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मैं इससे इतना दुखी हो गया था कि मैंने डायरी लिखनी ही बंद कर दी थी

घर में बाढ़ का पानी घुसने से 21 साल से लिखी डायरियों के नष्ट हो जाने से दुखी होकर बंद कर दिया था लिखना।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 30 Apr 2018 01:51 PM (IST)Updated: Mon, 30 Apr 2018 05:24 PM (IST)
मैं इससे इतना दुखी हो गया था कि मैंने डायरी लिखनी ही बंद कर दी थी

कोलकाता, विशाल श्रेष्ठ। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को करीब से जानने वाले उनकी याददाश्त की दाद देते हैं। प्रणब दा को पुरानी से पुरानी बातें याद हैं। इसकी एक अहम वजह यह है कि वे अपने जीवन में रोजाना घटित होने वाली छोटी-बड़ी चीजों को डायरी में लिखा करते हैं।

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हालांकि एक समय ऐसा भी था, जब उन्होंने डायरी लिखनी बंद कर दी थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने जब उनसे फिर से डायरी लिखने का आग्रह किया, तब उन्होंने एक बार फिर यह सिलसिला शुरू किया, जो अब तक बरकरार है। पूर्व राष्ट्रपति ने रविवार को हिंदुस्‍तान क्लब में अपनी पुस्तक 'द कोएलिशन ईयर्स 1996-2012' के विमोचन के मौके पर अपना यह संस्मरण साझा किया। उन्होंने कहा-'मुझे डायरी लिखने की आदत है। मैं रोजाना रात को सोने से पहले अथवा अगले दिन सुबह उठकर डायरी लिखता हूं।

1988 में दिल्ली स्थित मेरे घर में बाढ़ का पानी घुसने से वे सारी डायरियां नष्ट हो गई थीं, जिनमें मैंने पिछले 21 साल के दौरान मेरे जीवन से जुड़ी छोटी-बड़ी तमाम घटनाओं को अक्षरबद्ध किया था। मैं इससे इतना दुखी हो गया था कि मैंने डायरी लिखनी ही बंद कर दी थी और अगले दो साल तक कुछ नहीं लिखा। 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने एक दिन अचानक मुझसे पूछा कि तुमने अपनी डायरी में क्या-क्या लिखकर रखा है? इसपर मैंने कहा कि मेरी डायरी में कई गोपनीय बातें हैं, जो दूसरों के लिए नहीं हैं। नरसिम्हा राव भांप गए कि मैं कुछ नहीं लिख रहा हूं।

उन्होंने मुझे 1991 की एक इस्तेमाल नहीं की हुई डायरी दी और लिखने को कहा। इसके बाद मैंने फिर से लिखना शुरू किया, जो अब तक जारी है।' प्रणब ने आगे कहा-'मैंने कोई इतिहास नहीं लिखा है बल्कि एक व्यक्ति के तौर पर उन घटनाओं पर खुद को प्रतिबिंबित किया है, जिनमें मेरी छोटी अथवा बड़ी भूमिका रही है।'

गठबंधन की राजनीति पर प्रणब ने कहा-'कोई भी राजनीतिक दल गठबंधन नहीं चाहता। हर कोई चाहता है कि उसे बहुमत हासिल हो लेकिन बहुमत नहीं मिल पाने पर गठबंधन की बाध्यता हो जाती है। 2014 में गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में मैंने जनता से कहा था कि देश में एक बड़ा आयोजन होने जा रहा है। इस तरह से मतदान करें कि वह निर्णायक साबित हो। मेरे उक्त संबोधन पर कुछ को लगा कि मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था लेकिन राष्ट्रपति के तौर पर देश के लोगों को यह बताना मैंने अपना कर्तव्य समझा।'

इस मौके पर पुस्तक के प्रकाशक कपिश मेहरा भी मौजूद थे। हिंदुस्‍तान क्लब के अध्यक्ष शिवकुमार लोहिया ने पुस्तक पर प्रकाश डाला। यह पुस्तक ड्रामेटिक डिकेड्स की तीसरी किश्त है, जिसकी शुरुआत 'द इंदिरा गांधी ईयर्स 1969-1980' से हुई थी और 'ट्रूबुलेंट ईयर्स 1980-1996' इसकी दूसरी किश्त है। समारोह में पुस्तक की चौथी किस्त के अगले हफ्ते प्रकाशित होने की भी घोषणा की गई।


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