नक्सलियों ने कोरोना नियमों का पालन कर मनाया नक्सलबाड़ी दिवस, पुष्प पार्टी कार्यालय में किया झंडोत्तोलन
नक्सल आंदोलन की पहली सशस्त्र क्रांति 54 वां स्थापना दिवस नक्शलवाड़ी समिति विभिन्न क्षेत्रों में नक्सलियों की पार्टी कार्यालय में झंडोत्तोलन कर मनाया गया। मौके पर सेंट्रल कमेटी के नेता अभिजीत मजूमदार पवित्र सिंह सुमन तिग्गा विभास विश्वकर्मा राजकुमार इक्का समेत अन्य लोग मौजूद थे।
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी: नक्सल आंदोलन की पहली सशस्त्र क्रांति 54 वां स्थापना दिवस नक्शलवाड़ी समिति विभिन्न क्षेत्रों में नक्सलियों की पार्टी कार्यालय में झंडोत्तोलन कर मनाया गया। मौके पर सेंट्रल कमेटी के नेता अभिजीत मजूमदार, पवित्र सिंह, सुमन तिग्गा, विभास विश्वकर्मा, राजकुमार इक्का समेत अन्य लोग मौजूद थे। कोविड-19 महामारी के नियमों का पालन कर ऐतिहासिक दिवस को नक्सलियों ने याद किया। 24 और 25 मई 1967 नक्सलियों का यह पहला सशस्त्र आंदोलन नक्सलबाड़ी से प्रारंभ हुआ था।
क्यों शुरू हुआ पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच संघर्ष
पुलिस आंदोलनकारियों के बीच के संघर्ष जानने के लिए एक माह पहले अप्रैल 1967 को जानना जरूरी है। नक्सलबाड़ी क्षेत्र में बुद्धिमान तिर्की और ईश्वर तिर्की जो पिता पुत्र थे बड़े जमींदार माने जाते थे। भिगुल किसान के पास जमीन नहीं थी। वो ईश्वर तिर्की की जमीन जोतता था।बहुत ही कम फायदे में। एक दिन उसने अपने फायदा बढ़ाने की बात की। ईश्वर ने उसको जमीन से बेदखल कर दिया। भिगुल ने ‘कृषक सभा’ में शिकायत की। कानू सान्याल इस संगठन के नेता थे। उन्होंने तिर्की को किसानों के साथ घेरा। तिर्की जो एयरफोर्स में इंजिनियर रह चुका था। वहां से बच निकला। अब बंगाल कांग्रेस का सदस्य था। बाद में वो कांग्रेस की सरकार में बंगाल में मंत्री भी बना।उसने अपनी ताकत का इस्तेमाल किया। दिल्ली से सीआरपीएफ की बटालियन भेजी गई। तिर्की तो बच गया लेकिन जमींदार नगेन रॉय चौधरी बदकिस्मत निकले।उनके लिए पुलिस नहीं आ पाई।कानू सान्याल के आर्डर पर नगेन का सर कलम कर दिया गया। सर कलम करनेवाले कोई और नहीं बल्कि 6 फीट 5 इंच का नक्सली नेता जंगल संथाल था। जंगल संथाल नेपाल में राजशाही शिक्षा मंत्री के खिलाफ भी आंदोलन में हिस्सा ले चुके थे। जंगल संथाल नक्सलवादियों के ‘सिर कलम’ स्पेशलिस्ट बने। जो अभी जो आज नक्सलियों के लिए इस प्रकार किस काम के लिए आदर्श माने जाते हैं। घटना के बाद तत्कालीन गृह मंत्री ज्योति बसु किसानों को टेररिस्ट का टैग देते हुए पुलिस को आवश्यक कार्रवाई का निर्देश दिया और उसके बाद ही पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच संघर्ष छिड़ गया।
आंदोलन के पीछे चीन की थी अहम भूमिका
नक्सलबाड़ी आंदोलन के पहले बंदूक के बल पर ही सत्ता हासिल की जा सकती है।माओ की इस प्रेरणा से प्रभावित हुए कानू ने खोखन मजूमदार, खुदन मलिक और नक्सल विचारक चारु मजूमदार के करीबी दीपक विश्वास के साथ चीन की यात्रा चोरी छुपे गैर कानूनी ढंग से चीन पहुंचे थे।माओ से ही प्रभावित होकर चारु और कानू ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी लेनिनवादी 1969 में बनाई थी, जो भारत में कम्युनिस्ट विचार की तीसरी पार्टी थी। इस बात की पुष्टि नक्सल आंदोलन के जनक चारू मजूमदार के पुत्र अभिजीत मजूमदार भी करते हैं। उन्होंने कहा कि यह पार्टी का पहला डेलिगेशन था जो चीन गया था।कानू सन्यास अपने कामरेड साथियों के साथ पहले पानीटंकी होते हुए ठमांडू पहुंचे थे। वहां उन्होंने चीनी दूतावास से संपर्क किया । दूतावास ने इन लोगों के मकसद को समझने के बाद चीनी भाषा बोल पाने वाले एक दुभाषिये गाइड का इंतज़ाम करवाया था। नेपाल से पहले इन्हें तिब्बत ले जाया गया।पहाड़ी रास्तों को पैदल पार करते हुए चीनी सीमा में कानू सन्यास और टीम ने प्रवेश किया था, जहां से उन्हें चीनी सेना की वैनों के माध्यम से सेना के कैंपों तक ले जाया गया।यहां पहुंचने के बाद कानू सन्यास और उनके साथियों को मशीनगन, राइफल, ग्रेनेड, माइन्स बिछाने और विस्फोटक बनाने आदि की ट्रेनिंग दी गई। उसके बाद वे तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एन लाइ आर्मी कमांडर इन चीफ से भी मिलवाया था।
आंदोलन के जनक नेताओं का हुआ दु:खद अंत
नक्सल आंदोलन के जन्मदाता माने जाने वाले चारू मजूमदार की मौत 28 जुलाई 1972 को पुलिस हिरासत में हो गई। करण का अब तक कोई पता नहीं चल पाया है। उसी प्रकार 1988 में ज्यादा शराब पीने के कारण जंगल संथाल की मौत हो गई। नक्सलवादी आंदोलन के कारण वे जेल से 1979 में जेल से रिहा हुए थे। सबसे मजबूत नेता कानू सान्याल हाथीघिसा के घर में 23 मार्च 2010 को फंदे पर लटककर अपनी जान दे दी।