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तृणमूल और कांग्रेस की जंग: अब देखना है कि ‘असली-नकली’ कांग्रेस की लड़ाई कहां तक जाती है

Bengal Politics कांग्रेस पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ममता पर भाजपा की तरह विधायकों एवं पार्टियों में तोड़फोड़ करने का आरोप लगाया और सवाल किया कि कहीं वह फासीवादी विचारधारा के रास्ते पर तो नहीं चल पड़ी हैं?

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 07 Dec 2021 09:12 AM (IST)Updated: Tue, 07 Dec 2021 09:12 AM (IST)
तृणमूल और कांग्रेस की जंग: अब देखना है कि ‘असली-नकली’ कांग्रेस की लड़ाई कहां तक जाती है
तृणमूल और कांग्रेस की जंग: दोनों राजनीतिक दलों के झंडे। प्रतीकात्मक

कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। Bengal Politics महज कुछ ही दिनों पहले तृणमूल कांग्रेस ने अपने मुखपत्र ‘जागो बांग्ला’ के माध्यम से खुद को ‘असली’ कांग्रेस बताया था। इसमें लिखा गया था, ‘कांग्रेस की विरासत का झंडा आज तृणमूल के हाथ में है, जो सोमुद्रो (समुद्र) है और कांग्रेस पोचा डोबा यानी गड्ढे जैसा छोटा तालाब है। आज वह अप्रासंगिक हो चुकी है। अधिकांश कांग्रेस समर्थकों ने भी महसूस किया है कि तृणमूल ही असली कांग्रेस है। आज की कांग्रेस असफल, भटकी हुई है। जो अभी भी कांग्रेस में हैं, उनका तृणमूल में स्वागत है।’

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पिछले सप्ताह तृणमूल की कार्यसमिति की बैठक में कई निर्णय लिए गए। तृणमूल के नाम से लेकर पार्टी के संविधान तक को बदलने की चर्चा तेज है। पार्टी का नया नाम क्या होगा और इसकी घोषणा कब होगी, इस पर अंतिम निर्णय ममता बनर्जी को लेना है। फिलहाल पार्टी का नाम बदलने की चर्चा अंदरखाने तेजी से चल रही है। ममता और उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) जिस तरह कांग्रेस पर हमलावर हैं और योजनाएं बन रही हैं, उससे यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि अब ‘असली-नकली’ कांग्रेस की लड़ाई शुरू है।

वैसे तो तृणमूल का नाम और संविधान बदलने की तैयारी को लेकर कई तर्क हो सकते हैं, पर इसके निहितार्थ को समझने की जरूरत है। एक तरफ तृणमूल राष्ट्रीय फलक पर विस्तार की कोशिश में है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के स्थान पर शक्तिशाली विपक्ष बनने को भी आतुर है, इसलिए संभवत: ममता और उनके रणनीतिकार पार्टी का नाम कुछ ऐसा रखना चाह रहे हैं, जिसमें राष्ट्रीय स्वरूप झलके। वहीं पार्टी का संविधान बदलने का कारण दूसरे राज्यों के नेताओं को कार्यसमिति में शामिल करना हो सकता है, ताकि बंगाल के बाहर भी पार्टी का विस्तार तेजी से हो। अभी तृणमूल की कार्यसमिति में बंगाल के ही 21 सदस्य हैं। ऐसे में कुछ अन्य राज्यों में विस्तार की जो कोशिशें हो रही हैं, उसे सफल करने के लिए कार्यसमिति में अन्य प्रदेशों के नेताओं को भी शामिल करने की योजना है।

चुनाव आयोग के मापदंडों के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस को अभी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल नहीं है। कुछ वर्ष पहले तृणमूल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला था, लेकिन बाद में छिन गया। इस समय उसका आधार बंगाल तक सीमित है। परंतु वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी देश के अन्य प्रांतों में अपना विस्तार चाहती है, इसीलिए नाम से लेकर संविधान तक में परिवर्तन की बातें हो रही हैं। इस बदलाव का मकसद राष्ट्रीय स्तर पर तृणमूल को न केवल बंगाल की पार्टी के तौर पर, बल्कि देशव्यापी पार्टी के तौर पर स्थापित करना है।

हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि यह प्रयास कांग्रेस को नकली और तृणमूल को असली बताने की योजना का भी हिस्सा हो सकता है। वैसे भी ममता ने करीब 23 साल पहले कांग्रेस को ही तोड़कर तृणमूल कांग्रेस बनाई थी। वह बंगाल में कांग्रेस का लगभग सफाया कर चुकी हैं। अन्य प्रदेशों में भी जिस तरह से कांग्रेस में सेंधमारी हो रही है, उससे ऐसा लग रहा है कि ममता खुद की पार्टी को असली कांग्रेस के तौर पर स्थापित करने को तत्पर हैं, जिसकी तस्दीक चार दिन पहले तृणमूल के मुखपत्र में छपा आलेख भी कर रहा है, जिसमें कहा गया कि कांग्रेस ‘डीप फ्रीजर’ में चली गई है।

ऐसे में विपक्षी ताकतें खालीपन को भरने के लिए अब ममता की ओर देख रही हैं। साथ ही पीके के ताजा ट्वीट का जिक्र करते हुए आलेख में लिखा गया है, ‘केवल चुनावी रणनीतिकार ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के नेता भी पार्टी नेतृत्व की आलोचना कर रहे हैं।’ आलेख में आगे कहा गया है, ‘तृणमूल लंबे समय से यह कह रही है कि कांग्रेस एक समाप्त हो चुकी ताकत है। पार्टी अंदरूनी कलह में इस कदर उलझी हुई है कि उसके पास विपक्ष को संगठित करने के लिए शायद ही समय या ऊर्जा है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का अस्तित्व नहीं रह गया है।’

इसे लेकर कांग्रेस ने भी पलटवार किया और कहा कि तीन-चार बार भाजपा के साथ हाथ मिलाने वाली ममता की ओर से सिद्धांतों का पाठ पढ़ाया जाना अनुचित है और अब तृणमूल जैसी पार्टियों को तय करना होगा कि उनकी प्राथमिकता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लड़ना है या फिर कांग्रेस के खिलाफ? पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ममता पर भाजपा की तरह विधायकों एवं पार्टियों में तोड़फोड़ करने का आरोप लगाया और सवाल किया कि कहीं वह फासीवादी विचारधारा के रास्ते पर तो नहीं चल पड़ी हैं? अब देखना है कि ‘असली-नकली’ कांग्रेस की लड़ाई कहां तक जाती है।

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]


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