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नए रोगों में पुरानी दवाओं का उपयोग

आइआइटी खड़गपुर में स्कूल ऑफ मेडिकल साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एसएमएसटी) के शोधकर्ताओं ने मौजूदा दवाओं के नए क्षेत्रों में उपयोग की संभावनाओं की पहचान की है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 15 Feb 2020 10:00 AM (IST)Updated: Sat, 15 Feb 2020 10:00 AM (IST)
नए रोगों में पुरानी दवाओं का उपयोग
नए रोगों में पुरानी दवाओं का उपयोग

जागरण संवाददाता, कोलकाता : आइआइटी खड़गपुर में स्कूल ऑफ मेडिकल साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एसएमएसटी) के शोधकर्ताओं ने मौजूदा दवाओं के नए क्षेत्रों में उपयोग की संभावनाओं की पहचान की है। शोध में उन्होंने फेटल हिमोग्लोबिन (भ्रूण हिमोग्लोबिन) के लिए उपयुक्त दवाइयों को रक्त से संबंधित कई घातक बीमारियों, जैसे बेटा थैलिसीमिया और सिकल सेल एनीमिया में उपयोग की संभावनाओं को तलाशा है। शोध के अनुसार इन घातक बीमारियों में फेटल हिमोग्लोबिन की दवाइयों के उपयोग से काफी सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं, हालांकि इन दवाओं के कई साइड इफेक्ट भी हैं। ऐसे में वैज्ञानिक तलाशने में जुटे हैं कि दवाइयों में कैसे सुधार किया जाए कि इसका उपयोग रक्त की घातक बीमारियों में किया जा सके।

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आइआइटी खड़गपुर के रिनेरेटिंग मेडिकल लैब में शोध के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि हल्दी में पाया जाने वाला केमिकल करक्यूमिन और जेनशेन पौधे में पाया जाने वाला जेनशेनोसाइड थैलीसीमिया और सिकल सेल एनीमिया जैसी बीमारियों में बहुत कारगर है। इन दोनों तत्वों के साथ वेल्प्रोएट और वेरिनोस्टेट जैसी पारंपरिक दवाइयों के साथ उपयोग को शोधकर्ताओं ने सबसे उपयुक्त पाया है।

यह शोध कार्य रिजेनरेटिंग मेडिसीन लैब के प्रमुख निशांत चक्रवर्ती उनके छात्र सांख्य शुभ्र दास और रश्मि सिन्हा द्वारा किया जा रहा है। निशांत चक्रवर्ती की मानें तो यह खोज मेडिकल के क्षेत्र लाभकारी साबित हो सकती है। इससे कई घातक बीमारियों में होने वाले खर्च में भारी कटौती हो सकती है।


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