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Bengal Election Result: बंगाल में क्‍यों हो गया कांग्रेस व वाममोर्चा का सफाया?

Bengal Election Result माकपा के वरिष्ठ नेता सुजन चक्रवर्ती ने माना कि यह चुनाव वामदलों के लिए बंगाल में सबसे कठिन राजनीतिक लड़ाई रही। उन्होंने कहा कि हमने कभी इस हालत में पहुंचने की कल्पना तक नहीं की थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sun, 02 May 2021 09:30 PM (IST)Updated: Mon, 03 May 2021 08:26 AM (IST)
कांग्रेस और वाममोर्चा ने 2016 के चुनाव 76 सीटें जीती थी

इंद्रजीत सिंह, कोलकाता। Bengal Election Result विधानसभा चुनाव 2021 में कांग्रेस, वाममोर्चा व आइएसएफ गठबंधन का सूपड़ा साफ हो गया। राजनीतिक पर्यवेक्षक तो पहले से ही ऐसी अटकलें लगा रहे थे, जिस पर रविवार को आए चुनाव नतीजे ने मुहर लगा दी। आलम यह रहा कि संयुक्त मोर्चे का खाता भी नहीं खुला। सियासी जानकारों के मुताबिक अल्पसंख्यक वोट पूरी तरह तृणमूल की तरफ शिफ्ट हो जाने के कारण ही राज्य से कांग्रेस व वाममोर्चा गठबंधन का सफाया हुआ है।

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कांग्रेस और वाममोर्चा ने 2016 का विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था जिसमें वे 294 में से 76 सीटें जीतने और करीब 39 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रहे थे। कांग्रेस ने 44 सीटें जीती थी, वहीं वाममोर्चा को 32 सीटें मिली थी। लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में दोनों दलों को सीट मिलने की बात तो दूर वोट प्रतिशत भी गिरकर आठ फीसद के आसपास पहुंच गया। कांग्रेस को तीन फीसद तथा वाममोर्चा को पांच फीसद के आसपास वोट मिला।

लगातार निराशाजनक प्रदर्शन

-2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों दलों का कुल वोट शेयर 12 फीसद पर सिमट गया था। सीटों के मामले में वाममोर्चा खाली हाथ ही रहा था। कांग्रेस राज्य की 42 संसदीय सीटों में से सिर्फ दो सीटें जीतने में सफल रही थी। 2019 के लोकसभा चुनावों में वाम दलों ने 6.34 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया जो 2016 के विधानसभा चुनावों में 26 प्रतिशत की तुलना में एक बड़ी गिरावट थी। वाममोर्चा न केवल एक भी सीट जीतने में नाकाम रहा, बल्कि किसी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त तक हासिल नहीं कर पाया। 2016 में मिले 12.25 प्रतिशत की तुलना में 2019 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटकर 5.67 फीसद रह गया।

अस्तित्व के लिए करना पड़ रहा संघर्ष

यहां यह बताना लाजिमी है कि वाममोर्चा, जिसने 34 साल (1977-2011) तक पश्चिम बंगाल पर शासन किया, आज नौबत यह है कि आज उसे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इस चुनाव में वामो राजनीतिक इतिहास में अपने सबसे खराब प्रदर्शन का गवाह बना है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों की राय में इसके पीछे कई वजहें हैं। एक तो यह कि माकपा नित वामो इन दिनों गंभीर नेतृत्व संकट से जूझ रहा है, दूसरा पार्टी के कार्यकर्ता दूसरे दलों (तृणमूल-भाजपा) में शामिल हो गए हैं।

प्रचार में रह गई कसर

इस बार कांग्रेस व माकपा गठबंधन ने कई जगहों पर चुनावी जनसभाएं की। लेकिन जिस रफ्तार में तृणमूल प्रमुख व सीएम ममता बनर्जी और पीएम नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह ने चुनावी सभाएं की उसके मुकाबले कांग्रेस व माकपा गठबंधन का प्रचार अभियान बेहद कमजोर रहा। इसके अलावा अल्पसंख्यक वोट पूरी तरह तृणमूल की तरफ शिफ्ट हो जाने के कारण ही इस बार के चुनाव में कांग्रेस व वाममोर्चा ऐसी हालत में पहुंच गए।

अनुमान के अनुरूप नहीं रहा प्रदर्शन

माकपा के वरिष्ठ नेता सुजन चक्रवर्ती ने माना कि यह चुनाव वामदलों के लिए बंगाल में सबसे कठिन राजनीतिक लड़ाई रही। उन्होंने कहा कि हमने कभी इस हालत में पहुंचने की कल्पना तक नहीं की थी। वहीं, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि नतीजे ने बंगाल में पार्टी को आत्ममंथन करने पर मजबूर कर दिया है।


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