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संगति का महत्व

कहा जाता है कि जैसी हमारी संगति होती है वैसा ही हम पर उसका असर भी होता है। अगर संगति अच्छी हो तो उ

By JagranEdited By: Published: Wed, 30 Sep 2020 10:32 PM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 05:08 AM (IST)
संगति का महत्व

कहा जाता है कि जैसी हमारी संगति होती है वैसा ही हम पर उसका असर भी होता है। अगर संगति अच्छी हो तो उसका असर भी हमारे ऊपर अच्छा ही होता है और बुरी संगति हो तो उसका असर भी हमारे ऊपर बुरा ही होता है। इसे एक छोटी सी कहानी से भी समझा जा सकता है। एक लड़का था रामू। वह एक गरीब परिवार का लड़का था। मगर, पढ़ने में बहुत ही बुद्धिमान था। 12वीं की परीक्षा अव्वल नंबर से पास कर रामू कॉलेज में चला गया। जहा उसे कई सारे दोस्त मिले। रामू अपने परिवार के प्रति बहुत सचेत रहा करता था। इसीलिए वह मन लगा कर पढ़ना चाहता था। पढ़ कर कुछ करना चाहता था। मगर, बदलते समय के साथ रामू के विचार में भी परिवर्तन आने लगा। इसकी वजह थी उसकी दोस्ती। जब रामू पर घर पर रह कर पढ़ाई करता था तो वह केवल घर और घर के लोगों के बारे में ही सोचा करता था। पर, जैसे ही रामू कॉलेज की पढ़ाई के लिए घर से बाहर निकल पड़ा उसके ख्यालात बदलते हुए नजर आने लगे। इसकी वजह उसकी संगति थी। उसकी संगति कुछ ऐसे लोगों के साथ हो गई जो उसे घर परिवार से अलग करने लगे। रामू के मा-बाप काफी चिंतित होने लगे कि आखिर रामू को हो क्या गया है? वह घर वालों से इतना दूर क्यों होता जा रहा है? किसी से न अच्छे से बात करना और न जल्दी घर पर आना चाहता है। आखिर क्या वजह है? जब रामू के पिता कई दिनों के बाद रामू से उसके कॉलेज मिलने गए तो पता चला कि रामू अपने मित्र के साथ काफी व्यस्त रहने लगा है। उसकी पढ़ाई की ओर भी उसका ध्यान कम रहता है। दोस्तों के साथ ही मौज-मस्ती में ज्यादा समय गुजारता है। रामू अब नकारात्मक सोच भी रखने लगा है। वह दोस्तों की संगत में बुरा जीवन भी जीने लगा है। वह घर परिवार को भूल बैठा है। यह सब देख रामू के पिता ने रामू को घर वापस चलने को कहा। उसके पिता चाहते थे कि रामू अब सब कुछ छोड़ छाड़ कर घर परिवार के साथ रहे और खेती-बारी में उनका हाथ बंटाए। मगर, वह नहीं माना। कहा कि, पढ़ाई पूरी करके ही घर लौटेगा। रामू की जिद के आगे पिता उसे उसकी मर्जी पर छोड़ वापस घर आ गए। उन्हें बहुत धक्का लगा कि उनका इकलौता बेटा रामू उनके हाथों से निकलता जा रहा है। इसी सदमे और अकेले घर परिवार का सारा बोझ उठाते उठाते रामू के पिता बहुत बीमार हो गए। उन्हें हृदय रोग ने जकड़ लिया। उन्हें बड़ी उम्मीद थी कि उनका इकलौता बेटा पढ़ लिखकर अच्छा व कामयाब इंसान बनेगा। उनका बड़ा सहारा बनेगा। मगर, उनकी सारी उम्मीद पर पानी फिर गया। इसी सदमे में अंतत? एक दिन वह गुजर गए। पिता की मृत्यु हो जाने पर भी रामू घर नहीं आया। उसे खबर करने वाला कोई नहीं था। मा अकेले घर पर थी। वह भी तन्हा जीवन गुजारने लगी। अपनी पढ़ाई पूरी कर जब रामू घर वापस लौटा तो पिता को न पा कर उसे बहुत धक्का लगा। पिता की मृत्यु की खबर ने उसे हिला कर रख दिया। रामू ने अपने जीवन में वह खो दिया था जो वह कभी सोचा भी नहीं था। वह अपनी ही दुनिया में इतना खो गया था कि मा-बाप की उसे सुध ही न रही। इसकी उसे ऐसी सजा मिली कि वह अपने पिता को अंतिम समय में देख तक न पाया। उनका अंतिम संस्कार करने तक का भी उसे मौका नहीं मिल पाया।

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अपनी इस बदकिस्मती पर रामू फूट-फूट कर रोने लगा। मा को कहने लगा कि, मा मैं तुम्हारा बेटा होने के लायक नहीं हूं। ऐसे समय में तुम्हारे काम न आ सका। तुम्हारे साथ न रह सका तो मैं किसी लायक नहीं हूं। ऐसे दिन भी मुझे देखने पड़ेंगे मैंने कभी सोचा भी नहीं था। आज मैंने सब कुछ पा कर भी कुछ नहीं पाया। सब कुछ लुट गया। मैंने सोचा था कि मैं पढ़ लिखकर आपका और बाबू जी का सपना पूरा कर दूंगा। मैं पढ़ लिख कर उस मुकाम पर तो पहुंच गया लेकिन फिर भी सब कुछ खो बैठा। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। रामू को उसकी गलती का एहसास होने पर मा ने उसे गले से लगा लिया। कहा कि, बेटा तू ही अब मेरा सहारा है। अब तू मुझे छोड़ कर कहीं मत जाना। रामू ने मा का हाथ पकड़ कर उसे थाम लिया और कहा, न मा, अब मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा।

इस कहानी से संगति के असर को भलीभाति समझा जा सकता है। इसीलिए, कहा जाता है कि अच्छी संगति हमें अपनों से जोड़ कर रखती है। बुरी संगति अपनों से दूर कर देती है। अगर रामू भी अच्छी संगति में होता तो वह अपने घर वालों से दूर न रहता। अपने मित्रों को जिस तरह देखता उस तरह वह घर वालों के भी साथ ही जुड़ा रहता। पर न उसके मित्र वैसे थे और न रामू ही वैसा बन पाया। सचमुच, कुछ दोस्ती हमें जीवन सिखाती है तो कुछ दोस्ती जीवन में अंधकार लाती है। इसलिए दोस्ती ऐसी हो जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर आने के लिए प्रेरित करे। इसलिए कहा जाता है अच्छी संगति का बहुत बड़ा महत्व होता है। उमेश गुप्ता

निदेशक प्राचार्य

लाइमलाइट हाईस्कूल (बागडोगरा)


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