Chit Fund Scam: चिटफंड कंपनियों के लिए शुरू से ही मुफीद रही है बंगाल की जमीं
नकेल कसने के लिए केंद्र ने दि बैनिंग ऑफ अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम बिल 2018 में आधिकारिक संशोधनों के प्रारूप को अंतिम रूप दे दिया है। कानून बनने के बाद जो भी जमा योजनाएं इस कानून के तहत पंजीकृत नहीं होंगी वे अवैध हो जाएंगी।
इंद्रजीत सिंह, कोलकाता। बंगाल की जमीं शुरू से ही चिटफंड कंपनियों के लिए मुफीद रही है। बड़े पैमाने पर देश की पहली चिटफंड कंपनी मानी जाने वाली पियरलेस की शुरुआत वर्ष 1932 में कोलकाता में ही हुई थी। हालांकि राज्य में 70 से 80 के दशक के बीच चिटफंड कंपनियों ने फलना-फूलना शुरू किया। ये कंपनियां पोंजी स्कीम चलाती थीं। कालांतर में लगभग सभी कंपनियां बंद हो गईं।
आज से 40 साल पहले वर्ष 1980 में बंगाल में संचयिता चिटफंड घोटाला हुआ था और यह देश का पहला और उस समय का सबसे बड़ा घोटाला था। इसने 1.31 लाख से ज्यादा निवेशकों को चूना लगाया था। 90 के दशक में राज्य में ऐसी चिटफंड कंपनियों ने फिर सिर उठाना शुरू किया। इस बार उनको वाममोर्चा के नेताओं का सहयोग मिला था। निवेशकों को अधिक ब्याज का लालच देकर बंगाल ही नहीं, ओडिशा, बिहार और त्रिपुरा तक में इनका कारोबार खूब फैला।
क्या है चिटफंड? : चिटफंड स्कीम का मतलब होता है कि कोई शख्स या लोगों का समूह या पड़ोसी आपस में वित्तीय लेन देन के लिए एक समझौता करे। इस समझौते में एक निश्चित रकम या कोई चीज एक तय वक्त पर किश्तों में जमा की जाती है और परिपक्वता अवधि पूरी होने पर ब्याज सहित लौटा दी जाती है। चिटफंड को कई नामों जैसे चिट, चिट्टी, कुरी से भी जाना जाता है। इसके माध्यम से लोगों की छोटी-छोटी बचत को इकट्ठा किया जाता है। एक तरह से माइक्रोफाइनेंस है।
दरअसल चिटफंड कंपनियां गैर- बैंकिंग कंपनियों की श्रेणी में आती हैं। ऐसी कंपनियों को किसी खास योजना के तहत खास अवधि के लिए आम लोगों से मियादी और रोजाना जमा जैसी योजनाओं के लिए धन उगाहने की अनुमति मिली होती है। जिन योजनाओं को दिखाकर अनुमति ली जाती है, वह तो ठीक होती हैं। लेकिन इजाजत मिलने के बाद ऐसी कंपनियां अपनी मूल योजना से इतर विभिन्न लुभावनी योजनाएं बनाकर लोगों से धन उगाहना शुरू कर देती हैं। हालांकि अब ऐसी कंपनियों पर केंद्र सरकार ने नियमों में संशोधन कर नकेल कस दिया है।
बंगाल में तीन सालों में 24 हजार से अधिक फर्जी कंपनियों का पता चला : -गौरतलब है कि चिटफंड कंपनियों की तरह ही फर्जी कंपनियां भी सबसे ज्यादा बंगाल में हैं। बंगाल में हजारों करोड़ रुपए के सारधा, रोज वैली चिटफंड घोटालों की जांच के दौरान केंद्रीय जांच एजेंसी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) को पिछले तीन सालों में 24 हजार से अधिक छद्म (शेल) कंपनियों का पता चला है जिन का वजूद सिर्फ कागज कलम पर है। इनका इस्तेमाल काली कमाई को सफेद करने के लिए किया जाता है।
पिछले एक दशक में बंगाल में र्चिचत चिटफंड घोटालों में सारधा, रोज वैली, पैलान, आइकोर, एमपीएस आदि प्रमुख रहे हैं। इनमें सारधा तथा रोज वैली चिटफंड घोटाले सबसे ज्यादा र्सुिखयों में रहे। इन दोनों चिटफंड कंपनियों ने निवेशकों को अरबों रुपये की चपत लगाई है। सीबीआइ व प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मुताबिक
गत 10 वर्षों में बंगाल में सौ से ज्यादा चिटफंड कंपनियों ने निवेशकों के एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि लूट ली है। इनमें सारधा व रोज वैली ने ही लगभग आधा 50 हजार करोड़ रुपये की राशि हजम कर ली है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) का कहना है कि पिछले एक दशक में बंगाल में 200 से अधिक अवैध बड़ी चिटफंड कंपनियां सक्रिय रही हैं। इन कंपनियों ने राज्य के ग्रामीण इलाकों में लोगों से अवैध तरीके से पैसे संग्रह किए हैं। अधिक ब्याज या फायदा देने का प्रलोभन देकर लोगों से अरबों रुपया इकट्ठा किया है। हालांकि ज्यादातर चिटफंड कंपनियों के मालिकों को गिरμतार किया जा चुका है।
फर्जी कंपनियां बंगाल में ही क्यों : कर तथा वित्तीय जानकार नारायण जैन का कहना है बंगाल शुरू से ही गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का केंद्र रहा है और इसी की आड़ में ही बंगाल के पिछड़े जिलों में बड़ी संख्या में चिटफंड कंपनियों अपना जाल फैलाया है। कोलकाता और आसपास के शहरों में चिटफंड से संबंधित काम करने वाले पेशेवर जानकार काफी हैं। यह काफी सस्ते में उपलब्ध होते हैं तथा फर्जी कंपनियां गढ़ने में माहिर हैं। पिछले चार दशक में राज्य में आशानुरूप औद्योगिक विकास नहीं होने के कारण आर्थिक खाई चौड़ी बनी हुई है और इसका चिटफंड कंपनियों ने भरपूर फायदा उठाया है।
वाममोर्चा शासन में हुई शुरुआत : बंगाल में बड़े पैमाने पर चिटफंड कंपनियों की शुरुआत वास्तव में वाममोर्चा के शासनकाल में हुई। वाममोर्चा तथा तृणमूल कांग्रेस के शासन में औद्योगिक विकास की दिशा में कोई सार्थक निवेश तो नहीं हुआ, फर्जी कंपनियां कुकुरमुत्ते की तरह जरूर बढ़ीं। वाममोर्चा सरकार के ढीले रवैए के कारण ज्यादातर कंपनियों ने अपना जाल फैलाया और लालच देकर जनता को लूटने का काम शुरू कर दिया। तृणमूल कांग्रेस की नई सरकार ने उन्हेंं रोकने के बजाय उनका हौसला बढ़ाया। परिणामस्वरूप चिटफंड कंपनियों का कारोबार तेजी से बढ़ा। बंगाल की भोलीभाली जनता का विश्वास भी इन कंपनियों पर तेजी से बढ़ने लगा, क्योंकि सत्तासीन पार्टी के नेताओं और मंत्रियों ने चिटफंड कंपनियों के कार्यक्रमों में धड़ल्ले से जाना शुरू कर दिया और पार्टी फंड भी गुलजार रहने लगा। इन कंपनियों को किस कदर राजनीतिक संरक्षण मिल रहा था इसका सुबूत सीबीआइ की कार्रवाई के बाद सामने आया।
2019 में मिली चिटफंड संशोधन विधेयक को मंजूरी चिटफंड क्षेत्र के सुव्यवस्थित विकास में आ रही अड़चनों को दूर करने और लोगों तक बेहतर वित्तीय पहुंच बनाने के मकसद से लाए गए चिटफंड संशोधन विधेयक 2019 को पिछले वर्ष संसद की मंजूरी मिल गई है। चिटफंड सालों से छोटे कारोबारों और गरीब वर्ग के लोगों के लिए निवेश का स्नोत रहा है, लेकिन कुछ पक्षकारों ने इसमें अनियमितताओं को लेकर चिंता जताई थी। जिसके बाद सरकार ने एक परामर्श समूह बनाया। वर्ष 1982 के मूल कानून को चिटफंड के विनियमन का उपबंध करने के लिए लाया गया था। संसदीय समिति की सिफारिश पर कानून में संशोधन के लिए विधेयक लाया गया।
पांच बड़े चिटफंड घोटालों के मालिक हैं सलाखों के पीछे : एमपीएस इसके अलावा ढाई हजार करोड़ रुपए के एमपीएस चिटफंड घोटाले में समूह के चेयरमैन प्रमथनाथ मन्ना भी फिलहाल सलाखों के पीछे हैं। दूसरी ओर एक हजार करोड़ रुपए के आइकोर चिटफंड घोटाले में गिरफ्तार कंपनी के चेयरमैन अनुकूल माइती का पिछले महीने भुवनेश्वर जेल में निधन हो गया था। जबकि 600 करोड़ रुपए के एक और बड़े चिटफंड घोटाले में पैलान समूह के प्रमोटर अपूर्व कुमार साहा फिलहाल जेल में हैं।
सारधा : बंगाल के 30 हजार करोड़ रुपए के सबसे बड़े चिटफंड घोटाले सारधा घोटाले में गिरफ्तार समूह के मुखिया सुदीप्त सेन तथा उनकी सहयोगी देवयानी मुखर्जी दोनों जेल में हैं। सुदीप्त सेन
रोज वैली : वहीं 18 हजार करोड़ रुपए से अधिक के दूसरे सबसे बड़े घोटाले रोज वैली चिटफंड घोटाले में समूह के मालिक गौतम कुंडू को भी गिरफ्तार किया जा चुका है। गौतम कुंडू