राज्य सरकार निजी अस्पतालों के डॉक्टरों की स्वैच्छिक सेवा लेने पर कर रही है विचार
डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे बंगाल के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में बेहतर इलाज के लिए अब राज्य सरकार निजी अस्पतालों के डॉक्टरों की स्वैच्छिक सेवा लेने पर विचार कर रही है।
कोलकाता,जागरण संवाददाता। डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे बंगाल के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में बेहतर इलाज के लिए अब राज्य सरकार निजी अस्पतालों के डॉक्टरों की स्वैच्छिक सेवा लेने पर विचार कर रही है। राज्य स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के मुताबिक निजी डॉक्टरों के लिए सरकारी अस्पतालों में स्वैच्छिक सेवा प्रदान करने को अनिवार्य बनाने के प्रस्ताव पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है।
एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक यह मामला अभी प्राथमिक स्तर पर है और विभाग इस संबंध में विस्तृत रूपरेखा तैयार करने में जुटा है। सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि राज्य सचिवालय नवान्न में हाल में स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अधिकारियों से पूछा था कि क्या जरूरत पडऩे पर सरकारी अस्पतालों में निजी अस्पतालों के डॉक्टरों की सेवा ली जा सकती है?
सीएम के इस सवाल के बाद स्वास्थ्य विभाग अब इस बात पर मंथन में जुटा है कि कैसे निजी डॉक्टरों की सेवा ली जाए। प्राप्त जानकारी के मुताबिक निजी डॉक्टरों की सेवा लेने के बदले उन्हें कोई राशि का भुगतान या अन्य सुविधाएं देने सहित विभिन्न पहलुओं पर विचार किया जा रहा है।
एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इस कदम का उद्देश्य विशेष रूप से विभिन्न सुपर स्पेशिलिटी अस्पतालों में पूरे बंगाल सहित दूसरे राज्यों व विदेशों तक से इलाज के लिए आने वाले मरीजों को समय पर उचित व बेहतर चिकित्सा उपलब्ध कराना है।
अधिकारी ने बताया कि 2011 में सत्ता में आने के बाद से ममता सरकार ने विभिन्न जिलों में 42 मल्टी सुपर स्पेशिलिटी अस्पतालों की स्थापना की है। साथ ही राज्यभर में विभिन्न अनुमंडलों, प्रखंडों व जिलों में स्थित सैकड़ों अस्पतालों को अपग्रेड भी किया गया है और वहां बुनियादी सुविधाएं विकसित की गई है। राज्य सरकार का कहना है कि मल्टी सुपर स्पेशिलिटी अस्पतालों की स्थापना के साथ बड़ी संख्या में डॉक्टरों की नियुक्ति करने के अलावा एमबीबीएस और बीडीएस सीटों की संख्या में भारी बढ़ोतरी की गई है। हालांकि सरकार द्वारा उठाए गए इन सब कदमों के बावजूद सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है क्योंकि पूर्ववर्ती सरकार के दौरान लंबे समय तक मेडिकल सीटों की संख्या में वृद्धि नहीं हुई थी।