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11 साल से धर्म की बाट जोह रही मुर्दाघर में पड़ी एक लाश, अंतिम संस्‍कार का इंतजार

मुर्दाघर में पड़ी है लाश, मामला अदालत में साल दर साल करते हुए 11 साल बीत गए। और अभी तक शव के असली हकदार का फैसला नहीं हुआ है। शव का का कंकाल आज भी अस्पताल के मुर्दाघर में है।

By Edited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 02:47 AM (IST)Updated: Tue, 20 Nov 2018 11:27 AM (IST)
11 साल से धर्म की बाट जोह रही मुर्दाघर में पड़ी एक लाश, अंतिम संस्‍कार का इंतजार
11 साल से धर्म की बाट जोह रही मुर्दाघर में पड़ी एक लाश, अंतिम संस्‍कार का इंतजार

ओमप्रकाश सिंह, हावड़ा। भारत में धर्म जीवन का आधार और मृत्यु का पूर्णविराम है। भारतीय समाज में धर्म की धमक जिंदा इंसानों तक ही सीमित नहीं, इसने तो लाशों को भी मजबूर कर रखा है। इतना मजबूर कर रखा है कि पिछले 11 साल से एक महिला की लाश अपने अंतिम संस्कार को तरस रही है। और उसे इस हाल में पहुंचानेवाले कोई और नहीं, उसके अपने बच्चों की जिद है। पिछले 11 वर्षो से मरी मल्लिक की लाश इंसाफ के इंतजार में कंकाल बन गई। लेकिन अदालत भी यह तय नहीं कर पा रही है कि वह हिंदू थी या मुसलमान।

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हावड़ा जिला अस्पताल से सूचना का अधिकार कानून (आरटीआइ) के माध्यम से मांगी गई जानकारी से जो पता चला उससे धर्म की हमारे जिंदगी में दखलंदाजी का अंदाजा लग जाता है। मिली जानकारी के अनुसार एक नवंबर 2007 को जगाछा थानांतर्गत बाल्टीकुड़ी के बालापुकुर लेन के रहनेवाले गोराई मल्लिक अपनी बीमार पत्नी परी मल्लिक (70) को लेकर हावड़ा जिला अस्पताल पहुंचे।

उसे महिला मेडिकल वार्ड के बेड नंबर 25 पर भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान परी की दो नवंबर को मौत हो गई। मौत के बाद अस्पताल प्रशासन उसका मृत्युप्रमाण पत्र बनाने में और परिवारवाले अंतिम संस्कार करने की तैयारी कर रहे थे। उसी दौरान एक महिला, रीना राय वहां पहुंची। उसने अस्पताल प्रबंधन को बताया कि वह मृत परी मल्लिक की बहू है। उसने दावा किया कि मृतका का नाम परी राय है और उसके पति का नाम स्वर्गीय प्रसाद राय है। उनका पता जगाछा थानांतर्गत धारसा स्थित पंचाननतल्ला इलाके में है। इसके बाद रीना ने मृतका के शव को उसे सौंपने व उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से करने की बात कही।

हालांकि इस बीच मल्लिक परिवार ने इसका विरोध किया। और दोनों पक्षों में विवाद हो गया। विवाद बढ़ने के बाद अस्पताल प्रबंधन ने पुलिस को बुला लिया। मौके पर पहुंची हावड़ा थाने की पुलिस ने मामले को सुलझाने की कोशिश की। लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। बढ़ते विवाद को देखते हुए अस्पताल प्रबंधन ने कानूनी रूप से अधिकार पत्र लाने पर ही शव को सौंपने की बात कही और शव को मुर्दाघर में रख दिया गया। इसके बाद दोनों परिवार कलकत्ता हाई कोर्ट पहुंचे। साल दर साल करते हुए 11 साल बीत गए। और अभी तक शव के असली हकदार का फैसला नहीं हुआ है। शव का का कंकाल आज भी अस्पताल के मुर्दाघर में है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार परी हिंदू थी। उसकी पहली शादी प्रसाद राय से हुई थी। प्रसाद राय से उसकी एक संतान है। इधर, पति की मौत के बाद उसने दूसरी शादी एक मुसलिम, गोराई मल्लिक से की। शादी के बाद गोराई मल्लिक से भी उसे दो संतान हुई। 70 वर्ष की उम्र में परी की मौत के बाद दोनों पतियों से हुई संतान उसके अंतिम संस्कार पर भिड़ गई हैं। दोनों ही अपने-अपने धर्म के अनुरूप अंतिम संस्कार पर अड़ी हैं।


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