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West Bengal: पोलैंड के छात्र के भारत छोड़ने के आदेश पर हाईकोर्ट की रोक

Calcutta High Court. पोलैंड के एक छात्र को महानगर में सीएए विरोधी रैली में भाग लेने के चलते भारत छोड़ने का निर्देश दिया गया था।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Fri, 06 Mar 2020 02:24 PM (IST)Updated: Fri, 06 Mar 2020 02:24 PM (IST)
West Bengal: पोलैंड के छात्र के भारत छोड़ने के आदेश पर हाईकोर्ट की रोक
West Bengal: पोलैंड के छात्र के भारत छोड़ने के आदेश पर हाईकोर्ट की रोक

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। Calcutta High Court. कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार के उस नोटिस पर रोक लगा दी, जिसमें पोलैंड के एक छात्र को महानगर में सीएए विरोधी रैली में भाग लेने के चलते भारत छोड़ने का निर्देश दिया गया था। छात्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य की पीठ ने आगामी 18 मार्च तक केंद्र सरकार की नोटिस पर रोक लगाने का निर्देश दिया। अदालत अब 18 मार्च को इस मामले में छात्र की याचिका पर आदेश पारित करेगी।

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जादवपुर विश्वविद्यालय से मास्टर की डिग्री कर रहे पोलैंड के छात्र कामिल सिदस्यंसकी को विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एएफएफआरओ), कोलकाता की ओर से बीते 14 फरवरी को भारत छोड़ो नोटिस जारी किया गया था, जिसमें उसे नोटिस प्राप्त होने के 14 दिनों के अंदर देश छोड़ने को कहा गया था। इस नोटिस के खिलाफ छात्र ने बुधवार को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। छात्र ने अपनी याचिका में कोर्ट से केंद्र के आदेश पर रोक लगाने और इसे वापस लेने के लिए निर्देश देने की अपील की थी। इस याचिका का विरोध करते हुए केंद्र सरकार के अधिवक्ता फिरोज इदुल्जी ने कहा कि एक विदेशी संविधान के अनुच्छेद 19 को चुनौती नहीं दे सकता। एएफएफआरओ द्वारा नोटिस एक फील्ड रिपोर्ट के आधार पर जारी किया गया था।

वहीं, छात्र ने अपनी याचिका में नोटिस को प्रभावी करने से रोकने की प्रार्थना की। चूंकि नोटिस 24 फरवरी को मिला इसलिए 9 मार्च तक भारत छोड़ना था। नोटिस में आरोप लगाया गया कि छात्र कथित रूप से सरकार विरोधी गतिविधियों में शामिल है, जो कि वीजा नियमों का उल्लंघन है। दूसरी ओर छात्र ने इस आरोप को खारिज किया।

छात्र के अधिवक्ता जयंत मित्रा ने अदालत में कहा कि दिसंबर, 2019 में कामिल को जादवपुर विवि के अन्य छात्रों के साथ महानगर के न्यू मार्केट इलाके में एक कार्यक्रम में जाने के लिए राजी किया गया था। उसे जब यह मालूम पड़ा कि यह कार्यक्रम विभिन्न वर्गो द्वारा आयोजित एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन है तो उसने खुद को छात्रों के समूह से अलग कर दिया और दर्शक की भूमिका में आ गया था। उन्होंने दावा किया कि वहां एक शख्स ने उससे कुछ सवाल पूछे और उसकी तस्वीर ली। बाद में उसे पता चला कि वह एक बांग्ला दैनिक का फोटो जर्नलिस्ट है। उस अखबार ने छात्र की तस्वीर और कुछ खबरें प्रकाशित कीं। मित्रा ने दावा किया कि रिपोर्ट में कुछ बयानों को गलत तरीके से कामिल का बताया गया है।

मित्रा ने दावा किया कि यह आदेश मनमाना है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ और संविधान की ओर से दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। विश्वविद्यालय से उसका मास्टर्स कोर्स पूरा होने में सिर्फ चार महीने का वक्त बचा है इसलिए एफआरआरओ को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया जाए। अधिवक्ता ने यह भी कहा कि कामिल ने अपनी गलती से बहुत कुछ सीखा है और वचन देता है कि दोबारा वह इसे नहीं दोहराएगा। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने नोटिस पर रोक लगाने का निर्देश दिया।

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