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अपने खत्म हो रहे अस्तित्व को बचाने के लिए वामपंथियों की बंगाल में दोहरी परेशानी

Bengal Politcs वामपंथियों के लिए पश्चिम बंगाल में दोहरी परेशानी है। एक तरफ कांग्रेस की तृणमूल से बढ़ती नजदीकी है तो दूसरी ओर समाप्त हो चुका जनाधार है। ऐसे में माकपा किस ओर जाए इसे लेकर परेशान है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 30 Jul 2021 12:38 PM (IST)Updated: Fri, 30 Jul 2021 12:38 PM (IST)
अपने खत्म हो रहे अस्तित्व को बचाने के लिए वामपंथियों की बंगाल में दोहरी परेशानी
बंगाल में अब भाजपा मुख्य विपक्षी दल बन चुकी है।

कोलकाता, स्टेट ब्यूरो। 34 वर्षो तक शासन करने वाले राज्य में ही वामपंथी अप्रासंगिक हो जाएंगे, शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा। बंगाल में इन दिनों माकपा नेतृत्व वाले वाममोर्चा की हालत दयनीय है। वाममोर्चा ने पहले जिस कांग्रेस के खिलाफ 2011 तक लड़ाई लड़ी उसी के साथ 2016 और 2021 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन किया। अब हालात यह है कि अपने खत्म हो रहे अस्तित्व को बचाने के लिए भाजपा विरोध के नाम पर किसी भी दल यहां तक कि धुर विरोधी तृणमूल कांग्रेस के साथ भी वह हाथ मिलाने के लिए तैयार है।

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वामपंथियों के लिए बंगाल में दोहरी परेशानी है। एक तरफ कांग्रेस की तृणमूल से बढ़ती नजदीकी है तो दूसरी ओर समाप्त हो चुका जनाधार है। ऐसे में माकपा किस ओर जाए इसे लेकर परेशान है। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव के बाद अपने रुख में बदलाव करते हुए माकपा ने संकेत दिया है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा से लड़ने के लिए तृणमूल कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने को भी तैयार है।

सत्तर सालों में पहली बार है, जब बंगाल विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों का एक भी सदस्य जीत कर सदन नहीं पहुंचा है। माकपा के नेतृत्व वाले वाममोर्चा, कांग्रेस और नवगठित इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आइएसएफ) ने एक मोर्चा बनाया था और विधानसभा चुनाव लड़ा था। इन पार्टियों ने घोषणा की थी कि तृणमूल और भाजपा दोनों ही उनके प्रमुख दुश्मन हैं। पर बुरी तरह हार हुई। वाम दल की तरह कांग्रेस भी राज्य विधानसभा चुनाव में कोई सीट नहीं जीत पाई है। बंगाल में कांग्रेस भी अस्तित्व संकट की लड़ाई लड़ रही है। यदि प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी को छोड़ दिया जाए तो इस समय बंगाल में कांग्रेस के लिए जनाधार वाले नेताओं का घोर अकाल है। कुछ नेता थे भी तो उन्हें तृणमूल कांग्रेस तोड़ चुकी है। इसके बावजूद कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व तृणमूल कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने को बेकरार है। ऐसे में वामपंथियों के साथ कांग्रेस का गठबंधन समाप्त हो जाएगा। यही वजह है कि वामपंथी दलों के नेता परेशान हैं।

इसी के मद्देनजर जब माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य व वाममोर्चा अध्यक्ष बिमान बोस से पूछा गया कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए माकपा तृणमूल कांग्रेस से हाथ मिलाएगी? इस पर उनका जवाब था कि हम किसी भी भाजपा विरोधी पार्टी के साथ काम करने के लिए तैयार हैं। इसे मजबूरी नहीं तो और क्या कहा जाएगा? क्योंकि बंगाल में अब भाजपा मुख्य विपक्षी दल बन चुकी है।


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