अंबुबाची मेले में तांत्रिक प्रक्रिया से जुड़ने के लिए देश-विदेश के तांत्रिक पहुंचे
कामाख्या मंदिर एवं पीठ का रहस्य है जो भी प्राणी यहां आकर दर्शन कर लेता है। उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं। किसी के शाप से शापित हो तो मां के यहां का जल पीने से वह शाप मुक्त हो जाता है।
सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। 22 जून से प्रारंभ अंबुबाची मेला का आज अंतिम दिन है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। तांत्रिक प्रक्रिया से जुड़ने के लिए देश-विदेश के तांत्रिक पहुंचे हुए हैं। मेले की समाप्ति पर सोमवार की प्रात: 5: 30 बजे मंदिर का कपाट खोल दिये जाते है।
छह बजे से रात्रि 10 बजे तक विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। उसके बाद दूसरे दिन 26 जून को दर्शन के लिए मंदिर का कपाट खोल दिया जाता है। मेले की निगरानी ड्रोन से निगरानी की जा रही है। पूरे नीलांचल पहाड़ी को दुल्हन की तरह सजाया गया है।
रविवार को श्रद्धालुओं ने ब्रह्मपुत्र के पानी में लालीमा दिखाई पड़ने पर मां का जयकारा जमकर लगाया। इस मेला को प्रकृति के उर्वरा शक्ति का प्रतीक और उसके प्रकटीकरण के तौर पर देखा जाता है। कामाख्या के पुजारी मिहीर शर्मा ने बताया कि मंदिर को बंद कर दिया गया है।
अंबूबाची मेले के माध्यम से भारतवर्ष के आध्यात्मिक सांस्कृतिक और मूल्यबोध प्रतिबिंबित होते रहे है। भारत ऋषि मुनियों का देश है। हमारी परंपराओं की वैश्रि्वक पहचान हासिल है और ये परंपराएं मानवीय मूल्यबोध का बुनियाद है। इसी प्रकार की प्रार्थना मां कामाख्या से की जा रही है।
कामाख्या मंदिर एवं पीठ का रहस्य है जो भी प्राणी यहां आकर दर्शन कर लेता है। उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं। किसी के शाप से शापित हो तो मां के यहां का जल पीने से वह शाप मुक्त हो जाता है।