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Bengal Assembly Elections 2021: एक चौथाई सीटों पर निर्णायक भूमिका में हिंदी भाषी वोटर

Bengal Assembly Elections 2021 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद पार्टी ने पश्चिम बंगाल के हिंदी भाषियों में पैठ बनानी शुरू की। 2019 में लोकसभा में भाजपा को मिली सफलता में हिंदी भाषी वोटों का अहम योगदान माना जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 23 Mar 2021 09:53 PM (IST)Updated: Wed, 24 Mar 2021 08:51 AM (IST)
Bengal Assembly Elections 2021: एक चौथाई सीटों पर निर्णायक भूमिका में हिंदी भाषी वोटर
2019 में लोकसभा में भाजपा को मिली सफलता में हिंदी भाषी वोटों का अहम योगदान माना जाता है।

इंद्रजीत सिंह, कोलकाता। Bengal Assembly Elections 2021 बांग्ला भाषा बहुल प्रदेश बंगाल में कई ऐसे इलाके हैं, जहां मिनी बिहार, मिनी यूपी तो कहीं मिनी राजस्थान बसता है। चुनाव में भी हिंदी भाषा-भाषी अहम भूमिका निभाते हैं। बंगाल इनकी कर्मभूमि बन चुकी है। इन्होंने न जाने कितने इलाकों को आबाद किया है। यहां की कुल आबादी में 1.5 करोड़ हिंदी भाषी हैं। कुल विधानसभा सीटों में 70-80 सीटें ऐसी हैं जहां ये हिंदी भाषी निर्णायक भूमिका में हैं। कई विधानसभा क्षेत्रों में हिंदी भाषियों की बड़ी जनसंख्या के मद्देनजर राजनीतिक दल इन वोटरों को लुभाने के लिए जी-जान से जुटे हुए हैं।

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बंगाल की आबादी करीब 11 करोड़ है और इसमें सवा करोड़ से ज्यादा हिंदी भाषी हैं। बंगाल में कई ऐसी सीटें हैं जहां बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लोग हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। इनमें आसनसोल, बैरकपुर, श्रीरामपुर, उत्तर कोलकाता, हावड़ा, दमदम, कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, अलीपुरदुआर, दुर्गापुर, जादवपुर व दार्जिलिंग आदि प्रमुख क्षेत्र हैं। हुगली नदी के दोनों किनारे जूट मिल इलाकों में बड़ी संख्या हिंदी भाषियों की आबादी है। हिंदी बहुल विधानसभा क्षेत्रों में लगभग 35 फीसद हिंदी भाषा-भाषी मतदाता हैं। राज्य की कुल 294 लोकसभा सीटों में लगभग 70 से 80 सीटों पर हिंदी भाषा-भाषियों के वोट उम्मीदवारों की जीत-हार तय करते हैं। हिंदी भाषियों का प्रभाव इसी से पता चलता है कि कोलकाता के ज्यादातर बड़े उद्योगपति गैर बंगाली हैं। ये राजस्थान-बिहार जैसे राज्यों से यहां आकर बसे हैं। एशिया के सबसे बड़े व्यावसायिक केंद्र बड़ा बाजार पर भी हिंदी भाषी कारोबारियों खासकर राजस्थानियों का प्रभुत्व है।

राज्य में हिंदीभाषियों का प्रतिनिधित्व नगण्य

कई विधानसभा क्षेत्रों में बड़ा फैक्टर होने के बावजूद राजनीतिक दलों व उम्मीदवारों में हिंदी भाषियों का प्रतिधिनित्व लगभग नगण्य ही है। तीन दशकों से अधिक वामो के शासन काल में या फिर 10 वर्षो की तृणमूल सरकार में ¨हदीभाषी जनप्रतिनिधियों की संख्या गिनी-चुनी ही रही है। हालांकि इस बार विधानसभा चुनाव में तस्वीर अलग है। भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की सूची ¨हदीभाषियों को तवज्जो दिया है।

हिंदी भाषियों को होना होगा संगठित : त्रिभुवन मिश्रा

बंगाल में हिंदी भाषियों के प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन राष्ट्रीय भोजपुरिया एकता मंच के महासचिव त्रिभुवन मिश्रा का कहना है कि बंगाल में हिंदी भाषा-भाषियों की बड़ी जनसंख्या है, लेकिन जनसंख्या के अनुपात में उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। इसके लिए हिंदी भाषियों को संगठित होना होगा। उन्होंने कहा कि बंगाल में मतदान का प्रतिशत औसत 75 से 80 फीसद है,लेकिन प्राय: ही देखा जाता है कि हिंदी बहुल क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम होता है।

हिंदी भाषी वोटरों पर तृणमूल ने डाले डोरे

ममता बनर्जी हिंदी भाषियों के वोट बैंक को फिर से अपना बनाना चाहती हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जनवरी में हिंदी भाषियों को अपने दफ्तर में बुलाया था और उनसे तृणमूल को समर्थन देने की अपील की थी। ममता पूर्वी भारत का पहला हिंदी विश्र्वविद्यालय शुरू करने का काम भी कर चुकी हैं। हिंदी प्रकोष्ठ की स्थापना भी की गई है, ताकि हिंदी भाषियों की दिक्कतों को दूर किया जा सके। हिंदी अकादमी को भी नया रूप दिया गया। राज्य सरकार ने छठ पूजा पर यहां दो दिनों की छुट्टी कर रखी है।

हिंदी भाषियों में भाजपा भी बना रही है पैठ

2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद पार्टी ने पश्चिम बंगाल के हिंदी भाषियों में पैठ बनानी शुरू की। 2019 में लोकसभा में भाजपा को मिली सफलता में हिंदी भाषी वोटों का अहम योगदान माना जाता है।


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