Coronavirus पीड़िता की भतीजी की आपबीती, 'अगर वे चाहते हैं कि हम सब मर जाएं, तो एक बार बोल दें, हम सब मर जाएंगे'
नार्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज एंड हास्पिटल (एनबीएमसीएच) में सोमवार तड़के सुबह अपनी चाची की मौत की खबर के बाद से अपने परिजनों संग वह काफी गम व गुस्से में हैं।
इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी : 'अगर वे चाहते हैं कि हम सब मर जाएं, तो एक बार बोल दें, हम सब मर जाएंगे'! यह उस युवती का कहना है जो उत्तर बंगाल की पहली कोरोना वायरस संक्रमण (कोविड-19) की मरीज (अब इस दुनिया में नहीं रहीं) की भतीजी हैं जो कि खुद भी चाची के संपर्क में रहने के मद्देनजर अपने परिजनों संग जलपाईगुड़ी में कहीं किसी एक अस्पताल में 'क्वारंटाइन' (अलग-थलग चिकित्सकीय निगरानी) में रखी गई हैं।
नार्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज एंड हास्पिटल (एनबीएमसीएच) में सोमवार तड़के सुबह अपनी चाची की मौत की खबर के बाद से अपने परिजनों संग वह काफी गम व गुस्से में हैं। उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट से एक के बाद एक लाईव आ कर अपनी बेबसी संग अपना रोष जताया है। उनका कहना है कि बीते शनिवार की शाम ही उन लोगों को पता चल गया था कि उनकी चाची की टेस्ट रिपोर्ट 'कोविड-19' पाजिटिव आई है जो कि आधिकारिक रूप से उन लोगों को रात में 11:30 बजे बताई गई हालांकि उस रिपोर्ट पर उन्हें संदेह है। खैर, चाची के पाजिटिव होने की पुष्टि के बाद सृष्टि व उनके पति ने सारी रात फोन पर आपस में बात की कि अब उन सारे लोगों को भी अपना-अपना टेस्ट कराना होगा व क्वारंटाइन में रहना होगा जो-जो चाची के संपर्क में आए थे। इस बाबत पूछताछ में उन लोगों ने प्रशासनिक अधिकारियों को भी सब कुछ विस्तार से बता दिया।
बकौल युवती 'कल (रविवार) शाम पांच बजे हमलोगों को हमारे घर (सिलीगुड़ी के ज्योति नगर) से एंबूलेंस से ले जाया गया। उस दौरान अन्य कुछ जगहों से भी हमारे संपर्क के अन्य लोगों को भी लिया गया। हम सभी को पहले एनबीएमसीएच ले जाया गया। जहां हमारी कोई स्क्रीनिंग नहीं की गई। बस, एक डाॅक्टर ने कुछ सवाल-जवाब किए। उसके बाद हम सभी को जलपाईगुड़ी ले जाया जाने लगा। रास्ते में कई जगह बहुत इंतजार कराया गया कि वहां दूसरी पुलिस आएगी व उन्हें आगे ले जाएगी। इस तरह रास्ते में चार-पांच बार पुलिस की अदला-बदली हुई। अंततः रात लगभग 10 बजे हमलोगों को जलपाईगुड़ी के एक अस्पताल में रख कर वे लोग चले गए। अस्पताल के लोगों को पहले से इसका कुछ पता नहीं था और न ही उन लोगों ने कोई तैयारी कर रखी थी। यहां तक कि हमें यह भी कहा गया कि हमें खाना भी नहीं मिल पाएगा। जब हम चीखे-चिल्लाए तो खाना दिया गया। हम सबके गले में खराश है और हमें खाने में चावल दिया गया। वह भी ऐसा कि हमलोगों ने नहीं खाया। आज (सोमवार) सुबह नाश्ते में भी ब्रेड, केले, अंडे व ठंडे दूध (पैकेट में जैसे थे वैसे ही) दिए गए। पानी तक की कोई व्यवस्था नहीं है। बच्चों को भी हम नल का ही पानी पिला रहे हैं। जहां हमें रखा गया है वहां कोई इंतजाम ही नहीं है। केवल बेड हैं और चारों ओर गंदगी ही गंदगी है'।
युवती का यह भी कहना है कि 'कहां तो कहा जा रहा है कि गर्म पानी पिएं, भाप लें, गरारे करें और कहां हमारे पीने के लिए नल का पानी मात्र ही है। दूध भी ठंडा ही दिया जा रहा है। हम तो खैर भूखे भी रह जाएं पर बच्चों का क्या करें? वे तो भूखे नहीं रह सकते। हमारी चिकित्सा तो दूर टेस्ट तक नहीं किया गया है। यहां हम 12-15 लोग हैं। उनमें मैं, मेरे पति, मेरी बच्ची, मेरे चाचा (जिनकी पत्नी का निधन हो गया), मेरी आया, उसके बच्चे, जिस पैथालॉजी सेंटर में मेरी (दिवंगत) चाची की पहले जांच हुई थी वहां के लोग शामिल हैं। पैथालॉजी सेंटर वाले लोग मेरी (दिवंगत) चाची के संपर्क में भी नहीं आए थे पर उन्हें भी हम सबके साथ ही बिठा कर लाया गया। उधर, मेरे पिता जो कि ट्रांसप्लांट पेशेंट हैं, मां, सास-ससुर, भैया-भाभी, उनकी बेटी, मेरी (दिवंगत) चाची की एक बेटी जिसका चेन्नई में इलाज हुआ और एक बेटा जो 10वीं बोर्ड का विद्यार्थी है, केवल तीसरी बेटी मुंबई में है, वहीं पढ़ती है, बाकी सब कालिम्पोंग वाले घर में बेसहारा पड़े हुए हैं। कोई सुध लेने वाला नहीं है। अभी तक टेस्ट के लिए उनके सैंपल तक नहीं लिए गए हैं। हम सब बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं'।
उन्होंने अपनी चाची के बारे में पूरी बात बताई है कि अपनी बेटी का इलाज करा कर चेन्नई से उनकी चाची बीते 19 मार्च को यहां लौटीं। बागडोगरा एयरपोर्ट से वह युवती के घर आईं। वहां दो घंटे गुजारने के बाद वे लोग सब एक साथ कालिम्पोंग स्थित अपने घर चले गए। वहां चाची की तबीयत खराब हो गई। उन्हें खांसी व बुखार हुआ था। वहीं, कालिम्पोंग के ही एक जेनरल फिजीशियन डाॅक्टर को दिखाया गया। उन्होंने कुछ दवाएं दी। पर, कोई फायदा नहीं हुआ। वे लोग 25 मार्च को फिर उसी डाॅक्टर के पास गए। तब, डाॅक्टर ने हाइयर अथाॅरिटी के पास जाने की सलाह दी। तब, अगले दिन 26 मार्च को वे लोग सिलीगुड़ी आए। सेवक रोड में पायल सिनेमा के निकट एक पैथालॉजी सेंटर में एक्स-रे आदि जांच करवाई गई। उन लोगों को टी.बी. का संदेह था पर जांच में ऐसा नहीं आया। तब वे लोग, उसी दिन एनबीएमसीएच गए। वहां उनकी चाची को भर्ती कर लिया गया। उनके स्वैब (लार) के सैंपल (नमूने) लिए गए । उसे जांच के लिए कोलकाता भेजा गया। जहां से बीते शनिवार यानी 28 मार्च की शाम रिपोर्ट आई कि उनकी चाची कोविड-19 पाॅजिटिव हैं। इधर, रविवार, 29 मार्च को देर रात उनकी चाची का निधन हो गया। इसकी खबर 30 मार्च को सुबह-सुबह ही जंगल में आग की तरह फैल गई। इस घटना से जहां संबंधित परिवार गहरे सदमे में है वहीं सिलीगुड़ी समेत पूरे उत्तर बंगाल के लोगों के बीच खौफ व दहशत का माहौल कायम हो गया है। इसी दिन दिवंगत महिला की अंत्येष्टि भी साहूडांगी स्थित इलेक्ट्रिक चिमनीयुक्त श्मशान घाट पर कर दी गई। वहां के लोग कोविड-19 मरीज के शव की अपने इलाके में अंत्येष्टि के विरोध में सड़क पर उतर आए थे। मगर, तमाम विरोध के बावजूद प्रशासन द्वारा अंत्येष्टि वहीं कराई गई।
दिवंगत महिला की भतीजी सृष्टि का कहना है कि 'हमने अपने परिवार की एक सदस्य को खो दिया है। हम सब बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं। हमारा पूरा परिवार ही क्वारंटाइन में है। अभी हम सबको गले में खराश के अलावा और कोई समस्या नहीं है। यहां जिस अस्पताल में हमें रखा गया है, वहां कुछ भी इंतजाम नहीं है। इससे बेहतर तो हम घर पर ही क्वारंटाइन में रहते और रह भी रहे थे। पर, हमें यहां ला कर रख दिया गया। बस, और कुछ नहीं। यहां बहुत खराब हालत है। यहां रह कर तो हम और बीमार पड़ जाएंगे। इससे ज्यादा सुरक्षित तो हम घर पर ही रहते। हम अभी तक आवश्यक मदद की बाट ही जोह रहे हैं। कृपया हमारे लिए कुछ करिये। वरना, यह बहुत बुरा हो जाएगा। प्लीज हेल्प। प्लीज इंडिया प्लीज'।
इस दौरान युवती बिलख-बिलख कर रोने भी लगीं और ऐसे उद्गार व्यक्त किए कि किसी का भी दिल पसीज जाए। बकौल सृष्टि 'हमारा परिवार बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है। ये सिर्फ मेरे परिवार की बात नहीं है। ऐसा किसी के भी परिवार के साथ हो सकता था। दुर्भाग्य से हमारे परिवार के साथ हुआ। हम संक्रमित हुए। पर, इसका यह मतलब नहीं कि हम ही कोरोना लाए हैं यहां। मेरी चाची सिर्फ बेटी का इलाज कराने ही चेन्नई गईं थीं और कुछ नहीं। हम नहीं जानते कि वह कहां संक्रमित हुईं। अब हमें भी क्वारंटाइन में रखा गया है। जहां कोई चिकित्सकीय सुविधा नहीं है। अस्पताल वाले ये तक नहीं जानते कि उन्हें करना क्या है? मुझे लगा कि ये (फेसबुक लाईव) सबसे बेहतर माध्यम होगा लोगों को बता पाने का कि क्या हो रहा है'।
उन्होंने सवाल भी खड़े किए कि क्या हमें जीने का हक नहीं है? क्या हमारी थोड़ी देख-भाल नहीं की जानी चाहिए? हम कुछ भी नहीं चाहते हैं, बस, गर्म पानी, दवा और साफ जगह। पर, हमें कुछ भी मयस्सर नहीं है। हमें मरता छोड़ दिया गया है। वे हमारे मरने का इंतजार कर रहे हैं। उसके बाद ही कुछ करेंगे। अगर वे चाहते हैं कि हम सब मर जाएं, तो एक बार बोल दें, हम सब मर जाएंगे!