Siliguri Coronavirus: सांसों के साथ रिश्तों की डोर भी तोड़ रहा कोरोना वायरस, परिजन शव लेने से कर रहे इनकार
कोरोना वायरस महामारी ने देश दुनिया के साथ ही सिलीगुड़ी में भी तबाही मचा रखी है। आलम यह है कि यह बीमारी सिर्फ मरीजों की सांसों की डोर ही नहीं तोड़ रहा बल्कि रिश्तो की डोर को भी तोड़ दे रहा है। स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है
विपिन राय, सिलीगुड़ी: कोरोना वायरस महामारी ने देश दुनिया के साथ ही सिलीगुड़ी में भी तबाही मचा रखी है। आलम यह है कि यह बीमारी सिर्फ मरीजों की सांसों की डोर ही नहीं तोड़ रहा बल्कि रिश्तो की डोर को भी तोड़ दे रहा है। स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है जिंदा रहते जो परिजन हर वक्त अपनी जान छिड़कते थे वही परिजन अब मर जाने के बाद लाश लेने से इंकार कर रहे हैं, जिसकी वजह से मरने के बाद भी शव के अंतिम संस्कार में काफी वक्त लग रहा है श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार के लिए काफी लंबी वेटिंग लिस्ट है। बारी नहीं आने के कारण शव को दो-दो दिन तक अस्पताल में ही रखना पड़ रहा है।
जानकारी के अनुसार अभी कोरोना की बीमारी से मरे मरीजों का अंतिम संस्कार साहू डांगी श्मशान घाट में हो रहा है। पिछले साल से ही यह व्यवस्था लागू है लेकिन तब शवों की संख्या काफी कम थी। इसलिए किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती थी। लेकिन अब शवों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 8 दिनों में सिलीगुड़ी तथा आसपास के इलाके में ही 76 मरीजों की मौत हो चुकी है। हर दिन 10 से अधिक मरीज मर रहे हैं इस महीने की 5 तारीख को तो 16 मरीजों की मौत हुई थी। यह आंकड़ा सिर्फ सिलीगुड़ी का है। जबकि साहूडांगी श्मशान घाट में सिलीगुड़ी तथा आसपास के इलाके में मरने वाले के साथ ही जलपाईगुड़ी जिले में मरने वाले का भी अंतिम संस्कार भी होता है। जाहिर है साहूडांगी श्मशान घाट पर लोड बढ़ रहा है। इसी कारण प्रशासन ने सिलीगुड़ी में एक और श्मशान घाट की तलाश तेज कर दी है।
मिली जानकारी के अनुसार शवों की बढ़ती संख्या को देखते हुए पहले कुलीपाड़ा स्थित किरण चंद्र श्मशान घाट में भी कोरोना से मरे मरीजों का अंतिम संस्कार का फैसला हुआ था। लेकिन यह जन बहुल इलाका है। इसी कारण प्रशासन ने फिलहाल अपना यह निर्णय टाल दिया है । सिलीगुड़ी नगर निगम सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शवों के अंतिम संस्कार के लिए एक और वैकल्पिक श्मशान घाट की तलाश तेज हो गई है। 1 से 2 दिनों में वैकल्पिक श्मशान घाट की व्यवस्था कर ली जाएगी ।
दूसरी ओर कोरोना मरीजों के शव को लेकर परिजनों की बेरुखी से प्रशासन की चिंता भी बढ़ गई है। पहले किसी कोरोना मरीज की मौत होती थी तो उसके अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था प्रशासन द्वारा ही की जाती थी। अब भी यही व्यवस्था है । लेकिन तब कई लोगों का कहना था कि कोरोना मरीजों के शव को परिवार वालों के हवाले भी किया जाना चाहिए। उसके बाद सरकार ने नियम में कुछ बदलाव किया है । यदि कोई परिजन शव लेना चाहे तो पैकिंग कर शव को परिवार वाले के हवाले कर दिया जाता है।
उसके बाद अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी परिवार वालों की होगी। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि परिवार के लोग शव लेने आ ही नहीं रहे हैं। इसके पीछे दो मुख्य कारण हैं । एक तो कोरोना को लेकर लोगों में काफी डर है और दूसरा यह कि अगर स्वयं अंतिम संस्कार करवाएं तो शव को लेकर आखिर कहां जाएं । शव को साहूडांगी ही लेकर जाना होगा। सरकारी निर्देश में साफ कहा गया है कि यदि कोई परिजन शव को लेता है तो उसे सीधे अस्पताल से श्मशान घाट ले कर जाना होगा । इसके लिए एंबुलेंस की व्यवस्था भी परिजनों को ही करनी होगी । यहीं से परेशानी शुरू होती है। अगर कोई परिजन स्वयं शव का अंतिम संस्कार करना चाहे तो एंबुलेंस मिलने और अंतिम संस्कार के लिए समय मिलने में इतनी परेशानी होती है कि परिजन स्वयं परेशान हो जाते हैं। मरने के बाद उनका लगाव पूरी तरह से खत्म हो जाता है।
अभी एंबुलेंस वालों की ही बड़ी भूमिका
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अभी अंतिम संस्कार में एंबुलेंस वाले बड़ी भूमिका निभा रहे हैं । यदि कोई शव का अंतिम संस्कार करना चाहे तो उसे पहले एंबुलेंस वाले से संपर्क करना पड़ता है । लेकिन यह भी नहीं कि आपने एंबुलेंस वाले को कहा और वह शव को लेकर साहूडांगी चला जाएगा । दरअसल जब तक साहूडांगी श्मशान घाट से हरी झंडी नहीं मिल जाए तब तक शव को अस्पताल में ही रखना पड़ेगा । क्योंकि वहां शवों की लाइन लगी हुई है। शव के अंतिम संस्कार में 2 से 3 दिन का समय लग सकता है । ऊपर से एंबुलेंस वाले किराया भी बहुत वसूलते हैं । कई कई मामलों में तो 10 से 12000 रूपए तक मरीजों के परिजन से ले लेते हैं। एक मामले में तो सिलीगुड़ी से कोरोना वायरस से मरे मरीज के शव को बिहार के ठाकुरगंज ले जाने के लिए 24000 लेने की भी जानकारी मिली है। इतना बवेला देखकर परिजन पूरी तरह से शव के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी सरकार के भरोसे छोड़ देते हैं ।
चंपासारी के निकट महानंदा घाट की पहचान
शवों की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रशासन ने एक और वैकल्पिक श्मशान घाट बनाने का फैसला किया है। चंपासारी के निकट महानंदा ब्रिज के पास जो खाली स्थान है वहां भी अब करोना से मरे मरीजो का अंतिम संस्कार होगा। सिलीगुड़ी नगर निगम सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अधिकारियों की एक टीम ने उस स्थान का दौरा भी कर लिया है। 2 से 4 दिनों में वहां शव को जलाने के लिए प्लेटफार्म बनाने का काम शुरू हो जाएगा। चुकी वहां बिजली से दाह संस्कार की व्यवस्था नहीं है । इसलिए सभी चिंताएं लकड़ी से ही जलेगी।
शव के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी सरकार को लेनी होगी । यह सही है कि परिजन शव लेने से मना कर रहे हैं। लेकिन उनकी परेशानी भी देखनी होगी ।कुछ ही लोग हैं जो पैसे के बल पर शवों का अंतिम संस्कार करा सकते हैं । गरीब परिवार के पास 10 से 15000 एंबुलेंस वालों को देने के लिए पैसे नहीं होते । वह भला क्यों शव को लेना चाहेगा। उसके बस की बात ही नहीं है। इसलिए शवों के अंतिम संस्कार में सरकार को ही बड़ी भूमिका निभानी होगी ।
-सोमनाथ चटर्जी सलाहकार वेस्ट ,बंगाल वोलेट्री ब्लड डोनर फोरम