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जिंदगी जीने का नाम है और ये तब जब जिंदगी में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो

जब जिंदगी में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो, इसी शिद्दत के साथ अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए अभिलाषा पांडेय अथक प्रयास कर रही हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 20 Oct 2018 01:48 PM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 01:48 PM (IST)
जिंदगी जीने का नाम है और ये तब जब जिंदगी में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो
जिंदगी जीने का नाम है और ये तब जब जिंदगी में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो

कोलकाता, जागरण संवाददाता। जिंदगी जीने का नाम है और ये तब जब जिंदगी में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो, इसी शिद्दत के साथ अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए अभिलाषा पांडेय अथक प्रयास कर रही हैं। उत्तर 24 परगना जिले के सोदपुर की रहने वाली अभिलाषा कलकत्ता विश्व विद्यालय से लोकगीत विषय पर शोध कार्य पूरा करने में लगी हुई हैं।

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वह एक ओर जहां गृहस्थी को संभाल रही हैं वहीं दूसरी ओर शोध के लिए दिन-रात कठिन परिश्रम कर रही हैं। वह इस दोहरी भूमिका का बखूबी पालन करते हुए भी सामाजिक कार्यो से भी जुड़ी हुई हैं। अभिलाषा व्यस्त दिनचर्या से वक्त निकालकर माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक के विद्यार्थियों को हिंदू की नि:शुल्क शिक्षा देती हैं। वह बताती हैं कि वह गरीब बच्चों को अपने निजी पुस्तकालय से कई पुस्तकें दान कर चुकी हैं और बच्चों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करती हैं।

एक मध्य वर्गीय परिवार में पली बढ़ी अभिलाषा पांडेय बचपन से ही समाज के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा मन में पाले हुए थी, लेकिन इनकी यह अभिलाषा तब पूर्ण हुई जब विवाह के पश्चात इनके शिक्षक पति का इन्हें काफी सहयोग मिला। उन्होंने लगभग तीन वर्षो तक माध्यमिक के विद्यार्थियों को नि:शुल्क पढ़ाया। विवाह के कुछ वर्ष वाद इनके ससुराल की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई जिसके कारण इन्हें विवश होकर कुछ दिनों तक इन्हें बेलुर अंचल स्थित लालबाबा कालेज में हिंदी विषय का अध्यापन का कार्य भी करना पड़ा।

जीवन के इस उतार-चढ़ाव को झेलते हुए अभिलाषा सदा संघर्ष करती रहीं और इस संघर्ष का फल यह हुआ कि आज वह न केवल हिंदी विषय से पोस्ट ग्रेजुएशन किया बल्कि उनका शोध कार्य भी जल्द पूर्ण होने वाला है।


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