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West Bengal: आइआइटी खड़गपुर ने खाद्य पैकेजिंग के लिए खीरे के छिलकों से सेल्युलोज नैनो क्रिस्टल विकसित किया

IIT Kharagpur आइआइटी खड़गपुर के अनुसंधानकर्ताओं ने खीरे के छिलकों से सेल्युलोज नैनो क्रिस्टल विकसित किए हैं जिनसे भविष्य में पर्यावरण हितैषी खाद्य पैकेजिंग सामग्री बनाने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। अध्ययन में पाया गया कि खीरे के छिलके में अन्य छिलकों की तुलना में अधिक सेल्युलोज (18.22 फीसद) है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Wed, 18 Nov 2020 04:33 PM (IST)Updated: Wed, 18 Nov 2020 04:33 PM (IST)
आइआइटी खड़गपुर ने खाद्य पैकेजिंग के लिए खीरे के छिलकों से सेल्युलोज नैनो क्रिस्टल विकसित किया। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। IIT Kharagpur: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) खड़गपुर के अनुसंधानकर्ताओं ने खीरे के छिलकों से सेल्युलोज नैनो क्रिस्टल विकसित किए हैं, जिनसे भविष्य में पर्यावरण हितैषी खाद्य पैकेजिंग सामग्री बनाने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। वैसे तो एकल उपयोग वाले प्लास्टिक से पर्यावरण के प्रति जागरूक ज्यादातर उपभोक्ता परहेज कर रहे हैं, लेकिन इस तरह के पॉलीमर अब भी खाद्य पैकेजिंग सामग्री के तौर पर इस्तेमाल में हैं। आइआइटी खड़गपुर की ओर से बुधवार को एक बयान में कहा गया कि प्रोफेसर जयिता मित्रा और शोधकर्ता एन साईं प्रसन्ना द्वारा खीरे के छिलके से विकसित की गयी सेल्युलोज नैनो सामग्री ने खाद्य पैकेजिंग सामग्री के पर्यावरण अनुकूल विकल्प ढूंढने की इस चुनौती का समाधान कर दिया है।

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आइआइटी खड़गपुर के कृषि व खाद्य अभियांत्रिकी विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ मित्रा ने कहा कि खीरे के छिलके या पूरे खीरे के प्रसंस्करण के बाद अविशष्ट अपशिष्ट के तौर पर 12 फीसद अपशिष्ट निकलता है। हमने इस प्रसंस्कृत सामग्री से सेल्युलोज अवशेष का इस्तेमाल किया है। उन्होंने अपनी खोज के बारे में बताया कि हमारा अध्ययन बताता है कि खीरे से बनाए गए सेल्युलोज नैनो क्रिस्टल में बदलाव संबंधी विशेषताएं होती हैं। इससे बेहतर जैव अपक्षरण और जैव अनुकूलन बातें सामने आईं। उन्होंने कहा कि ये नैनो सेल्युलोज सामग्री अपनी अनोखी विशेषताओं की वजह से मजबूत, नवीकरणीय और आर्थिक सामग्री के रूप में उभरी है। मित्रा ने कहा कि सालों से खाद्य पैकेजिंग में पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक का बढ़ता योग पर्यावरण प्रदूषण का स्रोत बन गया है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि खीरे के छिलके में अन्य छिलकों की तुलना में अधिक सेल्युलोज (18.22 फीसद) है और यही गुण इसे अधिक व्यावहारिक बनाता है। 

गौरतलब है कि इससे पहले जनवरी, 2019 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) खड़गपुर के शोधकर्ताओं की टीम ने कानूनी फैसलों को आसानी से समझने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रणाली विकसित की थी। आइआइटी खड़गपुर की ओर से जारी बयान में कहा गया कि संस्थान के कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग विभाग की शोध टीम ने दो गहरे तंत्रिका मॉडल्स विकसित किए हैं, जिनकी मदद से जटिल वाक्यों के कारण कठिन माने जाने वाले कानूनी फैसलों को पढ़ने व समझने में काफी सहूलियत होगी।


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