इनके दर से खाली नहीं जाता कोई सवाली, दानवीर कहलाने लगे हैं सुभाष कुंभट
सिलीगुड़ी के प्रधाननगर निवासी सुभाष कुंभट को लोग दानवीर कर्ण और भामाशाह तक कहने लगे हैं। दरअसल इनके दरवाजे पर जो भी मदद की आस लेकर आता है, वह खाली नहीं लौटता है।
By Rajesh PatelEdited By: Published: Sat, 01 Dec 2018 02:37 PM (IST)Updated: Sat, 01 Dec 2018 02:37 PM (IST)
सिलीगुड़ी [राजेश पटेल]। कोई दानवीर कर्ण का उदाहरण देता है तो कोई भामाशाह का। लेकिन सिलीगुड़ी के प्रधाननगर निवासी सुभाष कुंभट खुद को यह कहलाने योग्य न मानते हुए अपना काम किए जा रहे हैं। इनके दरवाजे से कोई भी सवाली आजतक खाली हाथ नहीं लौटा। सप्ताह या माह के किसी खास दिन नहीं, इनके यहां प्रतिदिन सैकड़ों जरूरतमंद जुटते हैं और मदद लेकर जाते हैं। यही कारण है कि इनको सिलीगुड़ी का दानवीर कहा जाने लगा है।
दिव्यांग और महिलाओं की मदद करते सुभाष कुंभट।
कुंभट की उम्र करीब 70 साल होगी। 30 वर्ष से ज्यादा समय से वे रोजाना दो-ढाई घंटे दान ही करते हैं। इनकी ख्याति इस कदर हो गई है कि सुबह होते ही दरवाजे पर लंबी कतार लग जाती है। इनमें बच्चे होते हैं, महिलाएं होती हैं। कोई दिव्यांग होता है। किसी को पढ़ाई के लिए खर्च की जरूरत होती है। किसी को घर बनवाने में मदद चाहिए होती है। कोई दवा कराने के लिए मदद की गुहार लगाता है। किसी को ह्वील चेयर तो किसी को कृत्रिम शारीरिक अंग चाहिए होते हैं। सुबह करीब नौ बजे अपने कर्मचारियों के साथ सुभाष कुंभट कोठी से निकलते हैं। एक-एक से उसकी जरूरत पूछते हैं और तत्काल उसकी आवश्यकता के अनुसार मदद देकर हाथ जोड़कर विदा भी यह कहते हुए करते हैं कि फिर जरूरत पड़ने पर जरूर आना, जरा सा भी संकोच न करना।
मदद के लिए सुभाष कुंभट के घर के सामने लगी कतार।
इनके चलते हवाई मिठाई, टॉफी व आइसक्रीम वालों की भी करीब दो-ढाई घंटे में ही हजारों रुपये की बिक्री हो जाती है। वे भी नियमित अपना ठेला लेकर इनके दरवाजे पर पहुंच जाते हैं। सुभाषजी बाहर निकलते ही सबसे पहले इनको ही आदेश देते हैं कि बच्चे जो भी खाना चाहे, खिलाओ। बच्चों की भी संख्या कम नहीं होती। आसपास की गरीब बस्तियों के सैकड़ों बच्चे सिर्फ हवाई मिठाई, टॉफी और आइसक्रीम के लिए पहुंचते हैं।
खर्च के बारे में पूछने पर सुभाष कुंभट कहते हैं कि भगवान ने जो दिया है, उसे भगवान पर ही तो खर्च किया जा रहा है। इसे लिखना या जोड़़ना क्या। कभी हिसाब ही नहीं किया कि कितना खर्च होता है। इंसान की पूजा ही सही मायने मेें भगवान की पूजा है। आप लाख भगवान की पूजा कर लो, लेकिन एक जरूरतमंद की मदद नहीं कर सके तो सारी पूजा बेकार है।
चाय बागान मालिक व एक नामी कंपनी की बाइक की एजेंसी चलाने वाले सुभाष कुंभट यदि व्यवसाय के सिलसिले में शहर से बाहर रहते हैं तो भी उनका यह काम कभी बंद नहीं होता। उनका सख्त निर्देश है कि जो भी आया, उसे खाली हाथ नहीं लौटने देना है।
शनिवार को तो उनके दरवाजे पर सवालियों की संख्या पांच सौ पार कर जाती है। आम दिनों में भी सब मिलाकर करीब ढाई सौ लोग उनसे मदद की आस में पहुंचते ही हैं। सुभाषजी कहते हैं कि पुत्र अंतरिक्ष ने कारोबार संभाल लिया है, लेकिन उनको भी देखना पड़ता है। इसी में से यह समय भी निकालना पड़ता है। इसी कारण उनकी तरक्की भी हो रही है। दान देने से कभी घटता नहीं, इसके जीते-जागते उदाहरण वे स्वयं हैं।
दिव्यांग और महिलाओं की मदद करते सुभाष कुंभट।
कुंभट की उम्र करीब 70 साल होगी। 30 वर्ष से ज्यादा समय से वे रोजाना दो-ढाई घंटे दान ही करते हैं। इनकी ख्याति इस कदर हो गई है कि सुबह होते ही दरवाजे पर लंबी कतार लग जाती है। इनमें बच्चे होते हैं, महिलाएं होती हैं। कोई दिव्यांग होता है। किसी को पढ़ाई के लिए खर्च की जरूरत होती है। किसी को घर बनवाने में मदद चाहिए होती है। कोई दवा कराने के लिए मदद की गुहार लगाता है। किसी को ह्वील चेयर तो किसी को कृत्रिम शारीरिक अंग चाहिए होते हैं। सुबह करीब नौ बजे अपने कर्मचारियों के साथ सुभाष कुंभट कोठी से निकलते हैं। एक-एक से उसकी जरूरत पूछते हैं और तत्काल उसकी आवश्यकता के अनुसार मदद देकर हाथ जोड़कर विदा भी यह कहते हुए करते हैं कि फिर जरूरत पड़ने पर जरूर आना, जरा सा भी संकोच न करना।
मदद के लिए सुभाष कुंभट के घर के सामने लगी कतार।
इनके चलते हवाई मिठाई, टॉफी व आइसक्रीम वालों की भी करीब दो-ढाई घंटे में ही हजारों रुपये की बिक्री हो जाती है। वे भी नियमित अपना ठेला लेकर इनके दरवाजे पर पहुंच जाते हैं। सुभाषजी बाहर निकलते ही सबसे पहले इनको ही आदेश देते हैं कि बच्चे जो भी खाना चाहे, खिलाओ। बच्चों की भी संख्या कम नहीं होती। आसपास की गरीब बस्तियों के सैकड़ों बच्चे सिर्फ हवाई मिठाई, टॉफी और आइसक्रीम के लिए पहुंचते हैं।
खर्च के बारे में पूछने पर सुभाष कुंभट कहते हैं कि भगवान ने जो दिया है, उसे भगवान पर ही तो खर्च किया जा रहा है। इसे लिखना या जोड़़ना क्या। कभी हिसाब ही नहीं किया कि कितना खर्च होता है। इंसान की पूजा ही सही मायने मेें भगवान की पूजा है। आप लाख भगवान की पूजा कर लो, लेकिन एक जरूरतमंद की मदद नहीं कर सके तो सारी पूजा बेकार है।
चाय बागान मालिक व एक नामी कंपनी की बाइक की एजेंसी चलाने वाले सुभाष कुंभट यदि व्यवसाय के सिलसिले में शहर से बाहर रहते हैं तो भी उनका यह काम कभी बंद नहीं होता। उनका सख्त निर्देश है कि जो भी आया, उसे खाली हाथ नहीं लौटने देना है।
शनिवार को तो उनके दरवाजे पर सवालियों की संख्या पांच सौ पार कर जाती है। आम दिनों में भी सब मिलाकर करीब ढाई सौ लोग उनसे मदद की आस में पहुंचते ही हैं। सुभाषजी कहते हैं कि पुत्र अंतरिक्ष ने कारोबार संभाल लिया है, लेकिन उनको भी देखना पड़ता है। इसी में से यह समय भी निकालना पड़ता है। इसी कारण उनकी तरक्की भी हो रही है। दान देने से कभी घटता नहीं, इसके जीते-जागते उदाहरण वे स्वयं हैं।
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