Bengal Chunav: सियासी त्याग- आइएसएफ की खातिर माकपा ने दी अपनी कई पारंपरिक विस सीटों की कुर्बानी
फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट की खातिर माकपा ने अपनी कई पारंपरिक विधानसभा सीटों की कुर्बानी दी है। छोड़ी गई सभी सीटों पर 2011 से पहले तक माकपा के विधायक थे इन सीटों पर अपनी मौजूदा स्थिति देखकर ही छोडऩे को राजी हुई माकपा
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आइएसएफ) की खातिर माकपा ने अपनी कई पारंपरिक विधानसभा सीटों की कुर्बानी दी है। इनमें रायपुर, महिषादल, चंद्रकोना, कुलपी, मंदिरबाजार, जगतबल्लभपुर, हरिपाल, खानाकुल, मटियाब्रुज, उलबेरिया, राणाघाट उत्तर व पूर्व, कृष्णगंज, संदेशखाली, चापड़ा, अशोकनगर, आमडांगा, आसनसोल उत्तर, इंटाली, कैनिंग पूर्व, जंगीपाड़ा, मध्यमग्राम, हाड़ोआ, मयूरेश्वर और मगराहाट पूर्व सीटें शामिल हैं। इन सभी सीटों पर 2011 से पहले तक माकपा के विधायक थे। कैनिंग पूर्व से जीतकर अब्दुर रज्जाक मोल्ला लंबे समय तक मंत्री रहे थे। मटियाब्रुज से निर्वाचित होकर एक समय मोहम्मद अमीन मंत्री बने थे।
इसी तरह आमाडांगा से अब्दुस सत्तार वाममोर्चा सरकार के मंत्रिमंडल में थे। वहीं इंटाली से जीतकर हाशिम अब्दुल हलीम विधानसभा स्पीकर बने थे। सूत्रों के मुताबिक आइएसएफ के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर पहले माकपा के जो नेता बातचीत कर रहे थे, वे इन सीटों को छोडऩे के लिए तैयार नहीं थे। दोनों दलों में बात बन नहीं पा रही थी इसलिए माकपा की तरफ से एक अन्य वरिष्ठ नेता को बातचीत में लगाया गया, जिन्होंने इन सीटों पर माकपा की मौजूदा स्थिति को देखते हुए आइएसएफ के लिए छोडऩे को पार्टी नेतृत्व को राजी कर लिया। माकपा दरअसल नहीं चाहती थी कि सीटों के विवाद को लेकर आइएसएफ से समझौता न हो पाए।
तृणमूल कांग्रेस के अल्पसंख्यक सेल के अध्यक्ष हाजी नुरूल इस्लाम ने कहा-'माकपा के कार्यकर्ता ही आइएसएफ में शामिल हुए हैं। आम लोगों के बीच माकपा की स्वीकार्यता खत्म हो गई है इसलिए अब वे लोग आइएसएफ के छद्म वेश में राजनीति कर रहे हैं।Ó इसपर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए माकपा की राज्य कमेटी के एक नेता ने कहा कि गठबंधन को शक्तिशाली करने के लिए पार्टी ने यह त्याग किया है। वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि माकपा ने आइएसएफ के लिए जो सीटें छोड़ी हैं, वहां अब उसका प्रभाव अब्बास सिद्दीकी की पार्टी से बहुत कम है। मौजूदा स्थिति को देखते हुए ही माकपा ने यह निर्णय लिया।