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रफ्तार का जुनून, सड़क पर लगातार पसर रहा खून

जागरण विशेष .. - भोर या रात नौ बजे से बाद होती है ज्यादातर दुर्घटनाएं -तेज रफ्तार वाहन

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Feb 2020 07:46 PM (IST)Updated: Sun, 23 Feb 2020 07:46 PM (IST)
रफ्तार का जुनून, सड़क पर लगातार पसर रहा खून
रफ्तार का जुनून, सड़क पर लगातार पसर रहा खून

जागरण विशेष ..

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- भोर या रात नौ बजे से बाद होती है ज्यादातर दुर्घटनाएं

-तेज रफ्तार, वाहनों की फिटनेस देते समय लापरवाही

-नशे की लत और डाइविंग लाइसेंस के बिना वाहन को चलाना बनता है कारण

अशोक झा, सिलीगुड़ी : एक हादसा पूरे परिवार को उजाड़ देता है। कामकाजी व्यक्ति की मौत पूरे परिवार को चौराहे पर लाकर खड़ा कर देती है। ऐसे तमाम मामले सामने हैं, लेकिन फिर भी लोग सुधरने को तैयार नहीं हैं। इसका ज्वलंत उदाहरण उत्तर बंगाल में देखने को मिलता है। यह बात भी सच है कि बीमारियों और रंजिश से ज्यादा क्षति सड़क हादसे पहुंचा रहे हैं। यूं कहे की रफ्तार की जुनून में सेव ड्राइव सेव लाइफ के नारों के बीच सड़कों पर लगातार खून पसर रहा है। देश में सड़क दुर्घटनाओं की वार्षिक संख्या औसतन पांच लाख है और मौतें डेढ़ लाख के आसपास हैं। उसी प्रकार पूर्वोत्तर के इस प्रवेशद्वार में भी संख्या कुछ कम नहीं है। अंतरराष्ट्रीय व अंतरराज्यीय सीमाओं से घिरे होने के कारण यहां दूसरे देश व राज्यों से आने वाले वाहनों पर नियंत्रण करना यातायात प्रशासन के लिए दूर की कौरी साबित हो रही है। दुर्घटनाओं का एक सबसे बड़ा कारण सिक्किम के लाइफ लाइन पर आए दिन भूस्खलन और एनएच 10 पर वाहनों का तेज रफ्तार से दौड़ना। दुर्घटनाओं को अव्यवस्था और रफ्तार के जुनून में लोग अपनी जान गवांते है। हर दूसरे दिन किसी न किसी की सड़क हादसे में मौत होती है। सबसे च्यादा ट्रक और दो पहिया वाहनों के पहियों से लोग काल के गाल में समाते हैं। पिछले तीन साल में 434 लोगों की सड़क हादसे में मौत हो चुकी है। जबकि चार हजार लोग घायल हो चुके हैं। यह घायल लंबे इलाज के बाद पहले की तरह अपने परिवार को संभालने के लिए खुद को सौ प्रतिशत सिद्ध नहीं कर पा रहे हैं। परिवहन विभाग को पुरानी गाड़ियों की फिटनेस जांच करनी है, लेकिन इसके नाम पर महज खानापूर्ति होकर रह जाती है। जर्जर वाहनों को फिटनेस सर्टिफिकेट मुहैया करा दिये जाते हैं। वही भीड़-भाड़ व अत्यधिक दबाव वाले सड़कों पर भी यातायात व्यवस्था का पालन नहीं किया जाता है। और तो और सड़कों पर दौड़ते अधिकाश यात्री वाहन भी मानक पर पूरी तरह से खरे नहीं उतरते हैं। जर्जर वाहनों के कारण आये दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। इसमें सबसे ज्यादा पत्थर बालू ढ़ोने वाले वाहन शामिल है। अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से चारों ओर से जुड़े राष्ट्रीय उच्च पथ पर भी ट्रैफिक सिग्नल की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होना भी सड़क हादसों का कारण बन रहा है।

हर जगह होती है यातायात नियमों की अनदेखी

यातायात नियमों की अनदेखी आम बात बनती जा रही है। सड़कों पर नौसिखियों द्वारा धड़ल्ले से तेज रफ्तार से वाहन दौड़ाये जाते हैं। विभाग द्वारा जहा वाहनों की फिटनेस जाच के नाम पर खानापूर्ति कर प्रमाण पत्र उपलब्ध कराया जाता है, वहीं ड्राइविग लाइसेंस जारी करने में भी जरूरी अहर्ता की अनदेखी होती है। चालक लाइसेंस निर्गत करने में भी बिना जाच के ही प्रमाण पत्र उपलब्ध कराये जा रहे हैं। धुंध व तीखे मोड़ भी हादसे का सबब बनते हैं। वहीं सड़कों पर ट्रैक्टर, ट्राली व जुगाड़ वाहन भी धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं। जबकि लगातार ओवलोडेड वाहनों के कारण दुर्घटनाएं घटित हो रही है। इसको लेकर आए दिन लोगों का आक्रोश फूटता है। ओवरलोडेड वाहनों के परिचालन पर रोक लगाने में प्रशासन सफल नहीं हो पा रहा है।

नहीं है सिग्नल व यातायात पुलिस की व्यवस्था

सड़कों पर ट्रैफिक व्यवस्था दुरूस्त न रहना भी हादसों का कारण बन रहा है। शहरी क्षेत्र में तो सिग्नल की व्यवस्था है भी परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में यह व्यवस्था नहीं हो पाई है। चौराहों पर ट्रैफिक पुलिस को खड़ा कर खानापूर्ति जरूर की जाती है। बावजूद इसके सड़कों पर जाम और छोटी मोटी दुर्घटनाएं आये दिन घटित होती है। एनएच 55, 31ए और 10 पर वाहनों की नियमित जाच न होना, सिग्नल का न होना, वाहनों की तेज रफ्तार पर अंकुश न लगना, नौसिखिये के हाथ वाहनों की कमान दिया जाना हादसे का सबब बन रही है। कई ऐसे भी हादसे होते हैं जिसमें मृतक पर कई सदस्यों वाले परिवार की जिम्मेदारी रहती है। उसकी मौत के बाद छोटे बच्चे और महिलाएं सड़क पर आ जाती हैं। दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना मुश्किल हो जाता है। किसी आतंकवादी घटना या महामारी को लेकर शासन व प्रशासन द्वारा युद्ध स्तर पर प्रयास शुरू हो जाते हैं। जबकि इन त्रासदियों के आकड़ों से कहीं अधिक लोगों की मौत सड़क दुर्घटना में होने के बावजूद पूरा अमला चुप है। यदि गौर करें तो सबसे ज्यादा सड़क हादसे सर्द मौसम और कोहरे में होते हैं। लेकिन कोहरे में वाहन कैसे चलाएं, क्या आवश्यकताएं होती हैं इस पर भी जिम्मेदार विभाग कोई कदम नहीं उठाता है। जिले में सबसे ज्यादा ओवरलोड ट्रक और बाइक से दुर्घटनाएं होती हैं। दुर्घटना प्वाइंट चिन्हित होने के बावजूद तेज रफ्तार से चलना, आबादी वाले स्थानों पर गति धीमी न करना प्रमुख है। वहीं बिना लाइसेंस चलने वाले बाइक चालकों के कारण हादसे हो रहे हैं। उनको यातायात नियमों की जानकारी न होना भी हादसे की वजह बनती है।

यातायात पुलिस और पुलिस कमिश्नरेट ने संयुक्त रुप से सर्वाधिक हादसों वाले 18 ब्लैक स्पॉट चिन्हित किए थे। वहा किन कारणों से दुर्घटना होती हैं, उसे भी इंगित किया। ये स्थान इस प्रकार हैं लापरवाही से गाड़ी चलाने से अधिकाश हादसे। ऐसे चिन्हित स्थानों में आठ माइल, दार्जिलिंग मोड़, डागापुर सुकना के मध्य, विश्वविद्यालय के निकट, नौकाघाट, चंपासारी, मिलनमोड़, महानंदा ब्रिज के निकट, फांसीदेवा, सेवक का हाथीसूर,आसीघर, एनजेपी वाइपास, आमबाड़ी मोड़, चांदमुनी मंदिर के निकट, पालपाड़ा, मेडिकल कॉलेज बीएसएफ मोड़ आदि प्रमुख है। इन सभी जगहों पर वाहनों की तेज गति, लापरवाही से वाहन चलाना, नशा में गाड़ी चलाना, रांग साइड से वाहनों को ले जाना,वाहनों को ओवरटेक करने के दौरान दुर्घटनाएं होती है। मृतकों में 15 से 34 साल की उम्र की संख्या सर्वाधिक होती है।

यह दुर्घटनाएं सबसे ज्यादा हादसे भोर या फिर शाम आठ बजे के बाद होता है। समय हादसे (प्रतिशत में) सुबह 6 से 9 10.9,सुबह 9 से 12- 6.0,दोपहर 12 से 3 5.6

दोपहर 3 से 6 2.3,शाम 6 से 9- 8.0,रात 9 से 12 10.7,रात 12 से मध्य रात्रि 3- 12.0 मध्य रात्रि 3 से सुबह 6 -8.5 होती है।


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