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Kolkata: साधारण ट्रैफिक पुलिसकर्मी का असाधारण कार्य, तीन देशों की सामाजिक संस्थाओं ने किया सम्‍मानित

अरूप कुमार मुखर्जी पुरुलिया जिले के सबसे पिछड़े आदिवासी समुदायों में शुमार शबर के सामाजिक उत्थान में वर्षों से जुटे हुए हैं। पुरुलिया में वे शबर समुदाय के बच्चों के लिए आवासीय स्कूल चलाते हैं। इसमें चार हजार परिवारों के खाने-पीने की भी की थी व्यवस्था है।

By Babita KashyapEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 11:51 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 11:51 AM (IST)
Kolkata: साधारण ट्रैफिक पुलिसकर्मी का असाधारण कार्य, तीन देशों की सामाजिक संस्थाओं ने किया सम्‍मानित
शबर समुदाय के बच्चों के साथ अरूप कुमार मुखर्जी।

कोलकाता, विशाल श्रेष्ठ। कोलकाता पुलिस के एक साधारण ट्रैफिक पुलिसकर्मी को उनके असाधारण कार्यों के लिए तीन देशों की प्रतिष्ठित सामाजिक संस्थाओं की ओर से सम्मानित किया गया है। ये हैं 45 साल के अरूप कुमार मुखर्जी। अरूप कोलकाता पुलिस के साउथ ट्रैफिक गार्ड में कांस्टेबल के पद पर हैं। कोलकाता में भले उनकी पहचान ट्रैफिक पुलिसकर्मी के तौर पर हो लेकिन पुरुलिया में सब उन्हें 'शबर पिता' के नाम से जानते हैं। अरूप वर्षों से पुरुलिया जिले के सबसे पिछड़े आदिवासी समुदायों में शुमार शबर के सामाजिक उत्थान में जुटे हुए हैं।

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  वे पुरुलिया के पुंचा थाना इलाके के पारुई गांव में शबर समुदाय के बच्चों के लिए आवासीय स्कूल चलाते हैं, जहां उनके रहने से लेकर खाने-पीने तक की सारी व्यवस्था नि:शुल्क है। अरूप ने इस स्कूल की शुरुआत 2011 में 15 बच्चों के साथ की थी। वर्तमान में स्कूल में 125 बच्चे पढ़ते हैं। शबर समुदाय के लिए किए जा रहे इन्हीं कार्यों को मान्यता प्रदान करते हुए न्यूजीलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात की संस्था की तरफ से उन्हें सम्मानित  किया गया है। न्यूजीलैंड की सामाजिक संस्था की ओर से उन्हें  प्रेरणादायी पुलिसकर्मी की संज्ञा देते हुए उनका नाम "मार्वलस बुक ऑफ रिकॉर्ड्स' में दर्ज किया गया है। इससे पहले एक अमेरिकी संस्था की ओर से उन्हें सम्मानित करते हुए उनका नाम 'हाई रेंज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में शामिल किया गया था। इसी तरह संयुक्त अरब अमीरात की सामाजिक संस्था ने उन्हें 'ब्रेवो इंटरनेशनल बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में जगह दी है।

 45 साल के अरूप ने बताया-'अंतरराष्ट्रीय सामाजिक संस्थाओं से सम्मानित होकर मैं अभिभूत हूं। पुरस्कार व सम्मान से निश्चित रूप से उत्साह बढ़ता है लेकिन मैं किसी पुरस्कार या सम्मान की चाह में काम नहीं करता बल्कि ऐसा करके मुझे आंतरिक रुप से काफी खुशी मिलती है।' अरूप ने लॉकडाउन के समय फंड जुटाकर शबर समुदाय के चार हजार परिवारों के खाने-पीने की भी व्यवस्था की थी। अरूप मूल रूप से पारुई गांव के ही रहने वाले हैं। उनके परिवार में माता-पिता, चाचा-चाची, पत्नी और एक बेटा-बेटी हैं। अरूप 2011 से कोलकाता ट्रैफिक पुलिस में कार्यरत हैं।


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