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Bengal Politics: करीब एक साल से बंगाल में लड़ी जा रही सियासी जंग अब दिल्ली पहुंची

Bengal Politics बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा और अन्य मसलों से ध्यान दिल्ली यानी केंद्र सरकार की ओर ले जाने की तृणमूल प्रमुख ने जो कोशिश की है उसमें वह कितना सफल होती हैं यह तो वक्त ही बताएगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 27 Jul 2021 09:52 AM (IST)Updated: Tue, 27 Jul 2021 06:19 PM (IST)
ममता बनर्जी और बंगाल के भाजपा नेताओं का दिल्ली में जमावड़ा

कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। करीब एक साल से बंगाल में लड़ी जा रही सियासी जंग अब दिल्ली पहुंच चुकी है। मुख्यमंत्री व तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी खास रणनीति के तहत इस जंग को दिल्ली ले जाकर अब वहीं से इसे लड़ना चाहती हैं, ताकि बंगाल की ओर से नजर हटाई जा सके। इसकी वजह भी है। जिस तरह से कलकत्ता हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की वृहत्तर पीठ के निर्देश पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा गठित विशेष समिति की बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा पर रिपोर्ट सामने आई है, उससे ममता सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा हो गई है।

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एनएचआरसी ने कानून-व्यवस्था को लेकर जो टिप्पणी अपनी रिपोर्ट में की है वह काफी चिंताजनक है। सीबीआइ से लेकर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के नेतृत्व में विशेष जांच टीम (एसआइटी) गठित कर हिंसा की पड़ताल कराने की भी सिफारिश की गई है। लिहाजा ममता के लिए मुसीबत बढ़ जाएगी।

चुनाव बाद हुई हिंसा के खिलाफ दिल्ली में राजघाट पर धरना देते बंगाल के भाजपा नेता व सांसद। फाइल

ममता भले एनएचआरसी की रिपोर्ट को गलत और राजनीति से प्रेरित कहें, लेकिन हाई कोर्ट यदि समिति की सिफारिश को मान लेता है तो स्थिति पूरी तरह से बदल जाएगी। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा विरोधी मोर्चे का चेहरा बनने का जो सपना तृणमूल प्रमुख देख रही हैं, उस पर ग्रहण लग सकता है। यही वजह है कि पेगासस जासूसी फोन टैपिंग मामले को लेकर संसद के अंदर और बाहर, कोलकाता से लेकर दिल्ली तक तृणमूल अन्य विपक्षी दलों की तुलना में अधिक आक्रामक है। इसी को लेकर तृणमूल के राज्यसभा सदस्य शांतनु सेन अति उत्साह में सदन में ऐसा अशोभनीय आचरण कर बैठे कि उन्हें पूरे सत्र के लिए निलंबित होना पड़ा है। यही नहीं, अपने वार्षकि आयोजन 21 जुलाई की शहीद दिवस रैली के अवसर पर विपक्षी नेताओं को आमंत्रित कर ममता ने अपनी रणनीति को और धार देने की कोशिश की है। इन गतिविधियों के बीच भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विरोधी मुहिम को तेज करने के लिए ममता बनर्जी स्वयं भी पांच दिनों के दिल्ली दौरे पर हैं। इस दौरान वह राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिलेंगी। सोनिया गांधी व अन्य विपक्षी पार्टियों के कई नेताओं से भी वह मुलाकात करेंगी। वह कृषि कानून विरोधियों को भी अपना समर्थन देने जाएंगी।

तृणमूल की रणनीति का मुंहतोड़ जवाब देने में भाजपा भी पीछे नहीं है। ममता के दिल्ली दौरे से पहले ही बीते शुक्रवार को भाजपा विधायकों को साथ लेकर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी दिल्ली पहुंच गए। वहां पहुंचने के साथ ही उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लेकर कई केंद्रीय मंत्रियों और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की और चुनाव बाद हिंसा को लेकर पूरी जानकारी दी। संसद के मानसून सत्र में शामिल होने के लिए बंगाल के सभी भाजपा सांसद दिल्ली में हैं और उसी क्रम में सुवेंदु भी विधायकों के साथ दिल्ली पहुंचे हैं। ममता की यात्र से पहले राजधानी में बंगाल के भाजपा नेताओं का जमावड़ा महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि एक तरफ जहां ममता बंगाल की जंग को दिल्ली से लड़ने की कोशिश कर रही हैं तो दूसरी ओर भाजपा ने भी दिल्ली से ही उन्हें जवाब देने की पूरी तैयारी कर ली है। इसकी बानगी 21 जुलाई को ही देखने को मिली।

ममता जब पिछले बुधवार को 1993 में वामपंथी सरकार के कार्यकाल में ‘राइटर्स अभियान’ के दौरान पुलिस फायरिंग में मारे गए 13 कांग्रेस कार्यकर्ताओं की याद में वर्चुअल शहीद रैली कर रही थीं, तो भाजपा के नेता-कार्यकर्ता कोलकाता से लेकर दिल्ली के राजघाट पर चुनाव बाद हिंसा में कथित रूप से तृणमूल के हमले में मारे गए 38 कार्यकर्ताओं की याद में ‘शहीद श्रद्धांजलि दिवस’ मनाते हुए धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। राजघाट पर भाजपा के बंगाल अध्यक्ष दिलीप घोष के नेतृत्व में भाजपा सांसदों ने भी धरना दिया। ममता बनर्जी और बंगाल के भाजपा नेताओं का दिल्ली में जमावड़ा यह बताने के लिए काफी है कि आने वाले समय में क्या होने वाला है। बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा और अन्य मसलों से ध्यान दिल्ली यानी केंद्र सरकार की ओर ले जाने की तृणमूल प्रमुख ने जो कोशिश की है, उसमें वह कितना सफल होती हैं, यह तो वक्त ही बताएगा।

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]


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