West Bengal Jhulan Goswami News: झूलन गोस्वामी ने क्रिकेट को बनाया 'जेंटलवूमेंस' का भी खेल
अपने हरफनमौला प्रदर्शन से भारत में महिला क्रिकेट को गंभीरता से लेने के लिए कर दिया बाध्य। झूलन ने दो दशक लंबे अंतरराष्ट्रीय करियर के बाद सिर्फ क्रिकेट का मैदान नहीं छोड़ा है बल्कि एक विरासत छोड़ गई हैं। अंतरराष्ट्रीय विकेट ही नहीं चटकाए एक नई परंपरा शुरू की है।
कोलकाता, विशाल श्रेष्ठ। 'अगर मेरी बेटी क्रिकेट खेलती तो मैं उसका करियर झूलन गोस्वामी जैसा चाहता। भारत की पुरुषों की क्रिकेट टीम के सबसे सफल कप्तानों में से एक सौरव गांगुली ने खुद यह बात कही है। सौरव सिर्फ एक विश्व-स्तरीय क्रिकेटर और भारतीय क्रिकेट को संचालित करने वाले दुनिया के सबसे अमीर बोर्ड के अध्यक्ष नहीं हैं, वे एक बेटी के पिता भी हैं। हरेक पिता अपनी बेटी के सुनहरे भविष्य के सपने देखता है। अपनी लाडली को जिंदगी के शीर्ष मुकाम पर देखना चाहता है। अगर सौरव अपनी बेटी साना गांगुली के क्रिकेट खेलने पर उसका भविष्य झूलन जैसा चाहते तो इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि झूलन देश की महिलाओं के लिए क्या मिसाल पेश कर रही हैं।
एक नई परंपरा की शुरुआत
झूलन ने दो दशक लंबे अंतरराष्ट्रीय करियर के बाद सिर्फ क्रिकेट का मैदान नहीं छोड़ा है, बल्कि एक विरासत छोड़ गई हैं। उन्होंने बतौर महिला तेज गेंदबाज सिर्फ दुनिया में सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय विकेट ही नहीं चटकाए हैं, बल्कि एक नई परंपरा शुरू की है। एक ऐसी परंपरा, जिसमें भारत की बेटियां अब क्रिकेट में भी करियर बनाने के सपने देख रही हैं। झूलन ने अपने हरफनमौला प्रदर्शन से सबको देश में महिला क्रिकेट को गंभीरता से लेने के लिए बाध्य कर दिया। उन्होंने साबित कर दिया कि क्रिकेट अब सिर्फ 'जेंटलमेंस गेमÓ नहीं रहा, यह 'जेंटलवूमेंसÓ का भी खेल है।
महिला क्रिकेट के बेहद उपेक्षित दौर में झूलन ने इसे करियर के तौर पर चुना
भारत में यूं तो महिला क्रिकेट की शुरुआत 1976 में ही हो गई थी। भारत की महिला क्रिकेट टीम ने पहला टेस्ट मैच वेस्ट इंडीज के खिलाफ खेला था। उसके दो साल बाद 1978 में महिला क्रिकेट विश्वकप से वनडे क्रिकेट में भी पदार्पण किया लेकिन देश में शुरुआती दशकों में महिला क्रिकेट को गंभीरता से नहीं लिया गया। जहां आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे देशों में महिला क्रिकेट काफी लोकप्रिय हो चुका था, वहीं भारत में इसे पूछने वाला कोई नहीं था। महिला क्रिकेटरों के नाम तक कोई नहीं जानता था। साल में दिखावे के लिए कुछेक मैच होते थे।
मैच कराने पर दर्शक नहीं जुटते थे, प्रायोजक तो दूर की बात थी। 2002 में महिला क्रिकेट के बेहद उपेक्षित दौर में बंगाल के नदिया जिले के छोटे से शहर चकदह की मध्यमवर्गीय परिवार की एक बाला ने क्रिकेटर बनने का 'दुस्साहसÓ दिखाया और तमाम कठिनाइयों को पार करके न सिर्फ लंदन के ऐतिहासिक लाड्र्स तक जा पहुंची बल्कि भारत में महिला क्रिकेट की तस्वीर व तकदीर ही बदल दी। इसमें उन्हें अंजुम चोपड़ा व मिताली राज जैसी साथी खिलाडिय़ों का भी साथ मिला। झूलन की विरासत को आगे ले जाने की जिम्मेदारी अब हरमनप्रीत कौर, स्मृति मंधाना, शेफाली वर्मा, हरलीन देओल, दीप्ति शर्मा समेत अनगिनत भावी महिला क्रिकेटरों के कंधों पर हैं।