एशियन गेम्स : रिक्शा चालक की बेटी ने देश को दिलाया सोना, पूरा हुआ स्वप्ना का सपना
एशियन गेम्स-2018 के 11वें दिन स्वप्ना ने हेप्टाथलान में गोल्ड जीतकर पूरे देश का नाम रोशन किया है।
जलपाईगुड़ी, जागरण संवाददाता। खेल दिवस पर दो स्वर्ण की सौगात एशियन गेम्स में बुधवार का दिन भारत के लिए ऐतिहासिक रहा। खेल दिवस के दिन पहला स्वर्ण अरपिंदर ने पुरुषों की ट्रिपल जंप में, जबकि दूसरा स्वर्ण पदक हेप्टाथलॉन में स्वप्ना बर्मन ने जीता। स्वप्ना बर्मन ने महिलाओं की हेप्टाथलॉन का स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। वह हेप्टाथलॉन में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बन गईं हैं। दांत दर्द के बीच खेलने उतरीं स्वप्ना ने सात स्पर्धा के बाद 6026 अंकों के साथ स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया। इस सुनहरी जीत की कड़ी में उन्होंने ऊंची कूद (1003 अंक) और भाला फेंक (872 अंक) स्पर्धा में पहले स्थान पर रहीं जबकि गोला फेंक (707 अंक) और लंबी कूद (865 अंक) में दूसरे स्थान पर रहीं।
एशियन गेम्स-2018 के 11वें दिन स्वप्ना ने हेप्टाथलॉन में गोल्ड जीतकर पूरे देश का नाम रोशन किया है। इस जीत के साथ ही स्वप्ना के घर व पूरे इलाके के लोगों में खुशी का माहौल देखा गया। एक दूसरे को मिठाई खिलाते हुए पटाखे फोड़े गए।
जलपाईगुड़ी सदर ब्लॉक के कलियागंज घोषापाड़ा निवासी रिक्शा चालक की बेटी स्वप्ना बर्मन एशियन गेम्स में सोना जीतकर देश का मान बढ़ाया है। रिक्शा चालक पिता पंचानन बर्मन स्ट्रोक के चलते 2013 से बिस्तर पर पड़े हैं। मां बसना बर्मन बागान श्रमिक थी। एथलेटिक्स में स्वप्ना की सबसे बड़ी समस्या पैर में छह अंगुली होना है। स्कूल शिक्षक विश्वजीत कर ने सपना को खेल के मैदान तक पहुंचाया। बिना छत के घर व दो वक्त की रोटी के लिए परेशान स्वप्ना को पैर में छह अंगुली के चलते खेल के जूते नहीं मिल रहे थे। जूता पहनने पर दर्द होता था। घर चलाने की जिम्मेदारी भी स्वप्ना व बड़े भाई असित बर्मन की ही है।
एशियन गेम्स शुरू होने से ठीक पहले स्वप्ना के दांत में चोट लगी थी। बावजूद सपना खेल में अपने प्रदर्शन पर केंद्रीत रहकर सोना जीतकर दिखाई है। 19 दिसंबर 1996 में जन्मी स्वप्ना नौ वर्ष की आयु से खेल रही है। राज्य के हाई जंप का रिकार्ड भी सपना के पास है। 2014 एशियन चैंपियनशिप में स्वप्ना को 5वां स्थान मिला था। 2017 में लंदन में वर्ल्ड चैंपियनशिप में 21वें स्थान पर रही थी। 2017 में भूवनेश्वर में एशियन ट्रैक एंड फिल्ड मीट में गोल्ड मेडल पाने में सफल रही थी।
स्वप्ना को पहले विश्वजीत कर ने खेल मैदान दिखाया। फिर उत्तमेश्वर हाई स्कूल के शिक्षक विश्वजीत मजूमदार ने मार्गदर्शन दिया। इसके बाद सुकांत सिन्हा ने प्रशिक्षित किया। स्वप्ना की मां बसना बर्मन ने कहा कि उनकी बेटी न सिर्फ जिले व सूबे का वरन देश का नाम रोशन कर रही है। परिवार विपरीत परिस्थिति से लड़ते हुए सपना को खेल के प्रति अग्रसर करता रहा है। आज वे काफी खुश हैं।
उत्तरी बंगाल का शहर जलपाईगुड़ी बुधवार को उस समय जश्न में सरावोर हो गया जब यहां के एक रिक्शा चालक की बेटी स्वप्ना बर्मन ने एशियाई खेलों में सोने का तमगा अपने गले में डाला। स्वप्ना ने इंडोनेशिया के जकार्ता में जारी 18वें एशियाई खेलों की हेप्टाथलन स्पर्धा में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। वह इस स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी हैं। स्वप्ना ने सात स्पर्धाओं में कुल 6026 अंकों के साथ पहला स्थान हासिल किया। जैसे ही स्वप्ना की जीत तय हुई यहां घोषपाड़ा में स्वप्ना के घर के बाहर लोगों को जमावड़ा लग गया और चारों तरफ मिठाइयां बांटी जाने लगीं।
अपनी बेटी की सफलता से खुश स्वप्ना की मां बाशोना इतनी भावुक हो गई थीं कि उनके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। बेटी के लिए वह पूरे दिन भगवान के घर में अर्जी लगा रही थीं। स्वप्ना की मां ने अपने आप को काली माता के मंदिर में बंद कर लिया था। इस मां ने अपनी बेटी को इतिहास रचते नहीं देखा क्योंकि वह अपनी बेटी की सफलता की दुआ करने में व्यस्त थीं।
बेटी के पदक जीतने के बाद बशोना ने कहा, “मैंने उसका प्रदर्शन नहीं देखा। मैं दिन के दो बजे से प्रार्थना कर रही थी। यह मंदिर उसने बनाया है। मैं काली मां को बहुत मानती हूं। मुझे जब उसके जीतने की खबर मिली तो मैं अपने आंसू रोक नहीं पाई।” स्वप्ना के पिता पंचन बर्मन रिक्शा चलाते हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों से उम्र के साथ लगी बीमारी के कारण बिस्तर पर हैं।
बशोना ने बेहद भावुक आवाज में कहा, “यह उसके लिए आसान नहीं था। हम हमेशा उसकी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते थे, लेकिन उसने कभी भी शिकायत नहीं की।” एक समय ऐसा भी था कि स्वप्ना को अपने लिए सही जूतों के लिए संघर्ष करना पड़ता था क्योंकि उनके दोनों पैरों में छह-छह उंगलियां हैं। पांव की अतिरिक्त चौड़ाई खेलों में उसकी लैंडिंग को मुश्किल बना देती है इसी कारण उनके जूते जल्दी फट जाते हैं।
स्वप्ना के बचपन के कोच सुकांत सिन्हा ने कहा कि उसे अपने खेल संबंधी महंगे उपकरण खरीदने में काफी परेशानी होती है। बकौल सुकांत, “मैं 2006 से 2013 तक उसका कोच रहा हूं। वह काफी गरीब परिवार से आती है और उसके लिए अपनी ट्रेनिंग का खर्च उठाना मुश्किल होता है। जब वह चौथी क्लास में थी तब ही मैंने उसमें प्रतिभा देख ली थी। इसके बाद मैंने उसे ट्रेनिंग देना शुरू किया।”
उन्होंने कहा, “वह बेहद जिद्दी है और यही बात उसके लिए अच्छी भी है। राइकोट पारा स्पोर्टिग एसोसिएशन क्लब में हमने उसे हर तरह से मदद की। आज मैं बता नहीं सकता कि मैं कितना खुश हूं।”चार साल पहले इंचियोन में आयोजित किए गए एशियाई खेलों में स्वप्ना कुल 5178 अंक हासिल कर चौथे स्थान पर रही थी। पिछले साल एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में भी वह स्वर्ण जीत कर लौटी थी।
स्वप्ना ने 100 मीटर में हीट-2 में 981 अंकों के साथ चौथा स्थान हासिल किया था। ऊंची कूद में 1003 अंकों के साथ पहले स्थान पर कब्जा जमाया। गोला फेंक में वह 707 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं। 200 मीटर रेस में उसने हीट-2 में 790 अंक लिए।