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Gangasagar fair: मेरी आवाज ही मेरी पहचान है...गंगासागर मेले में अहम भूमिका निभा रही हैं 20 उद्घोषकों की टीम

वे दिखते नहीं बस उनकी आवाज सुनाई पड़ती है और आवाज ही तो उनकी पहचान है। पर्दे के पीछे रहकर अहम भूमिका निभाने वाले ये लोग हैं सागर मेले के उद्घोषक।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 14 Jan 2020 09:16 AM (IST)Updated: Tue, 14 Jan 2020 09:16 AM (IST)
Gangasagar fair: मेरी आवाज ही मेरी पहचान है...गंगासागर मेले में अहम भूमिका निभा रही हैं 20 उद्घोषकों की टीम
Gangasagar fair: मेरी आवाज ही मेरी पहचान है...गंगासागर मेले में अहम भूमिका निभा रही हैं 20 उद्घोषकों की टीम

गंगासागर, विशाल श्रेष्ठ। वे दिखते नहीं, बस उनकी आवाज सुनाई पड़ती है और आवाज ही तो उनकी पहचान है। पर्दे के पीछे रहकर अहम भूमिका निभाने वाले ये लोग हैं सागर मेले के उद्घोषक। सागर मेला परिसर में दिनभर उनकी आवाज गूंज रही है। देश के कोने-कोने से गंगासागर पहुंच रहे लाखों तीर्थयात्रियों को कोई महत्वपूर्ण सूचनाएं देनी हो, मेले के आयोजन से जुड़े विभिन्न सरकारी विभागों के अधिकारियों व कर्मचारियों के बीच किसी संदेश का प्रसार करना हो या फिर किसी के लापता होने पर उसके बारे में खबर फैलानी हो, 20 उद्घोषकों की एक टीम चौबीसों घंटे पूरी जिम्मेदारी से इस काम में जुटी हुई है।

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इस टीम में गंगासागर में खोए लोगों को उनके अपनों से मिलाने वाली संस्था बजरंग परिषद के सदस्य और राज्य सरकार के सूचना व संस्कृति विभाग के कर्मचारी शामिल है। पिछले एक दशक से सागर मेले में उद्घोषक की भूमिका निभाते आ रहे 35 साल के विकास राव ने कहा- 'ये मेरे लिए कोई काम नहीं बल्कि जुनून की तरह है। मुझे सालभर सागर मेले का इंतजार रहता है। ये करके मुझे बेहद संतुष्टि मिलती है। इस बात की सुखद अनुभूति होती है कि मैं लोगों के काम आ रहा हूं। मेरे लिए तो सबसे बड़ा पुण्य यही है।'

हावड़ा के शिवपुर इलाके के रहने वाले विकास ने आगे कहा- 'सबसे अच्छा तो उस वक्त लगता है, जब मेरी बदौलत कोई खोया हुआ आदमी अपनों से मिल जाता है। वे लोग जब मुझे आर्शीवाद देते हैं तब सही मायने में मुझे मेरे इंसान होने का एहसास होता है।' विकास बजरंग परिषद से जुड़े हैं। वे एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते हैं और सागर मेले के समय सारा जरूरी कामकाज छोड़कर नि:शुल्क सेवाएं प्रदान करने यहां आ जाते हैं। विकास की तरह ही पप्पू साव (25) व दीपक जायसवाल (38) भी इस नेक काम से जुड़े हुए हैं। मेला परिसर में बने 50 फुट ऊंचे सागर इनफॉर्मेशन टावर के कक्ष में बैठकर वे सभी इस काम को सफलतापूर्वक अंजाम देते हैं।

पप्पू साव ने बताया- 'उद्घोषणा बेहद जिम्मेदारी भरा काम है। बोलते वक्त काफी सावधानी बरतनी पड़ती है, क्योंकि मेला परिसर में मौजूद लाखों लोग कान लगाकर हमारी बातें सुनते हैं। कुछ गलत बोलने पर उन लोगों में गलत संदेश जा सकता है।'

सागर मेले में ये हैं भोजपुरियों की आवाज

गंगा सागर मेला परिसर में हिंदी, बांग्ला, तेलुगु और ओडिया के साथ ही भोजपुरी में भी इस बार उद्घोषणा हो रही है। यहां पुण्य स्नान करने पहुंच रहे लाखों भोजपुरियों को अपनी ओर खींचने वाली यह आवाज एक दक्षिण भारतीय नागरिक के गले से निकल रही है। ये शख्स हैं 55 साल के अनमी नागेश्र्वर राव। हुगली जिले के श्रीरामपुर के गांगुली बगान इलाके के रहने वाले नागेश्र्वर राव को हिंदी, बांग्ला, तेलुगु, ओडिया व भोजपुरी बोलने में महारत हासिल है। गौर करने वाली बात यह है कि इसके लिए उन्होंने कहीं से कोई प्रशिक्षण भी नहीं लिया है। नागेश्र्वर राव ने बताया- 'तेलुगु मेरी मातृभाषा है और हिंदी देशभर में बोली जाती है। इसीलिए इसे जानना व बोलना मेरे लिए सामान्य बात है। बंगाल मेरी कर्म भूमि है। इसीलिए यहां रहकर बांग्ला भी सीख गया। मैं जिस कंपनी में काम करता हूं वहां बहुत से ओडिया व भोजपुरी बोलने वाले लोग हैं। उनकी संगत में ये दोनों भाषाएं भी सीख गया।'

नागेश्र्वर राव की बदौलत गंगासागर में बिछड़े ओडिशा के तीन, आंध्र प्रदेश के एक और भोजपुरी बोलने वाले करीब एक दर्जन खोए लोग अपनों से मिल गए हैं। मूल रूप से आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम के रहने वाले नागेश्र्वर राव का भोजपुरी में उच्चारण इतना साफ है कि कोई कह ही नहीं सकता कि वे दक्षिण भारत से हैं। राव भी सागर मेले में नि:शुल्क ये पुण्य काम कर रहे हैं। एक निजी कंपनी में हेड जॉबर का काम करने वाले नागेश्र्वर राव के पत्‍‌नी व दो बेटे हैं। बतौर उद्घोषक वे एक शिफ्ट में लगातार छह घंटे सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।


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