छठ पर अर्घ्य देने से दूर हो जाती हैं त्वचा संबंधी बीमारियां, शरीर को मिलती है ऊर्जा भी
छठ पूजा आध्यात्मिक महत्व तो है ही, इसका वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है। उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से त्वचा संबंधी बीमारियों से राहत मिलती है।
सिलीगु़ड़ी [जागरण स्पेशल]। छठ पूजा देश का सबसे बड़ा त्योहार होता है। उगते और डूबते सूर्य को अर्घ देने और कठिन व्रत के साथ भक्त छठी मां का आर्शीवाद पाते हैं। इस आशीर्वाद में धन्य-धान्य के साथ सुख-शांति और बेहर स्वास्थ्य भी शामिल होता है। छठ पूजा के धार्मिक महत्व तो हम जानते हैं लेकिन आपको इसके वैज्ञानिक महत्व पता है। ये वैज्ञानिक महत्व स्वास्थ्य से जुड़े हुए हैं। सूर्य एनर्जी देता है और जब आप इसके लिए व्रत रखते हैं तो ये आपको भी उतनी ही एनर्जी से भर देता है। छठ में सुबह मिलने वाली सूर्य की रोशनी आपके शरीर को मजबूती देता है। ये आपको इतनी शक्ति देता है कि आप आसानी से ये व्रत पूरा कर लेते हैं। रोशनी बचाती है कई बीमारियों से
छठ पूजा सूर्य से जुड़ा है। सूर्य भगवान न केवल धार्मिक महत्व से पूजे जाते हैं बल्कि ये पॉजिटिव एनर्जी के घोतक भी हैं। छठ के समय सूरज की पराबैगनी किरणें दोगुनी मात्रा में जमीन में पड़ती हैं। इस कारण ये व्रत रखने वाले के लिए बहुत फायदेमंद है। सर्दियों में ये किरणें उनके लिए बहुत फायदेमंद होती हैं जिन्हे गठिया, ब्लड की कमी और हार्ट डिज़ीज हो। ये किरणें शरीर को गर्म रखने में मदद भी करती हैं।
स्किन डिज़ीज से बचाता है
अस्ताचलगामी और उगते सूर्य को अर्घ्य देने समय आप इस रोशनी के संपर्क में आते हैं तो इससे स्किन डिजीज नहीं होती। स्किन के लिए ये किरणें बहुत अच्छी होती हैं। सर्दियां आते ही सूर्य का ताप कम होने लगता है, ऐसे में धूप में रहना फायदेमंद होता है।इस समय सूर्य की किरणों में विटामिन डी की मात्रा की जरूरत भी ज्यादा होती है और ये इन्ही किरणों से मिलती है। साथ ही सूर्य की रोशनी शरीर में संचित हो जाती है जो जरूरत पड़ने पर शरीर को एनर्जी देती है। इस पर्व में जलाशय में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस दौरान जल, दुग्ध तथा प्रसाद अर्पित किया जाता है। छठ के व्रत में मन तथा इंद्रियों पर नियंत्रण रखना होता है। जल में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देने का भी खास महत्व है।
वैज्ञानिक रहस्य
चूंकि दीपावली के बाद सूर्यदेव का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है। इसलिए व्रत के साथ सूर्य की अग्नि के माध्यम से ऊर्जा का संचय किया जाता है, ताकि शरीर सर्दी में स्वस्थ रहे।इसके अलावा सर्दी आने से शरीर में कई परिवर्तन भी होते हैं। खास तौर से पाचन तंत्र से संबंधित परिर्वतन।छठ पर्व का उपवास पाचन तंत्र के लिए लाभदायक होता है। इससे शरीर की आरोग्य क्षमता में वृद्धि होती है। जब उपवास, सूर्यदेव को अर्घ्य और जलाशय में पूजन करते हैं, तो शरीर की जीवनी शक्ति ज्यादा मजबूत होती है।वह इन द्रव्यों का निष्कासन करने से स्वस्थ होता है।ज्योतिष के अनुसार, अगर कुंडली में किसी ग्रह का दोष हो और छठ पूजा में सूर्य का पूजन किया जाए तो उसका निवारण होता है। साथ ही सूर्य को अर्घ्य देने से भाग्योदय की प्राप्ति होती है।
आपको बता दें कि बिना डाला या सूप पर अर्घ्य दिए छठ पूजा पूरी नहीं होती है- शाम को अर्घ्य को गंगा जल के साथ देने का प्रचलन है, जबकि सुबह के समय गाय के दूध से अर्घ्य दिया जाता है।
सूर्य को अर्घ्य देते समय इन 4 बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए
1. तांबे के पात्र में दूध से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।
2. पीतल के पात्र से दूध का अर्घ्य देना चाहिए।
3. चांदी, स्टील, शीशा और प्लास्टिक के पात्रों से भी अर्घ्य नहीं देना चाहिए।
4. पीतल और तांबे के पात्रों से अर्घ्य प्रदान करना चाहिए।
अर्घ्य के सामान का महत्व
सूप: अर्ध्य में नए बांस से बनी सूप और डाला का प्रयोग किया जाता है। सूप से वंश में वृद्धि होती है और वंश की रक्षा भी।
ईख: ईख आरोग्यता का सूचक है।
ठेकुआ: ठेकुआ समृद्धि का सूचक है।
मौसमी फल: मौसम के फल ,फल प्राप्ति के सूचक हैं।
सामाजिक/सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व में बाँस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्त्तनों, गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूं से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है।