पर्याप्त कर्मी नहीं और संसाधन भी कम,भला कैसे हो सड़क सुरक्षित
-कर्मियों के अभाव में नियमों का सख्ती से पालन नहीं -भीड़ के कारण दलालों के चक्कर में
-मात्र 191 कर्मचारियों के भरोसे चल रहा है ट्रैफिक विभाग
-मोटर वाहन विभाग के पास भी इंस्पेक्टरों की कमी
-रोक-टोक नहीं होने से नियमों की हो रही अनदेखी --------------
65
नाके लगाए गए हैं पूरे शहर में
800
कर्मचारी चाहिए इन नाकों पर जागरण संवाददाता,सिलीगुड़ी : कोरोना काल में सबसे ज्यादा सड़क पर सुरक्षित यातायात के नियमों का अनुपालन होना जरूरी है। यहा लोग नियमों का उल्लंघन कर वाहन चलाने में अपनी शान महसूस करते हैं। शहर की बढ़ रही आबादी, वाहनों की बेतहाशा संख्या और ट्रैफिक पुलिस के कर्मचारियों व संसाधनों की कमी चिंता का विषय है। इसी का लाभ लेकर रोज वाहन चालक नियमों को तोड़ने में लगे रहते हैं। ट्रैफिक पुलिस और परिवहन विभाग दोनों की मैन पावर की कमी से जूझना पड़ रहा है। जहां परिवहन विभाग में कई एमवीआई टेक्निकल इंस्पेक्टर की जरुरत है इसके बदले यहां मात्र तीन ही हैं। इसी प्रकार नन टेक्निकल एमवीआई अधिकारियों की कमी है। यह तो शुक्र है कि परिवहन विभाग के काम के लिए ट्रेजरी बिल्डिंग मुहैया करायी गयी है। हांलाकि यहां भी कामकाज में काफी परेशानी होती है। इन हालातों में दोनों ही विभागों के लिए जनता से ट्रैफिक नियमों का पालन कराना एक चुनौती है। सड़कों की कमी के साथ वाहनों की लगातार बढ़ती संख्या पर नियंत्रण के लिए पर्याप्त मात्रा में पुलिस बल और अधिकारी नहीं हैं। कई ऐसे सिगनल हैं जहां लाइट तो जोड़ दी गयी है परंतु उसका संचालन करने वाला कोई नहीं। शहर के पुलिस कमिश्नर त्रिपुरारी अर्थव का कहना है कि जवानों की कम संख्या होने के बावजूद वह शहर के लोगों को अच्छी सेवा दे रहे हैं। कहीं भी जाम की सूचना मिलती है तो ट्रैफिक पुलिस तुरंत वहा दस्ता भेजकर समस्या का हल कर देती है। शहर के ट्रैफिक पर काबू पाने के लिए लिए पुलिस आयुक्तालय के साथ एआरटीओ और नगर निगम की अहम भूमिका होती है। लेकिन तीनों में तालमेल नहीं हो पाने के कारण आज शहर में ट्रैफिक समस्या विकराल रूप ले चुकी है। पता चला है कि शहर में ट्रैफिक पुलिस के पास 191 जवान हैं। संख्या कम होने के कारण शहर में केवल 65 नाके ही लगाए गए हैं। जबकि सभी नाकों को सुचारू तरीके से चलाने के लिए कम से कम 800 सुरक्षाकर्मियों की जरुरत है। इसके बदले सिविक वोलेंटियरों के सहारे काम चलाना पड़ता है। आकड़ों के मुताबिक शहर में रोजाना एक लाख से ज्यादा पर्यटक आते हैं,जो अकसर शहर में ट्रैफिक देखकर घबरा जाते हैं। मात्र तीन एल्को मीटर
शराबी वाहन चालकों की जाच के लिए पुलिस विभाग के पास एल्को मीटर भी हाल में ही लाया गया है। जिसका इस्तेमाल हो रहा है। पर्याप्त मात्रा में नहीं होने के कारण उसे सभी महत्वपूर्ण स्थानों पर लगा पाना कठिन है। ट्रैफिक लाइटें भी कई जगहों पर खराब पड़ी हैं। उन्हें ठीक करवाने के लिए ट्रैफिक पुलिस नगर निगम के सहारे ही रहता है। यातायात पुलिस में संसाधनों की कमी निश्चित तौर पर अखड़ती है। लगातार काम करने से पुलिसकर्मियों को आराम नहीं मिल पाता। इसका असर उनकी कार्यप्रणाली पर भी पड़ता है। रात के समय सड़कों पर पर्याप्त पुलिसकर्मी नहीं रहते। इससे ट्रक चालकों व बड़े वाहन चालकों को मनमानी की छूट मिल जाती है। वाहनों की स्पीड जाचने वाले केवल तीन ही वाहन यातायात पुलिस के पास है। स्टाफ की कमी के कारण इनका भी इस्तेमाल नहीं हो पाता। इससे सड़कों पर निर्धारित से ज्यादा गति में वाहन दौड़ते दिखाई देते हैं।
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सात भागों में ट्रैफिक व्यवस्था
पुलिस कमिश्नरेट में यातायात को सुगम बनाने के लिए इसे सात भागों में बांटा गया है। इसमें प्रमुख है भक्तिनगर ट्रैफिक गार्ड, जंक्शन ट्रैफिक गार्ड, बागडोगरा ट्रैफिक गार्ड, जलपाईगुड़ी मोड़ ट्रैफिक गार्ड, एनजेपी ट्रैफिक गार्ड और पानीटंकी ट्रैफिक गार्ड। इसके तहत लगे सिगनलों का संचालन किया जाता है।
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ड्राइविंग लाइसेंस बनाना चुनौती
यहां परिवहन विभाग की तरफ से ड्राइविंग लाइसेंस बनाना भी एक चुनौती है। कंप्यूटर युग में भी कागजी कार्रवाई की बोझ व कई काउंटरों के चक्कर में फंस कर ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करना भी शहर की जनता के लिए एक समस्या है। लोगों को लंबी लाइन से बचने के लिए और अपना समय बचाने के लिए एजेंटों और दलालों की चौखट पर जाना पड़ता है। हालांकि यह व्यवस्था ऑनलाइन शुरु है। उसके बाद भी दलाल राज यहां कायम है। इससे जहा लोगों को अपनी जेब से कहीं अधिक पैसों का भुगतान करना पड़ता है वहीं दूसरी तरफ भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिल रहा है। हांलाकि इससे निपटने के लिए यहां हेल्प डेस्क तैयार किया गया। शहर में ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल भी है। भारी वाहन चलाने के लिए ट्रेनिंग स्कूल के लाइसेंस की जरूरत होती है। ------------------ संसाधनों की कमी है, मगर हमारी कोशिश कम संसाधनों में बेहतर व्यवस्था बनाने की है। इस मामले मे हमारे कर्मी काफी हद तक खरे भी उतरते हैं। अगर पर्याप्त संसाधन उपलब्ध होंगे तो व्यवस्था और अच्छी तरह संभाली जा सकेगी। पुलिसकर्मियों को भी आराम व तनाव मुक्त रहने का मौका मिलेगा।
-अनुपम सिंह, एडीसीपी,ट्रैफिक