ित होकर इलाजरत हैं। इनमें से दो कर्नाटक में काम करने गए थे, जो निपाह की चपेट में आ गए थे। इन्हें अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में रखकर इलाज किया जा रहा है। नेशनल इंस्टीट्यूट अॉफ वायरोलॉजी पुणे में है। यह देश का एक मात्र संस्थान है जहां निपाह वायरस संक्रमण की पुख्ता जांच होती है।
जानें, क्या है निपाह वायरस
निपाह वायरस भारत में बड़ी तेजी से पांव पसार रहा है। केरल से शुरू होने के बाद अब कर्नाटक, तेलंगाना में भी इसके कुछ मामले सामने आ चुके हैं। इतना ही नहीं केरल में इस खतरनाक वायरस से अब तक 13 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि करीब 200 संदिग्ध मरीजों का इलाज चल रहा है। इलाज करते हुए चपेट में आए पांच चिकित्साकर्मियों को बेहतर इलाज के लिए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भेजा गया है। केरल के कुछ जिलों में इसकी चपेट में आने के बाद यहां आने वाले पयर्टकों में भी इसको लेकर डर व्याप्त है। इसका असर साफतौर पर यहां ट्यूरिज्म इंडस्ट्री पर भी पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है।
चौंकाने वाला खुलासा
इस खतरनाक वायरस को लेकर एक और चौंकाने वाला खुलासा ये हुआ है कि इस वायरस के फैलने का स्रोत चमगादड़ नहीं है, जैसा कि पहले कहा जा रहा था। फिलहाल विशेषज्ञ भी इसकी जानकारी जुटा रहे हैं कि यदि इसका स्रोत चमगादड़ नहीं है तो फिर यह किस वजह से इतनी तेजी से विभिन्न राज्यों में फैल रहा है। वहीं अब अब फल खाने वाले चमगादड़ का रक्त नमूना परीक्षण के लिए भोपाल स्थित प्रयोगशाला में भेजा गया है। पुणे प्रयोगशाला के विशेषज्ञों की टीम भी कोझिकोड पहुंच गई है, वह विभिन्न तरह के चमगादड़ों के रक्त नमूने ले रही है। इस वायरस से होने वाली बीमारी के लक्षणों में बुखार, सिरदर्द और उल्टियां शामिल है। कुछ में मिर्गी के
नहीं मिला चमगादड़ से फैलने का सुबूत
केंद्रीय मेडिकल टीम ने विभिन्न जगहों से कुल 21 नमूने एकत्रित किए थे जिसमें से सात चमगादड़, दो सूअर, एक गोवंश और एक बकरी या भेड़ से था। इन नमूनों को भोपाल स्थित राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संस्थान और पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान भेजा गया था। अधिकारी ने कहा, इन नमूनों में उन चमगादड़ों के नमूने भी शामिल थे जो कि केरल में पेराम्बरा के उस घर के कुएं में मिले थे जहां शुरूआती मौत की सूचना मिली थी। इन नमूनों में निपाह विषाणु नहीं पाए गए हैं। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में मृत मिले चमगादड़ों के नमूने पुणे भेजे गए थे, उनमें भी यह विषाणु नहीं मिला है। इसके साथ ही हैदराबाद के संदिग्ध मामलों के दो नमूनों में भी यह विषाणु नहीं मिले हैं।
राज्यों में हाईअलर्ट
इसके अलावा बिहार, हरियाणा और सिक्किम में इस खतरनाक वायरस को हाईअलर्ट जारी किया गया। इसके साथ ही लोगों को इसके प्रति जागरुक करने के अलावा अस्पतालों, होटलों आदि में विशेष निगरानी रखी जा रही है। जिन राज्यों में इस वायरस का प्रकोप फैला हुआ है वहां से आने वाले लोगों पर निगाह रखी जा रही है। इसको लेकर राज्य सरकारों ने अपने यहां पर एडवाइजरी भी जारी की है। केरल सरकार ने प यर्टकों को कोझिकोड, मलप्पुरम, वायनाड और कन्नूर जिलों की यात्रा न करने की सलाह दी है। एडवाइजरी के अनुसार फिलहाल इन जगहों पर निपाह वायरस फैलने का खतरा सबसे ज्यादा बना हुआ है। इस देखते हुए आसपास के राज्यों समेत खासतौर पर पर्यटकों को सलाह दी गई है।
क्या कहते हैं जानकार
वैज्ञानिकों व चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है यदि बायोसिक्योरिटी को सख्त कर दिया जाए, तो वायरस को आने से रोका जा सकता है। गुरू अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी के डीन कॉलेज ऑफ वेटरनरी डॉ. प्रकाश बराड़ के अनुसार बायोसिक्योरिटी का मतलब बायोलॉजिकल मटीरियल को फैलने से रोकना होता है। निपाह वायरस भी बायोलॉजिकल मटीरियल में आता है। यदि प्रभावित क्षेत्र के लोग बाहर न जाएं या बाहर के लोग प्रभावित क्षेत्र में न जाए, प्रभावित क्षेत्र किसी भी चीज को फिर चाहे वह फल, सब्जियां व अन्य तरह के खाद्य पदार्थ को दूसरी जगहों पर जाने से रोक दिया जाए तो वायरस को फैलने से रोका जा सकता है। उनका कहना है कि यह वायरस किसी भी चीज के जरिए मूवमेंट कर सकता है। फिलहाल लोग प्रभावित राज्य या जगह के आसपास में यात्रा करने से बचना चाहिए। गर्मियों के दिनों में बहुत से लोग छुट्टियां बिताने के लिए दक्षिण भारत व समुद्री तटों की यात्रा जाते हैं। इसके अलावा प्रभावित राज्यों से आने वाले फलों के सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि खजूर व नारियल के पेड़ के पास चमगादड़ का आना-जाना रहता है। ऐसे में लोग कटे-फटे खजूर खाने से भी बचना चाहिए।
निपाह वायरस के लक्षण
निपाह वायरस से संक्रमित मनुश्य को आमतौर पर बुखार, सिरदर्द, उनींदापन, मानसिक भ्रम, कोमा, विचलन होता है। निपाह वायरस से प्रभावित लोगों को सांस लेने की दिक्कत होती है और साथ में जलन महसूस होती है। वक्त पर इलाज नहीं मिलने पर मौत भी सकती है। इंसानों में निपाह वायरस एन्सेफलाइटिस से जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से ब्रेन में सूजन आ जाती है। डॉक्टरों के मुताबिक कुछ मामलों में 24-28 घंटे के अंदर लक्षण बढ़ने पर मरीज कोमा में भी चला जाता है।
पहले भी ले चुका है लोगों की जान निपाह
भारत में निपाह वायरस का हमला पहली बार नहीं है। देश में निपाह वायरस का का पहला मामला वर्ष 2001 के जनवरी और फरवरी माह में पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में दर्ज किया गया है। इस दौरान 66 लोग निपाह वायरस से संक्रमित हुए थे। इनमें से उचित इलाज न मिलने की वजह से 45 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं, निपाह वायरस का दूसरा हमला वर्ष 2007 में पश्चिम बंगाल के नदिया में दर्ज किया गया। उस वक्त पांच मामले दर्ज किए गए थे, इसमें से पांचों की मौत हो गई थी।
कब-कब दर्ज किए गए निपाह के मामले
1998 में पहली बार मलेशिया के कांपुंग सुंगई निपाह में इसके मामले सामने आए थे। इसके एक वर्ष बाद वर्ष 1999 में सिंगापुर में निपाह वायरस के मामले दर्ज किए गए। हालांकि वायरस के उत्पत्ति स्थल कांपुंग सुंगई निपाह के आधार पर इसका नाम निपाह वायरस रखा गया। इसके बाद वर्ष 2004 में निपाह वायरस का मामला बांग्लादेश में दर्ज किया गया। इस वायरस का पहला मामला मलेशिया के पालतू सुअरों में पाया गया। इसके बाद वायरस अन्य पालतू जानवरों बिल्ली, बकरी, कुत्ता, घोड़ों और भेडों में फैलता चला गया। इसके बाद निपाह वायरस का हमला मनुष्यों पर हुआ।
यह सावधानी बरतें
- स्वास्थ्य विभाग के निदेशक डॉ. बलदेव ठाकुर के अनुसार चमगादड़ों की लार या पेशाब के संपर्क में न आने से बचें।
- ऐसी जगहों पर भी न जाएं जहां पर चमगादड़ों का आना जाना लगा रहता हो।
-खासकर पेड़ से गिरे फलों को खाने से बचें।
-फलों को पानी में धोकर खाएं।
-संक्रमित सुअर और इंसानों के संपर्क में न आएं।
-जिन इलाकों में निपाह वायरस फैल गया है वहां न जाएं।
-व्यक्ति और पशुओं के पीने के पानी की टंकियों सहित बर्तनों को ढककर
-बाजार में कटे और खुले फल न खाएं।
-संक्रमित पशु के संपर्क में न आएं। खासकर सुअर के संपर्क में आने से बचें।
-निपाह वायरस के लक्षण पाए जाने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाएं।