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राह की मुश्किलों को नहीं आने दिया आड़े, अब 100 से अधिक लोगों को पारंगत कर बनाया आत्‍मनिर्भर

सिक्किम के नामची के एक छोटे से गांंव में जन्मी सुषमा छेत्री। पिछले आठ वर्षों से सिलीगुड़ी में अपने हिम्मत और हौसले के बल पर लोगों के चेहरों के साथ साथ जीवन भी संवारने में लगी हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 18 Mar 2020 11:29 AM (IST)Updated: Wed, 18 Mar 2020 11:30 AM (IST)
राह की मुश्किलों को नहीं आने दिया आड़े, अब 100 से अधिक लोगों को पारंगत कर बनाया आत्‍मनिर्भर
राह की मुश्किलों को नहीं आने दिया आड़े, अब 100 से अधिक लोगों को पारंगत कर बनाया आत्‍मनिर्भर

सिलीगुड़ी, अशोक झा। पड़ोसी राज्य सिक्किम के नामची के एक छोटे से गांंव  में जन्मी सुषमा छेत्री। पिछले आठ वर्षों से सिलीगुड़ी में अपने हिम्मत और हौसले के बल पर लोगों के चेहरों के साथ साथ जीवन भी संवारने में लगी हैं। मेकअप, स्किन थेरेपी, आई लैशेस एक्सटेंशन्स, सेमि-परमानेंट मेकअप तथा माइक्रोब्लैडिंग शेडिंग ओंब्रे में जाना माना नाम बनकर उभरी हैं। अपने व्यवसाय  के माध्यम से 100 से अधिक युवक-युवतियों को इन सब कलाओं  में पारंगत कर चुकी हैं। 

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नए-नए तकनीक के आधार पर आत्मनिर्भर बना रही 

नए-नए तकनीक के आधार पर उन्हें आत्मनिर्भर भी बना रही हैं। सबसे अच्छी बात है कि इस काम में सुषमा ऑर्गेनिक सामानों का इस्तेमाल करती हैं जिससे लोगों को किसी तरह का नुकसान नहीं होता हैI इनके सहयोग से लोग आत्मनिर्भर बन कर अपना और साथ ही दूसरों का जीवन भी संवारने लगे हैं। 32 वर्ष की सुषमा छेत्री पश्चिम बंगाल पूर्वोत्तर के लोगों के लिए एक उदाहरण बन रही हैं। वह चाहती हैं की सबके चेहरे पर खुशियों की मुस्कान आए। आज वह अपनी छोटी बहन के साथ रहती हैं।

आई-मेकअप बहुत ही खास होता

स्वयं कठिन परिस्थितियों में रहते हुए भी अपने पैतृक परिवार की  देखभाल भी करती आ रही हैं तथा साथ ही समाज के पीड़ित वर्ग को भी आगे बढ़ा रही हैं। सुषमा का कहना है कि महिलाएं अपने आईब्रो मेकअप को लेकर काफी उत्साहित रहती हैं। आँख किसी के चेहरे का सबसे  महत्वपूर्ण हिस्सा होता हैI इसलिए किसी भी लड़की  के लिए आई-मेकअप बहुत ही खास होता है।

आई-मेकअप अच्छा हो तो चेहरे का पूरा लुक ही बदल  जाता है। इसमें आई शेडिंग, आई लैशेस एक्सटेंशन्स, माइक्रोब्लॉडिंग शेडिंग ओंब्रे उल्लेखनीय हैं। जिन  महिलाओं की आई लैशेस और आईब्रोस ठीक नहीं  होती हैं वह अपने आई  लैशेस को एक्सटेंड करवाती हैं और आईब्रोस माइक्रोब्लॉडिंग के माध्यम से इनको क्रिएट करवाती हैंI

इसे अनुभवी एस्थेटिसिअन से करवाएं

अगर ये काम किसी अनुभवी एस्थेटिसिअन से करवाया जाए तो देखने में एकदम असली लगता है, कोई देख कर बता ही नहीं पायेगा की ये सेमि-परमानेंट पिगमेंटेशन के माध्यम से अर्टिफिसिअल बनाया गया हैI पूर्वोत्तर केे राज्यों में बहुसंख्यक लोगो के आईब्रोस पूरे या ठीक तरह से नहीं होते हैंI पहले यह काम करवाने के लिए यहांं के लोगों को दिल्ली, मुंबई या फिर विदेश जाना पड़ता था। वहां ये महंगा भी थाI इसलिए इससे लोग वंचित भी रह जाते थे। यहां के लोग विदेश और दिल्ली, मुंबई गए बिना इन सुविधाओं का लाभ सिलीगुड़ी में ही ले सकें   इसीलिए इन सब विधाओं की ट्रेनिंग सुषमा ने ली और  इन सेवाओं को यहांं सुलभ मूल्यों में देना शुरू किया है। इसके लिए उन्होंने यहांं कई अत्याधुनिक केंद्र भी  तैयार किये हैं।

कैसे पहुंची इस मुकाम पर: 

सुषमा का ख्वाब था की वह एयर होस्टेस बनें। नामची से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद कलिंगपोंग डिग्री कॉलेज से 2005 में अपनी पढ़ाई पूरी की। 2006 मे वह एयर होस्टेस बनने की ट्रेनिंग लेने के लिए सिलीगुड़ी पहुंचीं। ट्रेनिंग के दौरान ही पिता की बीमारी ने इस सपने को बीच में ही छोड़ने पर मजबूर कर दिया। लेकिन इसके बाद भी  परिस्थितियों से हार नहीं मानते हुए मेकअप और स्किन-थेरेपी का प्रशिक्षण प्राप्त किया। यहां सिलीगुड़ी में रहते हुए 2008 में विवाह के बंधन में बंधीं। इसके  कुछ समय उपरांत वह सांसारिक एवं पारिवारिक उलझनों से जूझने लगीं। उन संघर्ष के दौरान इन्होने  अपनी जीवटता का परिचय देते हुए ना सिर्फ स्वयं सिर उठाकर आत्मसम्मान के साथ जीने की चाहत को जागृत किया बल्कि अपने साथ कई लोगों को भी  आत्मनिर्भर बनाने की ठानी।

समाज निर्माण में पुरुषों और नारी का योगदान सामान

इस दिशा में वह काफी  आगे बढ़ भी गयी हैं। सुषमा बताती है कि प्राचीन  भारतीय संस्कृति में नारी को बहुत सम्मान दिया गया है। कहा गया है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैंI जिस प्रकार कोई भी पक्षी एक पंख से नहीं उड़ सकता, उसी प्रकार कोई भी समाज स्त्री या पुरुष दोनों में से किसी एक वर्ग के उत्थान से उन्नति नहीं कर सकता। अगर नर-नारी में कुछ भिन्नताएं हैं तो वे एक-दूसरे की पूरक हैं, विरोधी नहीं I महिलाओं का सशक्तिकरण एक सशक्त समाज के निर्माण में सहायक होता है। समाज निर्माण में जितना योगदान पुरुषों का होता है, उतना ही स्त्री का भी होता  हैI

 महिलाओं के श्रम की अहमियत

आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी पताका फहरा रही हैंI शिक्षा, व्यापार, नौकरी, कला, विज्ञान, खेल कोई भी क्षेत्र इनसे अछूता नहीं है। यह विडंबना ही है कि इतनी उपलब्धियां हासिल करने के बाद भी वर्तमान में वे अपमान, उपेक्षा और शोषण का शिकार हो रही हैंI चिंता की बात तो यह है कि यह दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है, चाहे वह मां हो, बेटी हो, बहन हो या फिर बहू हो। महिलाओं के श्रम की अहमियत को भी ठीक से आंका नहीं गया। महिला के श्रम को आर्थिक दृष्टि से भी बराबर का सम्मान देना होगा।

नारी में इतनी शक्ति है कि वह पुरुष की बराबरी के बजाय उससे आगे बढ़ सकती है। उनका अनुकरण करने के बजाय उनके  लिए उदाहरण बन सकती हैं। इसके लिए आवश्यक है कि वह अपने भीतर ज्ञान की ज्योति जलाएं, मन में दृढ़ता लाएं, दीन-हीन विचारों का त्याग कर के अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएंI अगर ऐसा हुआ तो सही मायने में यही महिला सशक्तिकरण होगा 


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