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अक्षय कुमार की 'पैडमैन' से पहले से है इस सरकारी स्कूल में सेनेटरी नैपकिन की व्यवस्था

अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन तो इस साल आई है, लेकिन गांव के इस स्कूल में बच्चियों के लिए सेनेटरी नैपकिन की व्यवस्था 2013 से ही की जा रही है। आइए जानते हैं इस स्कूल के बारे में...।

By Rajesh PatelEdited By: Published: Sat, 15 Dec 2018 12:27 PM (IST)Updated: Sat, 15 Dec 2018 12:27 PM (IST)
अक्षय कुमार की 'पैडमैन' से पहले से है इस सरकारी स्कूल में सेनेटरी नैपकिन की व्यवस्था
अक्षय कुमार की 'पैडमैन' से पहले से है इस सरकारी स्कूल में सेनेटरी नैपकिन की व्यवस्था

सिलीगुड़ी [इरफान-ए-आजम] । इसी वर्ष अक्षय कुमार की आई फिल्म ‘पैडमैन’ की वजह से एक क्रांति जरूर आई, लेकिन पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के एक ग्रामीण सरकारी स्कूल में लड़कियों के लिए पैड की व्यवस्था 2013 से ही है। इसका नाम है मुरलीगंज हाईस्कूल। अब तो यहां इसके लिए वेंडिंग मशीन भी स्थापित कर दी गई है। जहां पांच रुपये का सिक्का डाल कर छात्राएं आसानी से सैनिटरी नैपकिन प्राप्त कर रही हैं।
खास बातें

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  • अति पिछड़े गांव मुरलीगंज के स्कूल को बनाया राज्य का मॉडल स्कूल, दुनियां भर में हो रही सराहना
  • विदेशी आते हैं यहां की व्यवस्था देखने, एक शिक्षक की मेहनत ने सरकारी स्कूल को बनाया कारपोरेट जैसा
  • स्मार्ट क्लास, मिड डे मील की व्यवस्था की यूनिसेफ कर चुका है तारीफ
  • भव्य इमारत, रंगरोगन नया जैसा, खिले फूल और चकाचक सफाई देश कोई कहता ही नहीं इसे सरकारी स्कूल


स्कूल का दौरा करने आई यूनिसेफ की टीम का स्वागत करतीं छात्राएं।
इसके साथ ही अन्य कई विशेषताएं हैं, जिनके चलते जर्मनी, कनाडा, फिलीपींस, किर्गिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश व नेपाल सरीखे देशों से शिक्षा जगत के विशेषज्ञ व सरकारों के प्रतिनिधि कार्यपद्धति सीखने को यहां आते रहते हैं।यूनिसेफ जैसे विश्व के प्रतिष्ठित संगठन ने इस पर डॉक्यूमेंट्री बनाकर मॉडल के रूप में पेश कर दुनिया को इससे सीखने को कहा। जी हां, ऐसा एक सरकारी स्कूल है। यह स्कूल सिलीगुड़ी महकमा के फांसीदेवा प्रखंड के विधान नगर अंतर्गत मुरलीगंज गांव में मौजूद है। मुरलीगंज हाईस्कूल।
स्कूल की भव्य इमारत।
वर्ष 2000 में इसकी स्थापना हुई। इस स्कूल को जिसने पूरी दुनिया के सामने ‘आदर्श’ बना कर पेश किया, वह ‘आदर्श शिक्षक’ हैं इसके प्रधानाध्यापक शम्शुल आलम। वह यहां घोर अंधेरे में उजाला साबित हुए हैं। उनकी कार्य पद्धति से प्रभावित हो कर यूनिसेफ के सलाहकार जर्मनी के मेल्फ कुइह्ल ने कहा है कि ‘‘स्कूल प्रबंधन जो कर रहा है, वह ‘गजब’ कर रहा है’’।
विशाल खेल का मैदान
यह पश्चिम बंगाल राज्य के मॉडल स्कूलों में एक है। वर्ष 2013 में राज्य सरकार की ओर से इसे निर्मल विद्यालय, शिशु मित्र व जामिनी राय सम्मान से सम्मानित किया गया। शम्शुल आलम प्रधानाध्यापक बन कर जब आए, तब से जो इस स्कूल का कायापलट हुआ। वह दिन-दूनी रात-चौगुनी तेजी से जारी है। तीन मंजिली शानदार इमारत। रंग-रोगन चकाचक। अंदर, बाहर व चारों ओर चकाचक सफाई। सुंदर एक्वेरियम। जगह-जगह कूड़ेदान की व्यवस्था। शौचालय की स्वच्छता अविश्वसनीय। रंग-बिरंगे फूलों की बागवानी से सजा परिसर। 32 सीसी कैमरों से चप्पे-चप्पे की निगरानी। पूरी तरह से कंप्यूटरीकृत स्कूल। विज्ञान की प्रयोगशाला हो या खेल के लिए मिनी इंडोर स्टेडियम, सब उत्तम। बच्चों का स्कूल ड्रेस में ही आना।

डिजिटल क्लास।
एक सरकारी स्कूल होते हुए भी यह कॉरपोरेट स्कूल से कम नहीं। यही वजह है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने इस स्कूल पर डॉक्यूमेंट्री बना कर औरों के लिए इसे प्ररेणा के रूप में पेश किया है। राज्य के पर्यटन मंत्री गौतम देव कहते हैं कि ‘मुरलीगंज हाईस्कूल सिलीगुड़ी या उत्तर बंगाल या पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि देश भर के लिए मॉडल स्कूल है’।
यूनिसेफ तक ने इसे माना है। इस स्कूल पर डॉक्यूमेंट्री बना कर यहां की मिड-डे-मील व्यवस्था को दुनिया के लिए नजीर बताया है। कर्मचारी ऐप्रॉन, कैप, मास्क व ग्लोव्स लगा कर ही पूरी स्वच्छता के साथ मिड डे मील तैयार करते हैं। गुणवत्ता व पौष्टिकता का भी पूरा ख्याल रखा जाता है। मिड डे मील के अपशिष्ट से जैविक खाद बनाई जाता है। उसका स्कूल के अपने मत्स्य पालन वाले तालाब, किचन गार्डेन व बागवानी में इस्तेमाल किया जाता है।


गांव के मामूली सरकारी स्कूल को कारपोरेट जैसा बनाने के लिए प्रयास करने वाले शिक्षकों की टीम, बीच में खड़े हैं प्रधानाध्यापर शमशुल (टाई लगाए)।
इस स्कूल में बच्चे बिना हाथ धोए मिड-डे-मील ग्रहण नहीं कर सकते। राष्ट्रीय मानक के अनुसार स्कूलों में हर 30 विद्यार्थी पर एक नल होना चाहिए। मगर, यहां हालत उससे भी बेहतर है। लगभग हर 25 बच्चे पर ही एक नल है। कुल नलों की संख्या 64 है। जरूरतमंद विद्यार्थियों की मदद के लिए स्कूल का अपना आर्थिक सहायता कोष है। यहां के कोई शिक्षक प्राइवेट ट्यूशन नहीं पढ़ाते। बच्चे तक भी प्राइवेट ट्यूशन की जरूरत महसूस नहीं करते। हर बच्चे का नियमित रूप में हर महीने एक बार बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) चेक किया जाता है। स्वास्थ्य पहलुओं के साथ ही अकादमिक शिक्षा के मामले में भी हरेक बच्चे पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

वर्ष 2004 में जगदीशचंद्र विद्यापीठ के शिक्षक शम्शुल आलम जब यहां के प्रधानाध्यापक बने, तब इस स्कूल में मात्र 165 विद्यार्थी हुआ करते थे। उनकी उपस्थिति पचास प्रतिशत से भी कम। मगर, आज विद्यार्थियों की संख्या लगभग 1900 है और उपस्थिति 90 प्रतिशत। वर्ष 2006 में इसे माध्यमिक व वर्ष 2010 में उच्च माध्यमिक स्कूल का दर्जा मिला। हर साल माध्यमिक व उच्च माध्यमिक परीक्षा में इस स्कूल के विद्यार्थियों का प्रदर्शन उत्कृष्ट होता है। यहां के बच्चे राज्य स्तर पर टॉपरों में शुमार होते हैं।
इसी वर्ष उच्च माध्यमिक परीक्षा में राज्य भर के टॉप-20 में 16वां स्थान पाने वाले यहां के कला संकाय के छात्र प्रशांत कुमार विश्वास ने अपनी सफलता को अपने ‘हेड सर’ समर्पित किया है। बकौल प्रशांत ‘हेड सर बहुत अच्छे हैं। हमेशा हर किसी का उत्साहवर्धन करते रहते हैं।
गजब की प्रेरणा जगाते हैं। हरेक का विशेष ख्याल रखते हैं’। स्कूल के शिक्षक-कर्मचारी से लेकर विद्यार्थी तक अपने इस प्रधानाध्यापक का गुणगान करते नहीं थकते। वहीं शम्शुल आलम कहते हैं कि ‘यह सब कोई मेरी व्यक्तिगत नहीं बल्कि हमारी टीम व टीम वर्क की उपलब्धि है’। शम्शुल आलम के इस जज्बे व शिक्षा जगत में उनके करिश्माई कारनामे को न जाने कितने संगठन-संस्थाओं ने सराहा है। इसी वर्ष दस अगस्त को दिल्ली स्थित इकोनोमिक ग्रोथ सोसायटी ऑफ इंडियाने उन्हें ग्लोरी ऑउ इंडिया अवार्ड से नवाजा है। 


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