बंगाल में विपक्षी भाजपा और माकपा का राज्य चुनाव आयोग पर निशाना, कहा- टीएमसी के इशारे पर करती है काम
बंगाल में विपक्षी भाजपा और माकपा ने शनिवार को राज्य चुनाव आयोग (एसइसी) पर निशाना साधते हुए कहा कि उसे बंगाल में चार नगर निगमों में मतदान तीन सप्ताह से अधिक समय के लिए स्थगित कर देना चाहिए था।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता : बंगाल में विपक्षी भाजपा और माकपा ने शनिवार को राज्य चुनाव आयोग (एसइसी) पर निशाना साधते हुए कहा कि उसे बंगाल में चार नगर निगमों में मतदान तीन सप्ताह से अधिक समय के लिए स्थगित कर देना चाहिए था। विपक्षी दलों ने कहा कि आयोग द्वारा चुनाव की तारीख को महज तीन हफ्ते के लिए टालने से यह साबित हो गया कि राज्य चुनाव आयोग की कोई आवाज नहीं है।
सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) द्वारा उसकी आवाज तय की जाती है। राज्य चुनाव आयोग ने शनिवार को चार नगर निगमों के लिए मतदान को 22 जनवरी की बजाय तीन सप्ताह के लिए 12 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दिया। दरअसल कलकत्ता हाई कोर्ट ने राज्य में कोविड-19 मामलों में वृद्धि के मद्देनजर एक दिन पहले राज्य चुनाव आयोग को चार नगर निगमों के चुनाव चार से छह सप्ताह के लिए टालने की संभावना तलाशने को कहा था। इसके बाद राज्य सरकार ने आज दिन में आयोग को एक पत्र देकर चुनाव की तारीखों को फिर से निर्धारित करने के लिए अपनी सहमति दी।
साथ ही आयोग से 12 फरवरी को चुनाव कराने का अनुरोध किया। वहीं, आयोग ने राज्य सरकार के अनुरोध को स्वीकार करते हुए 12 फरवरी को ही मतदान कराने का एलान कर दिया। इससे विपक्षी दल बिफरे हुए हैं। माकपा के राज्यसभा सदस्य विकास रंजन भट्टाचार्य ने संवाददाताओं से कहा कि चुनाव स्थगित करने का एसइसी का फैसला इस बात का प्रमाण है कि चुनाव आयोग स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम नहीं है और हमेशा सत्ताधारी दल के निर्देशों का इंतजार करता है। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट ने चार नगर निगमों के चुनाव चार से छह सप्ताह के लिए टालने की सिफारिश की थी। लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं कि राज्य सरकार चाहती थी कि यह तीन सप्ताह के बाद हो। एसइसी ने साबित कर दिया है कि वह स्वतंत्र रूप से कोई निर्णय नहीं ले सकता है।
हालांकि, उम्मीद है कि 12 फरवरी को मतदान होने पर कोरोना से स्थिति और खराब नहीं होगी। इसी तरह प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य ने भी कहा कि हाई कोर्ट ने चुनाव चार से छह सप्ताह के लिए टालने की सिफारिश की थी। लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं कि राज्य सरकार जो चाहती थी आयोग ने वैसा ही किया है। इससे आयोग ने फिर साबित कर दिया है कि वह स्वतंत्र रूप से कोई निर्णय नहीं ले सकता है।