अभिनव कदम: ...तो बंगाल की ट्रेनों में बाउल गाएंगे मोदी की सफलता के गीत
बंगाल के लोगों के दिलों-दिमाग में रचा बसा है बाउल गीत विश्वभारती विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रहे छात्र लिख रहे हैं गीत बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा अब राज्य की विरासत गीत-संगीत के जरिए अपनी पैठ बढ़ाने की जुगत में है।
कोलकाता, इंद्रजीत सिंह। बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा अब राज्य की विरासत गीत-संगीत के जरिए अपनी पैठ बढ़ाने की जुगत में है। इस कड़ी में भाजपा एक गैर राजनीतिक मंच के गठन के जरिए अभिनव कदम उठाने जा रही है। सूत्रों के मुताबिक बंगाल की लोकल ट्रेनों में बाउल (बंगाल का लोकगीत) गायक पीएम मोदी की सफलता के गीत गाएंगे जो सूबे के लाखों लोगों तक पहुंचेगा। बताते चलें कि बाउल गीत बंगाल के लोगों के दिलों-दिमाग में रचा बसा है।
सूत्रों के मुताबिक इस योजना के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी पूर्व सांसद तथा भाजपा के नवनियुक्त राष्ट्रीय सचिव अनुपम हाजरा को दी गई है। श्री हाजरा ने बताया कि बंगाल के लोग बाउल गीत को काफी पसंद करते हैं तथा पूरे मनोयोग से इसे सुनते हैं। इसे ध्यान में रखकर ही सोचा गया क्यों ना बंगाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफलता की कहानी को जन जन तक पहुंचाने के लिए बाउल गायकों का भी सहारा लिया जाए। इसके लिए बाउल गायकों से संपर्क किया गया है और उन्होंने राष्ट्र के विकास तथा कल्याण के नाम पर गीत गाने पर अपनी सहमति भी जताई है। उन्होंने बताया कि विश्वभारती विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रहे कुछ उनके परिचित छात्र इस गीत को लिख रहे हैं। बताते चलें कि अनुपम हाजरा विश्वभारती विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रह चुके हैं।शिक्षा जगत में उनकी गहरी पैठ है।
'ममता बेगम हमें मोदी के घर ले चलो'...
-इस साल गंगासागर मेले के दौरान एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें एक शख्स भगवान राम की वेशभूषा में ममता बनर्जी के खिलाफ गीत गा रहा था। विडियो में शख्स को गीत के जरिए यह कहते हुए सुना जा सकता था, 'दीदी (ममता बनर्जी) अल्लाह-अल्लाह कहती हैं और मोदी (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) राम-राम कहते हैं। ममता दीदी हमें मोदी जी के घर ले चलिए, ममता बेगम हमें मोदी जी के घर ले चलिए।'
यह है बाउल
विश्वभारती विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व प्रोफेसर तथा बाउल इतिहास के जानकार डॉ हरिश्चंद्र मिश्र का कहना है कि बाउल का उद्भव 15-16वीं शताब्दी के आसपास हुआ था।17वीं शताब्दी के आसपास बाउल ने संप्रदाय का रूप ले लिया। इनकी सामाजिक चेतना संतो की है। यह लोग हल्के नृत्य करते हुए लोकगीत गाते हैं। बाउल, प्रेम के जरिए ही ईश्वर की प्राप्ति में विश्वास करते हैं। इनपर पर वैष्णव तथा तंत्र साधना का प्रभाव है तथा यह लोग महाप्रभु चैतन्य, संत कबीर को भी गुरु मानते हैं। बाउल प्रकृति की भी सेवा करते हैं। बंगाल तथा बांग्लादेश में इनकी बड़ी संख्या है।