मान्यता है कि मां विपदतारिणी के प्रसन्न रहने से घर में सुख-शांति रहती है
संकट तारिणी मां विपदतारिणी देवी की पूजा मंगलवार को शिल्पांचल के विभिन्न देवी मंदिरों में की गई। सुबह से मंदिरों में पूजा अर्चना करने के लिए महिलाओं की भीड़ लगी रही।
आसनसोल,जागरण संवाददाता। संकट तारिणी मां विपदतारिणी देवी की पूजा मंगलवार को शिल्पांचल के विभिन्न देवी मंदिरों में की गई। सुबह से मंदिरों में पूजा अर्चना करने के लिए महिलाओं की भीड़ लगी रही।
श्रद्धालुओं ने मां विपदतारिणी को 13- 13 प्रकार के फल, फूल और मिठाई, पूड़ी, हलवा, लाल धागा व दूब से पूजा की। पूजा करने के बाद श्रद्धालुओं ने देवी मां से सुरक्षा की कामना करते हुए अपने हाथ में दूब और लाल धागा को बांधा।
बंगाली समाज की महिलाओं ने मंगलवार को देवी दुर्गा के रूप मां विपदतारिणी की पूजा की। इसको लेकर हरि मंदिर, कोयलानगर दुर्गा मंदिर, पतराकुल्ही काली मंदिर समेत अन्य मंदिरों में सुबह से दोपहर तक पूजा के लिए महिलाओं की भीड़ लगी रही। मां को दूब घास के साथ अनानास, आम सहित मौसमी फल चढ़ाए गए। इसके बाद परिवार के सदस्यों ने प्रसाद ग्रहण करने से पहले 13 गांठ वाला धागा बांह में बांधा।
मान्यता है कि मां विपदतारिणी के प्रसन्न रहने से घर में सुख-शांति रहती है। माता की पूजा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से नवमी के बीच मंगलवार व शनिवार को होती है। इस पूजा का विधान रथयात्रा के बाद पड़ने वाले मंगलवार या शनिवार को होता है लेकिन घुरती रथ (भगवान जगन्नाथ के मौसी बाड़ी से लौटने के पहले)।
कथा सुनी
हरि मंदिर व दुर्गा मंदिर में पूजा-अर्चना पूरे भक्तिभाव से की गई। मंदिर में मेले सा नजारा रहा। पूजा में पंडितों ने मंत्रोच्चार किया। महिलाओं ने सामूहिक रूप से मां विपदतारिणी की कथा सुनी।
13 प्रकार के चढ़ते हैं फल
पूजा में हर सामग्री की संख्या 13 थी। फल, फूल, मिठाई, भोग के लिए बनाए गए पकवान, दूब घास आदि सभी इतनी ही संख्या में थे। महिलाओं ने उपवास रह कर मंदिर में माता की पूजा अर्चना की और बाद में माता के आशीष स्वरूप फूल और दूब घास को लाल धागा से कलाइयों पर बांधा।