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Bengal Politics: बीस वर्ष बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति ‘ममता’ का निहितार्थ

Bengal Politics ममता ने आरएसएस को देशभक्त बताते हुए कहा था- ‘अगर वह (संघ) एक प्रतिशत भी हमें समर्थन कर दे तो हम ‘लाल आतंक’ से लड़ने में कामयाब होंगे।’ उस समय तरुण विजय और बलबीर पुंज ने ममता को ‘दुर्गा’ कहकर संबोधित किया था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 06 Sep 2022 10:21 AM (IST)Updated: Tue, 06 Sep 2022 10:21 AM (IST)
Bengal Politics: बीस वर्ष बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति ‘ममता’ का निहितार्थ
Bengal Politics: मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने की प्रशंसाः आरएसएस के स्वयंसेवक।

कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। Bengal Politics ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) इतना बुरा नहीं है। उसमें सभी खराब नहीं हैं। आरएसएस में कई लोग अच्छे और सच्चे हैं, जो भाजपा का समर्थन नहीं करते। एक दिन वे अपनी चुप्पी तोड़ेंगे।’ पांच दिन पहले कुछ इस तरह से बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने संघ की सराहना की थी। लगभग दो दशक बाद अचानक ममता किस स्वार्थ के वशीभूत होकर संघ की सराहना कर रही हैं, इसके निहितार्थ समझे जा सकते हैं। दूसरी तरफ पंथनिरपेक्षता का दंभ भरने वाली कांग्रेस, माकपा और एआइएमआइएम तृणमूल सुप्रीमो पर निशाना साध रही हैं। इस प्रशंसा में छिपी मंशा को कोई ममता की दोहरी नीति तो कोई हिंदू वोटों को जोड़े रखने का हथकंडा तो कोई भाजपा-आरएसएस समर्थकों के बीच गलतफहमी पैदा करने की चाल बता रहा है।

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प्रश्न यह भी है कि जिस आरएसएस के संघचालक मोहन भागवत को कुछ वर्ष पहले कोलकाता में कार्यक्रम करने की अनुमति नहीं दी जा रही थी। शाखा लगाने से रोकने से लेकर संघ के 125 स्कूलों को बंद करने तक की कोशिशें हो रही थीं। स्वयंसेवकों पर हमले किए जा रहे थे। चार माह पहले तक खुद ममता संघ को दंगाई करार दे रही थीं, फिर अचानक ऐसी प्रशंसा क्यों? यही नहीं, इसी वर्ष मई के मध्य में चार दिवसीय दौरे पर जब भागवत बंगाल गए थे तो ममता बनर्जी ने तंज कसते हुए पुलिस-प्रशासन से कहा था-‘कानून-व्यवस्था का पूरा ध्यान रखा जाए। किसी भी कीमत पर दंगे नहीं भड़कने चाहिए। उन्हें (भागवत को) पूरी सुरक्षा दीजिए, जिससे वे दंगे न भड़काएं।’ साथ ही संघ प्रमुख के लिए फल-मिठाइयां भी भेजने के निर्देश दिए थे और कहा था-‘भागवत को पता चलना चाहिए कि हम अपने मेहमानों का ध्यान रखते हैं, लेकिन उन्हें ज्यादा तवज्जो भी मत दीजिए, वरना इसका गलत फायदा उठाया जा सकता है।’

अब चार माह के भीतर ही ऐसा क्या हो गया कि उन्हें संघ की सराहना को मजबूर होना पड़ा है। ममता की बातों के कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। पहला, शिक्षक भर्ती घोटाले, मवेशी एवं कोयला तस्करी जैसे मामलों में तृणमूल के मंत्री से लेकर कद्दावर नेता तक जेल में बंद हैं। रुपये बरामद हो रहे हैं। मीडिया में दिन-रात यही चर्चा हो रही है। इसीलिए ममता ने ऐसी बातें की हैं, ताकि चर्चा का रुख मोड़ा जा सके। दूसरा, भाजपा में नए और पुराने नेताओं के बीच मतभेद चल रहा है, जिससे संघ के पुराने लोग नाराज हैं। ऐसे में उनकी इस उठापटक का फायदा उठाते हुए दोनों संगठनों के बीच गलतफहमी पैदा की जा सके। तीसरा, भ्रष्टाचार के लग रहे आरोपों के बीच अगले वर्ष होने वाले पंचायत चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में हिंदू वोटों को जोड़े रखना कड़ी चुनौती है। इसीलिए प्रशंसा कर भाजपा के नए नेताओं और कार्यकर्ताओं से नाराज चल रहे संघ के पुराने समर्थकों का समर्थन प्राप्त करने की भी कोशिश मानी जा सकती है।

ममता जानती हैं कि मुस्लिम वोट कहीं नहीं जाने वाला है। इसीलिए वह खुलकर दुर्गापूजा और संघ को लेकर बातें कर रही हैं। चौथा, तुष्टीकरण से पीछा छुड़ाने के लिए पिछले डेढ़ साल से ममता साफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेल रही हैं। चुनावी मंच से चंडीपाठ, मंदिरों में जाना, 43 हजार दुर्गापूजा समितियों को 60-60 हजार रुपये का सरकारी अनुदान, दुर्गापूजा के लिए पदयात्रा निकालना साफ दर्शा रहा है कि वह संदेश पहुंचा रही हैं। ममता ने ऐसे वक्त में ये बयान दिया है, जब शिक्षक भर्ती घोटाले में उनके विश्वासपात्र पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी जेल में हैं। उनके एक और भरोसेमंद नेता अनुब्रत मंडल मवेशी तस्करी कांड में गिरफ्तार हैं। कोयला घोटाले में उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी से पूछताछ हुई है। कई और नेता-विधायक केंद्रीय एजेंसियों के रडार पर हैं।

यही नहीं, ममता के दो भाइयों के अलावा तृणमूल के 19 नेता, मंत्री और विधायकों की 2011 से 2016 के बीच संपत्तियों में भारी वृद्धि का आरोप लगाते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है। इसी बीच सरकारी जमीन पर कब्जा करने के आरोपों से ममता इतनी क्षुब्ध हो गईं कि पिछले बुधवार को प्रेस कांफ्रेंस में कह दिया-‘मैं मुख्य सचिव को जांच का निर्देश देती हूं। अगर मैंने जमीन पर कब्जा किया है तो बुलडोजर चला दें।’ इसी क्रम में उन्होंने भाजपा पर तीखा हमला किया और संघ की प्रशंसा की।

बताते चलें कि इससे पहले सितंबर 2003 में एक किताब के विमोचन में ममता को उस समय ‘पाञ्चजन्य’ के संपादक तरुण विजय ने बुलाया था। उस मंच पर आरएसएस के कई दिग्गज मदन दास देवी, मोहन भागवत, एचवी शेषाद्री और भाजपा के तत्कालीन राज्यसभा सदस्य बलबीर पुंज भी मौजूद थे। वहां ममता ने आरएसएस को देशभक्त बताते हुए कहा था- ‘अगर वह (संघ) एक प्रतिशत भी हमें समर्थन कर दे तो हम ‘लाल आतंक’ से लड़ने में कामयाब होंगे।’ उस समय तरुण विजय और बलबीर पुंज ने ममता को ‘दुर्गा’ कहकर संबोधित किया था। हालांकि संघ की हालिया प्रशंसा पर संघ के प्रचारक रहे और वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा है कि न तो पार्टी और न ही आरएसएस को ममता के प्रमाणपत्र की जरूरत है।

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]


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