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West Bengal Coronavirus Lockdown effect:नवरात्रि का सातवां दिन,श्रद्धालुओं को उम्मीद इस संकट की घड़ी में मां करेगी रक्षा

मान्यता है कि माता कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य समस्त सिद्धियो को प्राप्त करते है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 31 Mar 2020 03:56 PM (IST)Updated: Tue, 31 Mar 2020 03:56 PM (IST)
West Bengal Coronavirus Lockdown effect:नवरात्रि का सातवां दिन,श्रद्धालुओं को उम्मीद इस संकट की घड़ी में मां करेगी रक्षा
West Bengal Coronavirus Lockdown effect:नवरात्रि का सातवां दिन,श्रद्धालुओं को उम्मीद इस संकट की घड़ी में मां करेगी रक्षा

सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। आज  मंगलवार नवरात्रि का सातवां दिन है। आज के दिन मां दुर्गा के कालरात्रि रूप का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि आज के दिन भक्त मां कालरात्रि की सच्चे मन से पूजा और व्रत करता है तो उसके जीवन के सभी अंधकार कम हो जाते हैं। देवी कालरात्रि को माता पार्वती का ही रूप माना गया है।

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आचार्य पंडित यशोधर झा का कहना है कि कालरात्रि देवी के नाम का मतलब है- काल यानी मृत्यु और और रात्रि का मतलब है कि रात अर्थात् अंधेर को खत्म करने वाली देवी। हम कह सकते हैं कि इस देवी की पूजा करने से हमेशा जीवन प्रकाशमय हो जाता है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहा गया और असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था. इनकी पूजा शुभ फलदायी होने के कारण इन्हें ‘शुभंकारी’ भी कहते हैं। मान्यता है कि माता कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य समस्त सिद्धियो को प्राप्त करते है। माता कालरात्रि पराशक्तियों की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध हैं। मां की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह बाधाएं दूर हो जाती हैं। असुरों को वध करने के लिए दुर्गा मां बनी कालरात्रि 

देवी कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है इनके बाल बिखरे हुए हैं और इनके गले में विधुत की माला है। इनके चार हाथ हैं जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा धारण किया हुआ है।  इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। इनके तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है. कालरात्रि का वाहन गर्दभ(गधा) है। 

कालरात्रि की उत्पत्ति की कथा

कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था. इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए. शिव जी ने देवी पार्वती से  राक्षसों का नाश कर भक्तो की रक्षा करते है। शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए।  इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया. इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का  प्रसाद चढ़ाकर उसे भक्तो के बीच बाट दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकते है। नवरात्रि का समापन 2 अप्रैल को है। इस दिन चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है। नवरात्रि के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्रि की आराधना की जाती है। इसी दिन स्वामीनारायण जयंती भी है।

मां के सभी नौ रूपों में छुपा है जीवन को स्वस्थ बनाने का मंत्र

कहते है कि माँ दुर्गा के सभी रूपों  की साधना की जाय तो मनुष्य हमेशा निरोग रहेंगे। क्योकि  माँ के प्रत्येक रूप में  आयुर्वेद का गूढ़ रहस्य छुपा है।वह कुछ इस प्रकार है। 

प्रथम शैलपुत्री (हरड़) : कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है। 

ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) : ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है.इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है। 

चंद्रघंटा (चंदुसूर) : यह एक ऎसा पौधा है जो धनिए के समान है । यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है इसलिए इसे चर्महंती भी कहते हैं। 

कूष्मांडा (पेठा) : इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इससे बने मिठाई को  पेठा कहते हैं।  इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो रक्त विकार दूर कर पेट को साफ करने में सहायक है।  मानसिक रोगों में यह अमृत समान है। 

स्कंदमाता (अलसी) : देवी स्कंदमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं।  यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है। कात्यायनी (मोइया) : देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका। इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं.यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है।

कालरात्रि (नागदौन) : यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं। यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है।

 महागौरी (तुलसी) : तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र. ये रक्त को साफ कर ह्वदय रोगों का नाश करती है। 

सिद्धिदात्री (शतावरी) : दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं. यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है। तो बस लॉग डाउन के बीच मां केे इन सभी रूपों को अपने जीवन में साधने का प्रयास करें स्वयं ही आपके जीवन को करोना जैसे वायरस छू भी नहीं पाएगा। 


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