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कलकत्ता उच्च न्यायालय ने जीटीए चुनाव के फैसले पर पुनर्विचार का निर्देश दिया

लंबे समय के बाद राज्य सरकार ने जीटीए चुनाव के लिए अधिसूचना जारी की है। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को चुनाव के मुद्दे पर फिर से विचार करने का निर्देश दिया।

By Priti JhaEdited By: Published: Fri, 20 May 2022 10:06 AM (IST)Updated: Fri, 20 May 2022 10:06 AM (IST)
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने जीटीए चुनाव के फैसले पर पुनर्विचार का निर्देश दिया
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने जीटीए चुनाव के फैसले पर पुनर्विचार का निर्देश दिया

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को जीटीए चुनाव कराने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है। लंबे समय के बाद राज्य सरकार ने जीटीए चुनाव के लिए अधिसूचना जारी की है। उस अधिसूचना के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए मामला दायर किया गया था। गुरुवार को मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को चुनाव के मुद्दे पर फिर से विचार करने का निर्देश दिया।

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याचिकाकर्ता ने कहा कि जीटीए चुनाव से पहले राज्य सरकार को गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन अधिनियम 2011 की वैधता पर फैसला करना होगा। जीएनएलएफ की ओर से मामला दर्ज कराया गया है। उसने इस संबंध में कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की। उसी आधार पर कोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार से जीटीए चुनाव पर अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा। 

पहाड़ में 2017 में हुए हंगामे के बाद से जीटीए का काम ठप पड़ा है। उस समय जीटीए के अध्यक्ष गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के प्रमुख बिमल गुरुंग थे। बिमल एक पुलिस अधिकारी की गोली मारकर हत्या करने वालों में से एक थे। जीटीए को बाद में भंग कर दिया गया था। बाद में, बिमल गुरुंग के साथ तृणमूल कांग्रेस के संबंध और घनिष्ठ हो गए। उनके और बीजेपी के बीच दूरियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान पहाड़ में एक नया राजनीतिक समीकरण रचा गया था। बिमल गुरुंग ने स्पष्ट किया कि गोरखा भूमि के मुद्दे पर भाजपा ने पहाड़ी लोगों को धोखा दिया है। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस से समझौता करने का संकेत दिया।

उसके बाद मुख्यमंत्री ने कहा, जीटीए पर जल्द से जल्द मतदान होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि मतदान जून में होगा। इस बीच कुछ दिन पहले गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के प्रमुख बिमल गुरुंग ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर गोरखा भूमि विवाद का समाधान करने को कहा था। पत्र में उन्होंने आरोप लगाया कि 2011 में राज्य सरकार के साथ हुए समझौते की कई शर्तों का पालन नहीं किया गया। गुरुंग ने इससे पहले दार्जिलिंग जिले के प्रभारी मंत्री अरूप विश्वास को एक पत्र लिखा था, जिसमें यह आरोप लगाया गया था। 


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