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Kolkata : पेंशन का निर्देश देने में लग गए 18 साल, चार सेवानिवृत्त शिक्षकों ने खटखटाया था हाईकोर्ट का दरवाजा

शिक्षा विभाग का तर्क था कि उन्होंने रिफंड की अवधि समाप्त होने के दो महीने बाद आवेदन किया था। जबकि पेंशन के लिए नियमानुसार दो महीने के भीतर आवेदन करना जरूरी है। 2004 में चारों शिक्षकों ने शिक्षा विभाग के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

By Jagran NewsEdited By: Vijay KumarPublished: Sun, 27 Nov 2022 09:37 PM (IST)Updated: Sun, 27 Nov 2022 09:37 PM (IST)
समय सीमा के दो माह बाद रिफंड पेंशन देने में कोई दिक्कत नहीं है।

राज्य ब्यूरो, कोलकाता : चार सेवानिवृत्त शिक्षकों को पेंशन का अधिकार तो मिला, लेकिन इसे हासिल करने में 18 साल बीत गए और तो और जब तक इस मामले कलकत्ता हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच का फैसला आया तब तक तीन शिक्षक इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। अब कोर्ट के निर्देशानुसार ब्याज समेत पेंशन की पूरी राशि उनके परिवार वालों को मिलेगी। जानकारी के मुताबिक वर्ष 2004 में बंगाल के पूर्व बद्र्धमान के बरजपोता मदरसे के चार सेवानिवृत्त शिक्षकों नूर आलम, नूरे आलम, अब्दुल मोमिन और मुंशी काशेम अली ने शिक्षा विभाग के सर्कुलर के अनुसार सरकारी पेंशन योजना में शामिल होने को लेकर अपने वेतन से ब्याज सहित पैसा राजकोष में जमा कराया था। लेकिन शिक्षा विभाग ने आवेदन को खारिज कर दिया।

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उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था

शिक्षा विभाग का तर्क था कि उन्होंने रिफंड की अवधि समाप्त होने के दो महीने बाद आवेदन किया था। जबकि पेंशन के लिए नियमानुसार दो महीने के भीतर आवेदन करना जरूरी है। 2004 में चारों शिक्षकों ने शिक्षा विभाग के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। कलकत्ता उच्च न्यायालय की तत्कालीन न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी ने छह फरवरी, 2004 को फैसला सुनाया कि शिक्षकों को पेंशन योजना के तहत शामिल किया जाना चाहिए। समय सीमा के दो माह बाद रिफंड पेंशन देने में कोई दिक्कत नहीं है।

खंडपीठ ने मामले की अंतिम सुनवाई की

इसके बाद तत्कालीन वाममोर्चा सरकार के शिक्षा विभाग ने न्यायमूर्ति बनर्जी के फैसले के खिलाफ खंडपीठ में अपील की। खंडपीठ ने न्यायमूर्ति बनर्जी द्वारा निर्देशित आदेश पर स्थगन जारी कर मामले की सुनवाई शुरू की। लेकिन इस मामले के निपटारे में 18 साल बीत गए। पिछले दिनों न्यायमूर्ति इंद्रप्रसन्न मुखोपाध्याय और न्यायमूर्ति बिस्वरूप चौधरी की खंडपीठ ने मामले की अंतिम सुनवाई की और खंडपीठ ने न्यायमूर्ति बनर्जी के फैसले को बरकरार रखा।

लंबी खींची गई प्रक्रिया में वादी को निराशा

शिक्षकों के वकील एकरामुल बारी ने कहा कि तीन शिक्षकों की मौत हो गई है। पेंशन नहीं मिलने से शिक्षक व उनके परिवार वाले आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षक समाज की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित करते हैं। लेकिन तीन शिक्षकों को जीवन के अंतिम दिन तक पेंशन नहीं मिली। लंबी खींची गई प्रक्रिया में वादी को निराशा के अलावा कुछ नहीं लगा।


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