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बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाने की मानसिकता वाले अभिभावकों को अम‌र्त्य ने दी सीख

अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाने की मानसिकता रखने वाले नई पीढ़ी के अभिभावकों को नोबल पदक विजयी अर्थशास्त्री अम‌र्त्य सेन ने सीख दी है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 11 Jul 2018 10:24 AM (IST)Updated: Wed, 11 Jul 2018 03:59 PM (IST)
बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाने की मानसिकता वाले अभिभावकों को अम‌र्त्य ने दी सीख
बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाने की मानसिकता वाले अभिभावकों को अम‌र्त्य ने दी सीख

कोलकाता, जागरण संवाददाता। अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाने की मानसिकता रखने वाले नई पीढ़ी के अभिभावकों को नोबल पदक विजयी अर्थशास्त्री अम‌र्त्य सेन ने सीख दी है।

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मंगलवार को महानगर में 'पश्चिम बंगाल में प्राथमिक शिक्षा : परिवर्तन की संभावनाएं' विषयक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा-'मैंने बांग्ला माध्यम स्कूल में पढ़ाई की है लेकिन मुझे इस बात का जरा भी मलाल नहीं है बल्कि इसपर गर्व है।'

पढ़ाई के माध्यम को लेकर जो लोग कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोलते हैं, उन्हें पहले अपनी आंखें खोलनी चाहिए। सेन ने कहा कि शिष्य-शिक्षक अनुपात अभी बेहतर स्थिति में है। 

अमर्त्य सेन का जन्म 3 नवम्बर, 1933 को कोलकाता के शांति निकेतन में एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम आशुतोष सेन और माता का नाम अमिता सेन था। गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर ने अमर्त्य का नामकरण किया था। सेन के परिवार का सम्बन्ध वारी और मानिकगंज (अब बांग्लादेश में) से था। अमर्त्य के पिता आशुतोष सेन ढाका विश्वविद्यालय में रसायन शाष्त्र के प्रोफेसर थे और सन 1945 में परिवार के साथ पश्चिम बंगाल चले गए और पश्चिम बंगाल लोक सेवा आयोग (अध्यक्ष) और फिर संघ लोक सेवा आयोग में कार्य किया। अमर्त्य की माता क्षिति मोहन सेन की पुत्री थीं, जो प्राचीन और मध्यकालीन भारत के जाने-माने विद्वान् थे और रविंद्रनाथ टैगोर के करीबी भी।

अमर्त्य की प्रारंभिक शिक्षा सन 1940 में ढाका के सेंट ग्रेगरी स्कूल से प्रारंभ हुई। सन 1941 से उन्होंने विश्व भारती यूनिवर्सिटी स्कूल में पढ़ाई की। वे आई.एस.सी. परीक्षा में प्रथम आये और उसके बाद कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। वहां से उन्होंने अर्थशाष्त्र और गणित में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की और सन 1953 में वे कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज चले गए जहाँ उन्होंने अर्थशाष्त्र में दोबारा बी.ए. किया और अपनी कक्षा में प्रथम रहे।

अमर्त्य सेन कैंब्रिज मजलिस का अध्यक्ष भी चुने गए। जब वे कैंब्रिज में पी.एच.डी. के छात्र थे उसी दौरान उन्हें नव-स्थापित जादवपुर विश्वविद्यालय से अर्थशाष्त्र के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष बनने का प्रस्ताव आया। उन्होंने सन 1956-58 तक यहाँ कार्य किया। इसी दौरान सेन को ट्रिनिटी कॉलेज से एक प्रतिष्ठित फ़ेलोशिप मिली जिसने उन्हें अगले चार साल तक कुछ भी करने की स्वतंत्रता दे दी जिसके बाद अमर्त्य ने दर्शन पढ़ने का फैसला किया। 

अर्थशाष्त्र में उनके कार्यों के लिए सन 1998 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन 1999 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया। प्रोफेसर अमर्त्य सेन 1970 के दशक से ही यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका में अध्यापन कार्य कर रहे हैं। सन 2015 में ब्रिटेन के रॉयल अकैडमी ने उन्हें प्रथम ‘चार्ल्सटन-इ.एफ.जी. जॉन मेनार्ड कीन्स पुरस्कार’ से सम्मानित किया।

वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और दर्शन शाष्त्र के प्रोफेसर रहे। वे नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी रह चुके हैं। वे ‘हार्वर्ड सोसाइटी ऑफ़ फेल्लोस’ में एक वरिष्ठ फेल्लो, आल सोल्स कॉलेज ऑक्सफ़ोर्ड में एक विशिष्ट, डार्विन कॉलेज कैंब्रिज में मानद फेल्लो और ट्रिनिटी कॉलेज में भी फेल्लो रह चुके हैं। इसके अलावा सन 1998 से लेकर सन 2004 तक अमर्त्य सेन ट्रिनिटी कॉलेज के मास्टर भी रहे।


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