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एनजेपी से लेकर सिलीगुड़ी जंक्शन तक अवैध कब्जे का जोर

-खाली कराने गए तो शुरू होता है विरोध का दौर -स्थानीय प्रशासन से सहयोग नहीं मिलने से ब

By JagranEdited By: Published: Fri, 18 Sep 2020 06:38 PM (IST)Updated: Fri, 18 Sep 2020 06:38 PM (IST)
एनजेपी से लेकर सिलीगुड़ी जंक्शन तक अवैध कब्जे का जोर

-खाली कराने गए तो शुरू होता है विरोध का दौर

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-स्थानीय प्रशासन से सहयोग नहीं मिलने से बढ़ी मुश्किलें

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-एनजेपी से लेकर सिलीगुड़ी जंक्शन तक रेलवे की जमीन पर बसी हैं कई बस्तियां

-अवैध कब्जे पर स्थानीय प्रशासन के साथ रेलवे की भूमिका पर भी लोग उठा रहे हैं सवाल

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण किए जाने की समस्या नई नहीं है। एक तरह से कहें तो यह समस्याकाफी पुरानी है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एनेजपी से लेकर सिलीगुड़ी जंक्शन तक रेलवे की जमीन पर कई बस्तियां बसी हुई हैं। यहां तक कि रेलवे लाइन के किनारे घर बना लिए गए हैं। अगर कोई रेल दुर्घटना होती है तो स्थिति क्या होगी,इसका बस अंदाजा भर लगाया जा सकता है। अब सवाल यह उठता है कि बस्तियां एक दिन में तो बसी नहीं। एक पर एक बस्तियां बसती गई और रेलवे को पता नहीं चला,ऐसा हो नहीं सकता। जाहिर है इस मामले में रलेवे की भूमिका पर भी सवाल अवश्य खड़ा होता है। मिली जानकारी के अनुसार रेलवे की जमीन पर कब्जा कर इनमें बस्तियां बनाने का कार्य एक-दो दिन में नहीं बल्कि चरणबद्ध तरीके से कई वर्षो में हुआ हैं। पहले लोग रेलवे की जमीन पर आने वाले प्लास्टिक लगाकर रहना शुरू करते हैं। उनसे पूछताछ करने पर कहते हैं वह एक-दो दिन में चले जाएंगे। उन्हें असहाय समझकर जबरदस्ती हटाया नहीं जाता है। धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ने लगती है। फिर देखा जाता है कि रेलवे की जमीन की धीरे-धीरे अतिक्रमण कर झोपड़ी डाल लेते हैं। आरोप है कि इन सब कार्यो में स्थानीय क्षेत्रीय जन प्रशासन के साथ रेलवे के कुछ श्रमिक संगठनों के नेताओं व रेलवे के स्थानीय अधिकारियों की सहमति रहती है। जब एनजेपी से लेकर सिलीगुड़ी जंक्शन तक रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर बस्तियां स्थापित हो गई, तो उन स्थापित बस्तियों को हटाने में रेलवे प्रशासन की पसीने छूट रहे हैं। सिलीगुड़ी जंक्शन इलाके व आसपास क्षेत्रों में अथवा एनजेपी तथा सिलीगुड़ी टाउन स्टेशन के आस-पास रेलवे की जमीन पर बसी बस्तियों को हटाने के मामला हो, इसके लिए रेलवे की ओर से कई बार अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाने की कोशिश की गई, लेकिन स्थानीय लोगों ने जमकर विरोध किया। उनके विरोध प्रदर्शन में स्थानीय नेताओं व पार्टियों का भी समर्थन मिलता रहा। जिसके चलते आरपीएफ व रेलवे के अधिकारियों को पांव पीछे हटाना पड़ा। रेलवे अधिकारी भी रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने के लिए राज्य सरकार व जिला प्रशासन से सहयोग मांगने की बात कह रहे हैं। लेकिन अभी तक उन्हें अपेक्षित सहयोग नहीं मिल सका। बगैर राज्य प्रशासन के सहयोग के रेलवे जमीन से अवैध कब्जा हटाना करीब-करीब मुश्किल है। सिर्फ बस्तियां ही नहीं बसी,बाजार तक बन गए

रेलवे की जमीन पर सिर्फ बस्तियां ही नहीं बसी हैं,बाजार तक बना लिए गए हैं। जब रेलवे अवैध बस्तियों को ही खाली नहीं करा पा रही है तो भला बाजार कहां से हटा पाएगी। इसका ताजा उदाहरण है सिलीगुड़ी जंक्शन है। स्टेशन के सामने रेलवे की जमीन पर काफी दुकान बने हुए हैं। कई बड़े-बड़े होटल खड़े हो गए हैं। इनको हटा पाना रेलवे के लिए असान नहीं है। जबकि रेलवे के सौंदर्यीकरण काम इस अवैध कब्जे के कारण रूका हुआ है। यहां अवैध रूप से दुकान और होटल बनाने वालों को रेलवे ने जमीन खाली करने के लिए कई बार नोटिस दी है,लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ है। अगर रेलवे आरपीएफ के बल पर जमीन खाली कराना चाहती है तो लोग विरोध में खड़े हो जाते हैं। यहां तक कि कई लोगों ने अदालत में मुकदमा तक दायार कर दिया है। यह हाल सिर्फ सिलीगुड़ी जंक्शन का नहीं है। गेट बाजार से लेकर महावीर स्थान,दार्जिलिंग मोड़,बागराकोट आदि इलाके में रेलवे की जमीन पर कई बाजार बन गए हैं। कैसे शुरू होता है रेलवे की जमीन पर कब्जे का खेल

रेलवे की जमीन पर आने वाले लोग पहले प्लास्टिक लगाकर रहना शुरू करते हैं। पूछताछ करने पर एक-दो दिनों में चले जाने की बात करते हैं। उन्हें असहाय समझकर जबरदस्ती हटाया नहीं जाता है। उसके बाद ये लोग रेलवे की जमीन धीरे-धीरे अतिक्रमण कर झोपड़ी डाल लेते हैं। उसके बाद इनको हटा पाना काफी मुश्किल है। उसके बाद इनको स्थानीय नेताओं और राजनीतिक दलों का समर्थन भी प्राप्त हो जाता है।


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