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आप भी पढ़िए, बंधक बने 4 लोगों के देश लौटने की रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी

ठेकेदार के बंधन से भागकर पड़ोसी देश में तीन दिनों तक पहाड़ की कंदराओं व गुफाओं में खुद को छिपते- छिपाते भूखे- प्यासे सफर तय किया, रोंगटे खड़े कर देने वाला वाकया है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 30 Jun 2018 11:38 AM (IST)Updated: Sat, 30 Jun 2018 02:25 PM (IST)
आप भी पढ़िए, बंधक बने 4 लोगों के देश लौटने की रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी

आसनसोल, जेएनएन। रोजगार की तलाश में भूटान जाकर बंधक बने प्रसेनजीत समेत चार लोग पूरे 36 दिनों बाद वापस आसनसोल सुरक्षित लौट आए हैं। लेकिन उनका लौटना किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। ठेकेदार के बंधन से भागकर भूटान में तीन दिनों तक पहाड़ की कंदराओं व गुफाओं में छिपते- छिपाते एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ और ठेकेदार व उनके गुर्गों से बचते हुए भूखे-प्यासे जिस तरह सफर तय किया है वह रोंगटे खड़े कर देने वाला है।

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शुक्रवार को परिजनों के साथ उन लोगों ने प्रशासनिक अधिकारियों व पुलिस के पास पहुंचकर सुरक्षित लौट आने की जानकारी दी।

मालूम हो कि लेबर सप्लायर का कार्य करने वाला बर्नपुर निवासी प्रसेनजीत चक्रवर्ती गत 22 मई को तीन स्थानीय मजदूरों को लेकर भूटान के पारो शहर के पानबेसिया गया था। उसे बांकुड़ा के आलोक चक्रवर्ती ने वहां भेजा था। वहां ठेकेदार कुतुश मियां के यहां मजदूरों को छोड़कर प्रसेनजीत ने वापस लौटना चाहा तो उसे भी बंधक बना लिया और जी तोड़ मेहनत कराए जाने के साथ ही मारपीट की जाने लगी।

इस संबंध में सबसे पहले गत 12 जून को दैनिक जागरण से प्रमुखता से खबर प्रकाशित की थी। इसके बाद प्रशासनिक महकमे ने भी संज्ञान लिया और हीरापुर थाने में मामला दर्ज हुआ। बाद में राज्य मुख्यालय को भी पत्र दिया गया।

मीडिया में खबर आने और सरकार की ओर से दबाव पड़ने पर कुटुस मियां बौखला गया और प्रसेनजीत व उनके साथियों को बुरे परिणाम की धमकी देने लगा। उनसे दिन-रात कड़ी मेहनत कराए जाने के कारण वे बीमार हो गए। बावजूद उनको घर नहीं लौटने दिया जा रहा था, न ही इलाज हो रहा था। और तो और उनको दो वक्त का भोजन भी नहीं मिल रहा था। काम में असमर्थता जताने पर उनकी चाबुक से पिटाई की जा रही थी। किसी प्रकार बंधक बने ठेकेदार प्रसेनजीत चक्रवर्ती ने घरवालों से फोन पर संपर्क कर बचाने की गुहार लगाई। उनके घरवालों ने हीरापुर थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। डीएम कार्यालय में भी जाकर परिजनों ने सभी की वापसी की गुहार लगाई थी। 

सोमवार को रोते-बिलखते परिजन डीएम कार्यालय पहुंचे थे। डीएम के न मिलने पर एडीएम खुर्शीद अली कादरी को अपना दर्द बताया था। प्रसेनजीत की पत्नी पिंकी चक्रवर्ती ने बताया था कि पति बर्नपुर में सेल इस्को आधुनिकीकरण के काम में ठेकेदार के रूप में मजदूर सप्लाई करते थे। इसी बीच बांकुड़ा सोनामुखी निवासी आलोक चक्रवर्ती से परिचय हुआ। पिछले महीने आलोक ने पति से कहा कि भूटान में मजदूरों की सप्लाई करनी है। वे उसकी बातों में आ गए। 21 मई को तीन स्थानीय मजदूरों को लेकर वे भूटान के पारो शहर के पानबेसिया गए। 

 

वहां एयरपोर्ट के पास भवन निर्माण में सिलीगुड़ी के किसी कुतुश मियां का ठेका चल रहा था। यहां प्रसेनजीत ने मजदूर दिए और वापस लौटने लगा। पर, उसे वहां बंधक बना लिया गया। कहा गया कि चारों को यहां काम करना होगा। अब इनसे दिन-रात काम कराया जा रहा था। प्रसेनजीत बीमार हो गया था। बावजूद इलाज भी नहीं कराया जा रहा है। घर पर डेढ़ वर्ष का बेटा और बीमार पुत्री है। मां और भाई के साथ डीएम कार्यालय पहुंची पिंकी  ने कहा था कि जल्द कुछ नहीं किया गया तो हमारे पति मर जाएंगे। एडीएम खुर्शीद अली कादरी ने सकारात्मक कदम उठाने का आश्वासन दिया था।

आसनसोल एडीएम खुर्शीद अली कादरी ने कहा था कि प्रसेनजीत के परिजन आए थे और उसके बंधक बनाने की जानकारी दी थी। उनके आवेदन को पुलिस उपायुक्त के पास भेजा था। प्रशासन इस मामले पर गंभीर थी। इन सभी की वापसी के हर उपाय हो रहे थे।

प्रसेनजीत ने बताया कि जब बंधनमुक्त होने की कोई आस नहीं बची तो 24 जून की रात करीब दो बजे चारों ठेकेदार के कैंप से निकल भागे।

रात के अंधेरे में कीड़े- मकोड़े और जंगली जानवरों की फिक्र छोड़कर पहाड़ों के रास्ते भागने लगे। इसी बीच प्रसेनजीत एक पहाड़ से गिरकर घायल हो गया। अन्य साथी सपन हाजरा, दीपक केवड़ा और गुरुदयाल सिंह उसे उठाकर एक पहाड़ी गुफा में ले गए। दिनभर वह लोग भूखे-प्यासे वहीं छिपे रहे। शाम का अंधेरा घिरते ही उनलोगों ने फिर चलना शुरू किया।

उनलोगों को पता था कि पहाड़ियों के बगल से बहने वाली नदी भारत को जाती है। पहाड़ों के बीच से गुजरती नदी की गर्जना सुनकर आगे बढ़ते गए। जंगलों में कोई उन्हें देख न ले इसलिए सैन्य अभियान की तरह चेहरे के आगे जंगली झाड़ियां रखकर चलते थे। नदी का पानी पीकर प्यास तो बुझा लेते, लेकिन भूख से दम निकल रहा था। स्थानीय भाषा की जानकारी न होना भी उनके लिए बड़ी समस्या थी।

25 जून की रात उन लोगों ने एक घर में जाकर खाना मांगा, लेकिन वहां भी दुत्कार ही मिली। एक समय तो इतने निराश हो गए थे कि पहाड़ से कूदकर जान देने की सोचने लगे थे। लेकिन एक-दूसरे का साहस बढ़ाते वह लोग आगे बढ़ते गए।

भागने के तीसरे दिन मिली सड़क:

तीसरे दिन एक पहाड़ की गुफा में काटने के बाद संध्या में वह लोग एक सड़क पर पहुंचे और गुजरने वाले वाहनों से लिफ्ट मांगने लगे। इसी बीच एक चार पहिया वाहन वाले ने उन लोगों को लिफ्ट दे दी।

उक्त वाहन वाले ने भूटान स्थित छुजुम और तानालुम चेकपोस्ट पार करवा दिया। चेकपोस्ट पार होने के बाद वह लोग पैदल ही भारतीय सीमा की ओर बढ़े। सुबह करीब पांच बजे जयागांव में भारतीय सीमा में प्रवेश करने के बाद राहत की सांस ली। वहां से ट्रेन पकड़कर व‌र्द्धमान होते हुए गुरुवार को वापस आसनसोल आए। 


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