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नेताजी की अनमोल धरोहर को नीलाम कर गरीबों के कल्याण में लगाना चाहती हैं महाश्र्वेता दी

टूटे-फूटे लकड़ी के घर को देखकर कोई कह ही नहीं सकता कि इसके अंदर संदूक में सहेज कर नेताजी की हैंडराइटिंग में उनका इतना बड़ा संदेश सहेज कर रखा होगा।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 13 Aug 2018 09:26 AM (IST)Updated: Mon, 13 Aug 2018 03:17 PM (IST)
नेताजी की अनमोल धरोहर को नीलाम कर गरीबों के कल्याण में लगाना चाहती हैं महाश्र्वेता दी

सिलीगुड़ी, राजेश पटेल। नेता जी सुभाष चंद्र बोस का नाम आते ही उनका नारा बरबस ही जुबान पर आ जाता है, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा।' लेकिन इससे हटकर भी उनका एक नारा था, 'सेवा व बलिदान के बिना आजादी संभव नहीं'। उन्होंने यह वाक्य 1938 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु के परिवार की महिला अनिता बोस को दिए एक ऑटोग्र्राफ में लिखा है। इस पर उसी दिन खींची गई नेताजी की फोटो भी है। नेता जी ने बांग्ला में लिखा है, 'सेवा वो त्यैग व्यतित साधीनता पाबो ना।'

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सिलीगुड़ी में मल्लागाड़ी इलाके में एक नामी होटल के पास टूटे-फूटे लकड़ी के घर को देखकर कोई कह ही नहीं सकता कि इसके अंदर संदूक में सहेज कर नेताजी की हैंडराइटिंग में उनका इतना बड़ा संदेश सहेज कर रखा होगा।

लकड़ी की ही सीढ़ी चढ़कर प्रथम तल पर कमरे में प्रवेश करने पर वृद्ध महाश्र्वेता जी मिलीं। उनसे जब कहा गया तो उन्होंने संदूक से निकालकर शीशे में मढ़े हुए इस ऑटोग्र्राफ को निकाला और आंचल के पल्लू से पोंछते हुए माथे पर लगाया फिर देखने को दिया।

महाश्र्वेता दीदी ने बताया कि अनीता बोस उनकी मौसी थीं। बेटी की ही तरह मानती थीं। 1993 में देहांत के पहले उन्होंने यह थाती उनको सौंपी थी। कहा था कि इसे संभाल कर रखना। न संभाल सकना तो इसे नीलाम कराके इससे मिलने वाली राशि को गरीबों के कल्याण में लगाना, तभी नेताजी का यह उद्देश्य पूरा हो सकेगा। कहती हैं कि अभी तक तो संभाल कर रखी हूं, जब लगेगा कि अब अंत समय आने वाला है, तब इसको नीलाम करूंगी। इसके लिए प. बंगाल सरकार से बात की जाएगी। जब इस अनमोल धरोहर की नीलामी की बात होगी तो लोग बढ़-चढ़कर सामने आएंगे ही। देश में नेताजी के कद्रदानों की कमी नहीं है।

महाश्र्वेता जी ने बताया कि प्रख्यात वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु के पिता भगवान चंद्र बसु थे। भगवान चंद्र बसु के भाई बैरिस्टर ईश्र्वर चंद्र जी थे। ईश्र्वर चंद्र जी मेरे नाना थे। इनकी दो बेटियां थीं, एक मेरी मां ममता महल नाविस बोस तथा दूसरी अनिता बोस।

अनिता बोस आजादी की लड़ाई में नेता जी के साथ गुप्त रूप से रहते हुए संगठन के लिए काम करती थीं। इसी सिलसिले में वे 1938 में रंगून गई थीं। उसी समय नेता जी की फोटो खींची और उस पर ऑॅटोग्र्राफ लिया था, जिस पर नेता जी ने यह लिखा, जिसके बारे में आज तक सभी अनजान ही हैं। नेताजी मौसी से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने कहा था कि उनको यदि बेटी पैदा होगी तो उसका नाम अनिता बोस ही रखेंगे। 


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