बंगाल में एक और नरसंहार: रक्तरंजित इतिहास-छोटा अंगारिया में 11 लोगों को घर में बंद कर जिंदा जला दिया गया था
बीरभूम के ही नानूर में 11 लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी वामपंथी शासनकाल के दौरान 2001 को अंगारिया गांव में एक घर में आग लगा दी गई थी जिसमें तृणमूल के पांच कार्यकर्ताओं समेत 11 लोगों को जिंदा जलाकर हत्या करने का आरोप माकपाइयों पर लगा था।
कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। बंगाल में राजनीतिक हत्या और हिंसा का इतिहास नया नहीं है। पिछले साढ़े पांच दशकों से राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में हत्या और हिंसा का बंगाल में हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। इस दौरान सत्ता संभालने वाले चेहरे जरूर बदलते रहे, लेकिन उनकी चाल और रक्त चरित्र रत्ती भर नहीं बदला। उसी का परिणाम यह नरसंहार है। रामपुरहाट एक नंबर प्रखंड के ग्राम पंचायत के उपप्रमुख व तृणमूल कांग्रेस नेता भादू शेख की सोमवार शाम बम मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद शेख के बगटूई गांव में हिंसा शुरू हो गई, जो रातभर जारी रही। गांव में कई घरों का दरवाजा बंदकर आग लगा दी गई, जिसमें कई लोग जिंदा जल गए। पुलिस के मुताबिक आठ मरे हैं जबकि अग्निशमन विभाग 10 और स्थानीय लोगों के मुताबिक 12 लोगों के मारे जाने की खबर हैं, जिनमें बच्चे व महिलाएं भी शामिल हैं। ऐसे जले हैं कि मृतकों में कौन पुरुष हैं और कौन महिला, यह पहचानना मुश्किल हो रहा है।
इस घटना ने दो दशक पहले हुए पश्चिम मेदिनीपुर जिले के छोटा अंगारिया और बीरभूम जिले के ही नानूर के नरसंहार की याद ताजा कर दी है। वहां माकपा पर आरोप लगे थे और यहां तृणमूल के ही दो गुटों के बीच विवाद की बातें कही जा रही है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मरने वाले सभी मुस्लिम ही समुदाय के बताए जा रहे हैं।
2001 में 11 लोगों को जिंदा जला दिया गया था
वामपंथी शासनकाल के दौरान चार जनवरी, 2001 को पश्चिम मेदिनीपुर जिले के गड़बेत्ता थाना क्षेत्र के छोटा अंगारिया गांव में एक घर को घेरकर उसमें आग लगा दी गई थी, जिसमें तृणमूल के पांच कार्यकर्ताओं समेत 11 लोगों को जिंदा जलाकर हत्या करने का आरोप माकपाइयों पर लगा था। उस समय माकपा का राज्य में एकछत्र राज था। विरोधी दलों की हिम्मत नहीं थी कि वे माकपा के खिलाफ मुंह भी खोल सके। माकपाइयों के भय से घर छोडऩे वाले पांच तृणमूल कार्यकर्ता आश्वासन मिलने के बाद गांव लौटे थे। इसके बाद वे लोग गांव के ही वक्ता मंडल नामक एक व्यक्ति के घर में शाम को बैठक कर रहे थे। उसी समय वहां आग लगा दी गई थी। तत्कालीन विपक्ष की नेता ममता बनर्जी ने आरोप लगाया था कि माकपाइयों ने आग लगाई थी और इस तरह से 11 लोगों का नरसंहार किया गया और लालबत्ती लगी गाडिय़ों से शवों को गायब कर दिया गया। इस घटना को लेकर काफी हंगामा हुआ था। ममता उस वक्त केंद्र में भाजपा के साथ राष्ïट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल थीं और उन्होंने सीबीआइ जांच की मांग करते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। बाद में सीबीआइ जांच के आदेश दिए गए थे।
वर्ष 2000 में नानूर में 11 लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी
इससे कुछ माह पहले ही जुलाई, 2000 में बीरभूम जिले के नानूर में तृणमूल कांग्रेस के 11 अल्पसंख्यक समर्थकों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। उस मामले में 82 माकपा कार्यकर्ताओं को आरोपित बनाया गया था और 42 लोग दोषी करार दिए गए थे। उसके बाद 14 मार्च, 2007 को नंदीग्राम में अधिग्रहण का विरोध कर रहे 14 गांव वाले पुलिस की गोलीबारी में मारे गए थे। इसके बाद अब ममता के शासनकाल में यह नरसंहार हुआ है।