दुर्घटना की सजा: जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने दी सजा, किशोर को करना होगा ट्रैफिक नियंत्रण
बिना ड्राइविंग लाइसेंस (डीएल) के एंबुलेंस चलाने का दोषी पाए गए एक किशोर को कलकत्ता जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने अजीबोगरीब सजा सुनाई है।
कोलकाता, जागरण संवाददाता। बिना ड्राइविंग लाइसेंस (डीएल) के एंबुलेंस चलाने का दोषी पाए गए एक किशोर को कलकत्ता जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने अजीबोगरीब सजा सुनाई है। बोर्ड के मुख्य न्यायाधीश ने आरोपित को ट्रैफिक सिग्नल पर खड़े होकर लगातार 10 दिनों तक ट्रैफिक वोलेंटियर के तौर पर ड्यूटी करते हुए ट्रैफिक नियंत्रण का कार्य करना होगा।
घटना के बारे में बताया जाता है कि कोलकाता के चेतला इलाके का रहनेवाला उक्त किशोर डेढ़ साल पहले बिना ड्राइविंग लाइसेंस के एंबुलेंस चलाते हुए पकड़ा गया था और उसने एक ट्रैफिक सार्जेट को धक्का मार दिया था। उस समय वह नाबालिग था और उसकी आयु साढ़े 16 साल थी। अभी हाल में वह 18 साल का हुआ है और जुवेनाइल बोर्ड ने उसे यह सजा सुनाई है।
एंबुलेंस में हेल्पर का कार्य कर रहा था किशोर :
जानकारी के अनुसार, वह एंबुलेंस में हेल्पर का काम करता था। एक दिन वह रोगी को उतारने के बाद खुद ही एंबुलेंस चलाते हुए गैरेज करने के लिए जा रहा था। तभी चेतला इलाके में एक ट्रैफिक सार्जेट को ठोकर मार दिया। उस दौरान पुलिस ने उसे गिरफ्तार करते हुए एंबुलेंस को जब्त कर लिया था। पुलिस ने उसके खिलाफ मामला दर्ज करते हुए जुवेनाइल कानून के तहत मुकदमा चलाने की मांग की। इसी मामले में सुनवाई के बाद बोर्ड ने यह सजा सुनाई है।
उसे किसी एक ट्रैफिक सार्जेट के अधीन ट्रैफिक सिग्नल पर वाहनों को नियंत्रित करने की ड्यूटी करनी होगी। जुवेनाइल बोर्ड ने भवानीपुर ट्रैफिक गार्ड को निर्देश देते हुए आज यानी सोमवार तक ही उसकी ड्यूटी निर्धारित करने को कहा था। यानी आरोपित किस सिग्नल पर ड्यूटी करेगा इसे तय करने की जिम्मेदारी दी है। सजा के दौरान आरोपित को यह समझना होगा कि आखिर कैसे वाहन चलाया जाना चाहिए या चलाया जाता है।
पहले भी छह किशोरों को मिली थी अजीब सजा : बताया जाता है कि कलकत्ता जुवेनाइल बोर्ड ने इससे पहले 17 जुलाई 2017 को भी बिना डीएल के वाहन चलाने के दोषी पाए गए 6 नाबालिगों को इसी तरह की अजीब सजा सुनाई थी। इसमें सभी आरोपितों को किसी सरकारी अस्पताल में आने वाले सड़क दुर्घटना में घायल मरीजों की केस स्टडी लिखने की सजा दी थी।
इनमें से 4 अभियुक्त अपनी सजा काट चुके है जबकि 2 अभी नेशनल मेडिकल कॉलेज में सजा काट रहे हैं। यह दोनों आरोपी पार्क सर्कस का रहनेवाला है। इनमें एक 17 जबकि दूसरा 16 साल का है। मेडिकल कॉलेज के मेडिकल ऑफिसर शांतनु चटर्जी ने बताया कि इमरजेंसी में आने वाले घायल मरीज जो कम जख्मी होते होते हैं उनका केस स्टडी लिखने की की जिम्मेदारी दोनों को दी गई है।
मरीजों के परिवार का दर्द भी उन्हें समझने को कहा गया है ताकि उन्हें अनुभव हो सके और दूसरों को भविष्य में वह प्रेरित करें ताकि कोई दुर्घटना का शिकार होने से बच सके। इधर, शिशु रक्षा अधिकार के लिए कार्य करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता स्मिता सेन ने कहा कि यह बेनजीर सजा है।