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कछुओं की तस्करी का मुख्य हब बना प. बंगाल, शारीरिक ताकत बढ़ाने के काम आता है इसका सूप

पश्चिम बंगाल कछुओं की तस्करी का मुख्य हब बन चुका है। इसका सूप शारीरिक ताकत बढ़ाने के काम आता है। यही कारण है कि इसकी मांग विदेशों में बहुत ज्यादा है।

By Rajesh PatelEdited By: Published: Wed, 02 Jan 2019 01:12 PM (IST)Updated: Wed, 02 Jan 2019 01:12 PM (IST)
कछुओं की तस्करी का मुख्य हब बना प. बंगाल, शारीरिक ताकत बढ़ाने के काम आता है इसका सूप

सिलीगुड़ी [अशोक झा]। पश्चिम बंगाल कछुओं की तस्करी का मुख्य हब बन चुका है। इसका सूप शारीरिक ताकत बढ़ाने के काम आता है। यही कारण है कि इसकी मांग विदेशों में बहुत ज्यादा है। अभी हाल ही में बांग्लादेश भेजे जा रहे 11 हजार कछुआें की बरामदगी और 24 तस्करो को पकड़े जाने से इस तथ्य का खुलासा हुआ है।
बांग्लादेश से इसे थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर और चीन भेजा जाता है। वन्यजीव संरक्षक अधिकारी धर्मदेव राय का कहना है कि शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए भारत से बड़े पैमाने पर कछुए की तस्करी हो रही है। कहते हैं कि पृथ्वी पर पाए जाने वाले प्राणियों में सबसे लंबी उम्र 180 साल कछुआ की होती है। इसलिए इसके सूप से लोग अपनी आयु बढ़ाना चाहते है।
बताया गया कि भारत से कछुए को ले जाकर बांग्लादेश में काफी गर्म पानी में घंटों  उबाला जाता है। फिर उसके चिप्स तैयार किए जाते हैं। एक किलोग्राम के कछुआ से 250 ग्राम चिप्स तैयार होता है। कछुआ के सूप को विदेशों में एक से दो लाख रुपये तक में बेचा जाता है। जिंसोनिया, चित्रा, इंडिका और गैंगटिस नामक प्रजाति के कछुआ से प्लास्ट्रान निकाली जाती है। बंगाल और उत्तर प्रदेश के नदियों में 11 प्रकार के कछुआ पाए जाते हैं। इसे बचाने के लिए ही 1979 में इसके शिकार पर रोक लगाई गई है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचुरल रिसोर्सेस के माध्यम से विलुप्त कछुआ को बचाने का प्रयास हो रहा है।
उत्तर बंगाल के एडीजी आनंद कुमार का कहना है कि उत्तर बंगाल अंतरराष्ट्रीय सीमा से घिरा हुआ है। यहां वन्यजीवों और जलचरों की तस्करी रोकने के लिए सभी जीआरपी और पुलिस थानों को आवश्यक निर्देश दिए गए हैं। इसके आधार पर लगातार कार्रवाई भी हो रही है। इस प्रकार के तस्करों का नेटवर्क देश से विदेश तक जुड़ा होता है।

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