kolkata lockdown: कोविड-19 से कोलकाता व गंगा के किनारे बसे जिलों में फंसे लाखों प्रवासी मजदूर
कोरोना वायरस के आतंक के बाद लॉकडाउन की वजह से उन सबकी कमाई ठप हो गई है। अब यह लोग पैसे-पैसे को मोहताज हो गए हैं।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। कोलकाता में बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओडीशा जैसे पड़ोसी राज्यों के मजदूर बड़ी तादाद में रहते हैं। इनमें से कोई एशिया में खाद्यान्नों की सबसे बड़ी मंडी बड़ा बाजार में सिर पर या रिक्शा वैन से सामान ढोने का काम करता है तो कोई हाथ रिक्शा खींचता है। कोरोना वायरस के आतंक के बाद लॉकडाउन की वजह से उन सबकी कमाई ठप हो गई है।
अब यह लोग पैसे-पैसे को मोहताज हो गए हैं। आलम यह है कि इन लोगों को परिवार समेत किसी स्वयंसेवी संस्था या सरकार की ओर से बांटे जाने वाले खाने के पैकेट के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ रही है। वह भी रोज नहीं मिल पाता। ऐसे प्रवासी मजदूर समूहों में एक साथ रहते हैं। यह लोग हर महीने अपने किसी न किसी साथी के हाथ अपने गांव पैसे भेज देते हैं ताकि वहां परिवार की रोजी-रोटी चलती रहे।
अब कमाई बंद होने से यहां इनके सामने खाने-पीने का संकट है तो गांव में रहने वाले परिजनों के सामने भी भूख की समस्या गंभीर होती जा रही है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, कोलकाता में बाहरी राज्यों के प्रवासी मजदूरों की तादाद 3.90 लाख थी अब यह तादाद पांच लाख से ऊपर होने का अनुमान है । इनमें से लगभग 50 फीसदी बिहार के हैं और 28 फीसदी उत्तर प्रदेश, झारखंड औऱ ओडीशा जैसे पड़ोसी राज्यों के।
पोस्ता मर्चेंट्स एसोसिएशन के सचिव विश्वनाथ अग्रवाल ने कहा कि बाजार सीमित समय के लिए खुला है, लेकिन लॉकडाउन के चलते पुलिस के डर से वह लोग अपने घरों से बाहर ही नहीं निकल रहे हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, "बिहार और उत्तर प्रदेश से प्रवासी मजदूरों के कोलकाता आने का जो सिलसिला 19वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ था वह अब भी जस का तस है। ” अर्थशास्त्री अभिरूप सरकार इसकी वजह बताते हैं। वह कहते हैं, "यहां कमाई ज्यादा है और यह शहर दूसरे महानगरों के मुकाबले काफी सस्ता है। ऐसे में मजदूर अधिक से अधिक पैसे बचा कर गांव भेज सकते हैं । इसी आकर्षण की वजह से प्रवासी मजदूरों के लिए सदियों से कोलकाता एक पसंदीदा ठिकाना रहा है ।
”कोरोना की वजह से फैले आतंक और लंबे लॉकडाउन के चलते अब ऐसे लाखों लोग आशा और निराशा के भंवर में फंसे हैं । उनको पता नहीं है कि आखिर ऐसी हालत कब तक बनी रहेगी और हालात में सुधार होने तक उनकी सांसें साथ देंगी या नहीं? बताते चलें कि केंद्र सरकार ने हालांकि राज्य सरकारों से प्रवासी मजदूरों के सामूहिक पलायन पर अंकुश लगाने और ऐसे लोगों की मदद करने को कहा है, लेकिन पेट की आग के आगे भला सरकारी निर्देशों की परवाह कौन करता है। देश के दूसरे शहरों की तरह कोलकाता के सैकड़ों मजदूर भी पैदल या साइकिल से ही बिहार और झारखंड स्थित अपने गांवों के लिए रवाना हो गए हैं, लेकिन अब भी लाखों लोग यहां फंसे लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं।