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देशभक्ति पर पर भारी पड़ा चीनी व्यापार, टूनी बल्ब व दीयों से पटा बाजार

दीपेंद्र सिंह सिलीगुड़ी देशभक्ति पर चीनी व्यापार भारी पड़ता दिख रहा है। चीन के खिलाफ द

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Oct 2021 07:52 PM (IST)Updated: Sun, 24 Oct 2021 07:52 PM (IST)
देशभक्ति पर पर भारी पड़ा चीनी व्यापार, टूनी बल्ब व दीयों से पटा बाजार
देशभक्ति पर पर भारी पड़ा चीनी व्यापार, टूनी बल्ब व दीयों से पटा बाजार

दीपेंद्र सिंह

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, सिलीगुड़ी : देशभक्ति पर चीनी व्यापार भारी पड़ता दिख रहा है। चीन के खिलाफ देश के भीतर चाहें जितने भी नारे लगे, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत में खिलौने, टूनी लाइट, पटाखों तथा फर्नीचर व्यसाय के क्षेत्र में हम चीन पर निर्भर हैं। सामने दीपावली का त्योहार है और सिलीगुड़ी के हांगकांग मार्केट, सेठ श्री लाल मार्केट पूरी तरह से चाइनीज लाइट से जगमगा उठा है। यहां एक से बढ़कर एक खुबसूरत डिजिटल दीए, मोमबत्ती, झालर व रंग-बिरंगे सजावट के सामान मौजूद हैं। इन्हें खरीदने के लिए बड़ी संख्या में खरीददार पहुंच रहे हैं तथा खरीददारी भी कर रहे हैं। लोगों को यहां से स्टाइलिश लाइट कम से कम कीमत पर मिल जा रहे हैं। जब इस बारे में हमने हांगकांग व विधान मार्केट तथा सेठ श्रीलाल मार्केट के व्यवसायी व व्यवसायी समिति के पदाधिकारियों से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि पिछले साल की तुलना में इस बार ब्रिकी अच्छी हो रही है। हालांकि पिछली बार से लाइटस के दाम 20 प्रतिशत महंगे हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद ब्रिकी में तेजी दिख रही है। उनका यह भी कहना था कि चाइनीज सामान के साथ हम भारतीय सामग्री भी रख रहे हैं। हमारी कोशिश है कि लोग अपनी पसंद के अनुसार ही खरीददारी करें। समिति के प्रवक्ता विजय दास ने बताया कि कोरोना के कारण पिछले साल बाजार काफी खराब था, लेकिन इस बार बाजार सुधरा है। पिछले साल की तुलना में मूल्य में 20 प्रतिशत का इजाफा हुआ है, लेकिन लोग फिर भी शौक से बाजारों का रूख कर रहे हैं। हमारी कोशिश है कि भारतीय उत्पाद ही ज्यादा उपलब्ध हो। बताते चले कि सिलीगुड़ी समय के साथ चीनी सामग्री का हब बन चुका है। चीनी सामानों की खासियत यह है कि कम से कम कीमतों पर यह मिल जाती है, जबकि वहीं सामान मेड इन इंडिया होने से उसके मूल्य तीन गुने अधिक हो जाते हैं। आधुनिक तकनीकी भी चाइनीज सामग्री का एक बड़ा पहलू है। सिलीगुड़ी में हरेक सीजन में अरबों के सामान का आयात यहां किया जा जाता है। इतना ही नहीं नेपाल के रास्ते भी यहां काफी मात्रा में चीनी माल आता है।

ज्ञात हो कि लद्दाख व अरूणांचल में सीमा पर जारी तनाव के बाजवूद वर्ष 2021 की जनवरी से जून तक पहली छमाही में भारत-चीन व्यापार में 62.7 फीसदी की जबरदस्त बढ़त हुई है और यह 57.4 अरब डॉलर (करीब 4.28 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंच गया है। यह कोविड के पहले के दौर में वर्ष 2020 की पहली छमाही में हुए 44.72 अरब डॉलर के व्यापार से भी ज्यादा है।

यह अब तक का अपने आप में एक रिकॉर्ड है और चीन के बड़े व्यापारिक साझेदार देशों में सबसे ज्यादा बढ़त है। गौर करने की बात यह है कि इस व्यापार में करीब 42.6 अरब डॉलर का आयात चीन से भारत में हुआ है, दूसरी तरफ भारत से चीन को निर्यात सिर्फ 14.7 अरब डॉलर का हुआ है। बदलाव की गुंजाइश कम: साल 2014-15 से 2019-20 के बीच के व्यापार के आकड़े यह दिखाते हैं कि भारत कम मूल्य के कच्चे माल का निर्यात करता है, जबकि हाई वैल्यू वाले मैन्युफैक्चरिंग गुड्स का आयात करता है। दोनों देशों के बीच व्यापार में गहरी असमानता है। साल 2019-20 के बीच भारत का चीन को औसत सालाना निर्यात करीब 13 अरब डॉलर का रहा है। इसी तरह इस बीच भारत का चीन से औसत आयात 66 अरब डॉलर का रहा। भारत से चीन को मछलिया, मसाले जैसे खाद्य वस्तुओं से लेकर लौह अयस्क, ग्रेनाइट स्टोन और पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात होता है, दूसरी तरफ चीन से भारत को आयात इलेक्ट्रिक, मशीनरी, इक्विपमेंट और अन्य मेकैनिकल अप्लायंसेज का होता है। इसमें निकट भविष्य में बदलाव की गुंजाइश भी कम दिख रही है। प्रधानमंत्री विदेशी खिलौनों पर निर्भरता को कम करने को कह चुके हैं:

बच्चों के लिए खिलौना बाजार को बढ़ावा देने और विदेशी खिलौनों पर निर्भरता कम करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी मन की बात में देश को खिलौना हब बनाने की बात कह चुके हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में जो खिलौने बिकते हैं, उसमें 65-75 फीसदी हिस्सेदारी अकेले चीन की होती है।

आईबीआईएस वर्ल्ड की रिपोर्ट की माने तो दुनिया के 70 फीसदी खिलौने चीन के बने होते हैं, इसलिए चीन का भारत ही नहीं बल्कि दुनिया पर दबदबा है। हालाकि भारत की हिस्सेदारी 0.5 है, जो कि बहुत कम है। चीन का वर्चस्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि उसने खिलौना निर्माण को बढ़ावा देने के लिए अलग नीति बनाई है।

इस नीति के तहत चीन में 14 प्लग इन टॉय सेंटर बनाए गए हैं। इन केंद्रों पर जाकर कोई भी व्यापारी अपना व्यापार शुरू कर सकता है। हालाकि केंद्र सरकार की ओर से पिछले कुछ सालों में ऐसे कदम उठाए गए हैं, जो खिलौना बनाने वाली कंपनियों के लिए बाधा का काम करते हैं।

सरकार ने लकड़ी के खिलौने पर जीएसटी 5.5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी और बैटरी या लाइट से चलने वाले खिलौने पर जीएसटी 18 फीसदी कर दिया है। हालाकि खिलौना बाजार को लेकर एक खुशखबरी यह है कि मुकेश अंबानी ने साल 2019 में ब्रिटेन की खिलौना कंपनी हैमलेज को खरीद लिया है, इस कंपनी 18 देशों में 167 स्टोर हैं।

भारत में चीन खिलौने के बाजार की बात करें तो भारतीय बाजार के 100 फीसदी में से 25 फीसदी खिलौने स्वदेशी हैं लेकिन 75 फीसदी विदेशी हैं, जिसमें अकेले 70 फीसदी खिलौनो का माल चीन से आता है। भारत थाइलैंड, जर्मनी और कोरिया से भी माल लेता है।


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