राज्य ब्यूरो, कोलकाता : माकपा का छात्र संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआइ) चुनाव प्रचार को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की रचना 'सहज पाठ' का सहारा ले रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि 1980 के दशक के शुरुआत में माकपा की अगुआई वाली तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने ही सहज पाठ को स्कूल के पाठ्यक्रम से हटा दिया था। बंगाल के तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थ दे की तत्परता और स्टेट काउंसिल फॉर एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग की सिफारिश पर यह निर्णय लिया गया था। उस वक्त इसका तीव्र प्रतिवाद हुआ था।
इतिहासकार निहार रंजन राय, नेशनल लाइब्रेरी के पूर्व अधिकारी रवींद्र कुमार दासगुप्ता, नाट्यकर्मी तृप्ति मित्रा, रवींद्र संगीत कलाकार सुचित्रा मित्रा समेत अन्य ने इसके खिलाफ आवाज उठाई थी।
तीव्र प्रतिवाद को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने इस निर्णय को वापस ले लिया था हालांकि पाठ्यक्रम में इसे संक्षिप्त कर दिया गया था। 2011 में सत्ता परिवर्तन के बाद जब ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनी, तब इसे पाठ्यक्रम में अनिवार्य कर दिया गया।
गौरतलब है कि सहज पाठ को 1930 में स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था। इसमें बहुत सी मूल बातों को बेहद आसान तरीके से बताया गया है। एसएफआइ इसका अनुसरण कर जनता के सामने माकपा के विचारों को रखने की कोशिश कर रहा है।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के समय बंगाल भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने सहज पाठ को गलती से टैगोर की जगह ईश्वर चंद्र विद्यासागर की कृति कह डाला था, जिसे लेकर उनकी काफी निंदा हुई थी। एसएफआइ का कहना है कि आसान व आकर्षक शब्दों में मतदाताओं के समक्ष अपनी बातें रखने के लिए सहज पाठ का सहारा लिया जा रहा है।
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