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बंगाल में राजनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक की तैयारी में मुकुल रॉय

इन दिनों देश के अंदर और बाहर सर्जिकल स्ट्राइक व एयर स्ट्राइक की तर्ज पर राजनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक की तैयारी में मुकुल रॉय ने शुरू कर दी है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 27 Mar 2019 10:13 PM (IST)Updated: Fri, 29 Mar 2019 06:32 AM (IST)
बंगाल में राजनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक की तैयारी में मुकुल रॉय

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : इन दिनों देश के अंदर और बाहर सर्जिकल स्ट्राइक व एयर स्ट्राइक की चर्चा जोरों पर है। इससे अछूता पश्चिम बंगाल भी नहीं है। यहां की मुख्यमंत्री ने सबसे पहले एयर स्ट्राइक पर सवाल उठाते हुए सबूत की मांग की। इसका जबाव देने की जिम्मेदारी पूर्व केंद्रीय मंत्री सह भाजपा के बंगाल चुनाव प्रभारी मुकुल रॉय को सौंपी गयी है। मुकुल रॉय को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगाल में मिशन-23 को कामयाब करने की जिम्मेदारी स्वीकार किया है। मुकुल रॉय ने इसे स्वीकार करते हुए बंगाल में राजनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक करने की तैयारी शुरु कर दी है। इसी के तहत ममता के करीबी अर्जुन सिंह और भारती घोष समेत अन्य सांसदों को भाजपा का झंडा थमाया। प्रधानमंत्री के तीन अप्रैल को सिलीगुड़ी में जनसभा को पूर्ण सफल बनाने और उत्तर बंगाल में सभी सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को विजय बनाने के लिए मंगलवार को उत्तर बंगाल का दौरा करते हुए कोलकाता लौट गये। मुकुल रॉय की माने तो वे बंगाल में 23 सीटों पर भाजपा की जीत के प्रति पूरी तरह से तैयार है। उनका कहना है कि 2019 लोकसभा चुनाव में बंगाल का रिजल्ट सबको आश्चर्य चकित करने वाला होगा। जिन सीटों पर उनकी नजर है उसमें उत्तर बंगाल के कूचबिहार, अलीपुरद्वार, दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, रायगंज, बालुरघाट, मालदा, दक्षिण बंगाल के जंगलमहल, आसनसोल, दुर्गापूर, श्रीरामपुर, हुगली, कोलकाता, नदिया,उत्तर 24 परगना, बैरकपुर, कोलकाता दक्षिण, मेदनीपुर, घाटाल,जयनगर समेत कई और लोकसभा क्षेत्र है। मिशन-23 में मुकुल रॉय को कोई उन्हें बंगाल का विभिषण तो कोई भाजपा का हनुमान मान रहे है। देखना है कि वे इस मिशन को किस जोड़ गणित से पूरा करते है।

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तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्य रहे थे मुकुल रॉय

मुकुल रॉय को पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के मजबूत सिपहसलारों में सबसे मजबूत सेनानायक माना जाता था। मुकुल रॉय ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत यूथ कांग्रेस के नेता के रूप में की थी।

दिलचस्प बात ये थी कि ममता बनर्जी भी समय यूथ कांग्रेस से जुड़ी हुई थी। दोनों शुरूआती दिनों से ही संघर्षो में साथ साथ रहे। 1998 में जब ममता बनर्जी ने कांग्रेस का दामन छोड़कर खुद की पार्टी तृणमूल कांग्रेस बना ली तो मुकुल रॉय को अहम जिम्मेदारी सौंपी। 2006 में वह ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के महासचिव बने। 2001 में पश्चिम बंगाल विधानसभा में वह जगतादल विधानसभा से चुनाव लड़कर हार गये। अप्रैल 2006 में मुकुल रॉय टीएमसी की ओर से राज्यसभा पहुंचे। संसद के उपरी सदन में वह 28 मई 2009 से 20 मार्च 2012 तक टीएमसी नेता रहे। यूपीए दो के शासनकाल में पहली बार जहाज रानी मंत्री बने। जुलाई 2011 मे दिनेश त्रिवेदी रेल मंत्री थे तो रेल बजट में उन्होंने किराया बढ़ा दिया। ममता बनर्जी इससे नाराज होकर त्यागपत्र दिलवाया और मुकुल रॉय को रेल को मार्च 2012 में रेलमंत्री बनाया। ममता बनर्जी और कांग्रेस के बीच शुरू हुई तकरार में मुकुल रॉय का बतौर रेलमंत्री कैरियर खत्म हो गया। 21 दिसंबर को वे रेलमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद भी वे टीएसमी से जुड़े रहे। 20 सालों तक साथ साथ चलने के बाद शारदा और नारदा स्टिंग में मुकुल राय का नाम आने के बाद ममता के साथ उनकी दूरी बढ़ती चली गयी। 30 जनवरी 15 को सीबीआई ने घंटों मुकुल रॉय से पूछताछ की। फरवरी 2015 में ममता ने उन्हें महासचिव पद से हटा दिया। 13 माह तक दोनों के बीच एक शब्द भी बातचीत नहीं हुई। 2017 में मुकुल रॉय का आधिकारिक अलगाव 2017 में हुआ। पार्टी ने उन्हें छह साल के लिए निलंबित किया। 25 सितंबर 17 को उन्होंने टीएमसी से त्यागपत्र दिया। तीन नवंबर 2017 को उन्होंने भाजपा में योगदान दिया। भाजपा को बंगाल में एक ऐसा हनुमान चाहिए था जो ममता की राजनीतिक लंका को जलाकर खाक कर दे? उसमें मुकुल रॉय अबतक फीट नजर आ रहे है। मुकुल के विरोधी आज भी यह कहने से नहीं चूक रहे है कि भाजपा के पास ऐसा कोई रबर नहीं है जो मुकुल रॉय के उस अतीत को मिटा दे जो चिटफंड घोटाले का कलंक उनके नाम के साथ जुड़ चुका है। कंचनपारा में 1954 के 17 अप्रैल को जन्में मुकुल रॉय पर भारतीय राजनीतिज्ञों की उनके राजनीतिक स्ट्राइक पर टिकी हुई है।


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