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गजब की कहानी है मनीष अग्रवाल की, सपनों की नगरी बनाने निकले हैं

मनीष कुमार अग्रवाल आज के दिन ना केवल सिलीगुड़ी बल्कि पूरे उत्तर बंगाल एवं सिक्किम के जाने-माने बिल्डर हैं। उन्होंने मनोकामना बिल्डर की शुरुआत की है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 25 Jul 2019 10:32 AM (IST)Updated: Thu, 25 Jul 2019 10:32 AM (IST)
गजब की कहानी है मनीष अग्रवाल की, सपनों की नगरी बनाने निकले हैं

सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। सिलीगुड़ी में एक युवक ऐसा भी है जिसने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद तीन-चार साल तक कुछ सोचा ही नहीं कि आगे करना क्या है। लेकिन यह जरूर सोच लिया था कि सिलीगुड़ी शहर छोड़कर नहीं जाना है। इस शहर से प्यार है और इस शहर जैसा कोई दूसरा शहर नहीं है। इसलिए जो भी करना है इसी शहर में करना है। इसी बात को ध्यान में रखकर रियल एस्टेट कारोबार शुरू किया और अपने प्यारे शहर में सपनों की नगरी बनाने निकल पड़े।

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हम यहां बात कर रहे हैं सिलीगुड़ी के रहने वाले और इस शहर को सबसे ज्यादा प्यार करने वाले मनीष कुमार अग्रवाल की। मनीष कुमार अग्रवाल आज के दिन ना केवल सिलीगुड़ी बल्कि पूरे उत्तर बंगाल एवं सिक्किम के जाने-माने बिल्डर हैं। उन्होंने मनोकामना बिल्डर की शुरुआत की है। आज के दिन करीब 12 लाख स्क्वायर फीट के प्रोजेक्ट पर वह काम कर रहे हैं।

मनीष कुमार अग्रवाल की कहानी गजब की है। 21 जुलाई 1985 को उनका जन्म सिलीगुड़ी में हुआ। तीसरी कक्षा तक उन्होंने सिलीगुड़ी में पढ़ाई की। उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चले गए। उच्च शिक्षा उन्होंने दिल्ली में ही हॉस्टल में रहकर पूरी की। उनका परिवार शुरू से ही सुखी संपन्न है। उन्हें कभी भी पैसे की कोई कमी नहीं रही। उनके पिता दुर्गा अग्रवाल का सिलीगुड़ी में चावल की गद्दी का जमा जमाया बिजनेस था। ओम प्रकाश- रमेश कुमार नाम से उनके फर्म की चावल कारोबार में शुरू से ही तूती बोलती थी।

बेंगलुरु में की बीबीएम की पढ़ाई:

मनीष कुमार अग्रवाल दिल्ली में पढ़ाई करने के बाद बीबीएम करने बेंगलुरु चले गए। वहां उनकी पढ़ाई भी पुरू हो गई। तब तक उन्होंने यह नहीं सोचा था कि आखिर करना क्या है। वह पढ़ाई पूरी कर सिलीगुड़ी आ गए। उन्होंने भविष्य की कोई योजना नहीं बनाई। वह अपने पिता तथा चाचा के फ्लावर मिल कारोबार सें जुड़ गए। इसमें उनका कुछ मन नहीं लग रहा था। इस कारोबार पर उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। वर्ष 2010 में उनकी शादी तनु अग्रवाल से हुई। उनकी एक बेटी भी है। जब तक उनकी शादी नहीं हुई थी तब तक वह मौज में थे। जब शादी हुई, बेटी हुई तो उन्हें लगा कि अब जिम्मेदारी बढ़ गई है और कुछ करना चाहिए। अब वह अपना कारोबार शुरू करने का मन बनाने लगे।

कैसे दिया मनोकामना नाम:

बुधवार को शख्सियत कार्यक्रम में शामिल होन वह दैनिक जागरण कार्यालय आए। यहीं उनसे विशेष बातचीत हुई। उन्होंने कहा कि वर्ष 2015-16 में उन्हें लगा कि कुछ अलग करना चाहिए। उन्होंने रियल इस्टेट कारोबार शुरू करने का मन बनाया। क्योंकि चंपासारी इलाके में उनकी परिवारिक जमीन काफी थी। नाना जी हरिकिशन अग्रवाल तथा पिताजी की सहायता से उन्होंने रियल एस्टेट कारोबार शुरू करने का मन बनाया। वर्तमान में उनकी 3 परियोजनाएं सिलीगुड़ी में चल रही है।

उन्होंने मनोकामना बिल्डर नाम से एक कंपनी बनाई। मनोकामना नाम से उनका खास लगाव भी है। क्योंकि उनके पिता ने मनोकामना नाम से ही कई फ्लावर मिलों की स्थापना की है। इसलिए उन्होंने मनोकामना के नाम को ही आगे बढ़ाना उचित समझा। लेकिन उनकी सोच पिताजी से थोड़ी अलग हट कर थी। उनके पिताजी मनोकामना को ब्रांड नहीं बना सके थे। जबकि वह मनोकामना को एक ब्रांड बनाना चाहते थे। बिजनेस में ब्रांड बनाना ज्यादा महत्वपूर्ण है। आज करीब 4 साल बाद रियल एस्टेट के क्षेत्र में मनोकामना एक बड़े ब्रांड का रूप धारण कर चुका है।

कभी नौकरी करने की नहीं सोची :

मनीष कुमार अग्रवाल ने कहा कि पढ़ाई के दौरान उन्होंने कभी भी नौकरी के बारे में नहीं सोची। दरअसल पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी करना उनका लक्ष्य नहीं था। वह एक मारवाड़ी परिवार से हैं। इसलिए शुरू से ही वह बिजनेस करेंगे, यह जानते थे। लेकिन वह ज्यादा गंभीर नहीं थे।

शहर में ढांचागत सुविधाओं का हो विकास

सिलीगुड़ी शहर के संबंध में उन्होंने कहा कि इस शहर में ढांचागत सुविधाओं के विकास की जरूरत है। ऐसे यहां तमाम तरह की अत्याधुनिक सुविधाएं हैं। अच्छे स्कूल से लेकर बढ़िया हॉस्पिटल और मॉल तक है। लेकिन फ्लाईओवर, पब्लिक ट्रांसपोर्ट आदि जैसी ढांचागत सुविधाओं की कमी है। यह समस्या सिर्फ सिलीगुड़ी ही नहीं बल्कि पूरे पश्चिम बंगाल की है।

आसान नहीं है बिल्डर बनना

मनीष अग्रवाल ने आगे बताया कि बिल्डर का कारोबार इतना आसान नहीं है। लोग इसे शो बिजनेस समझते हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि यह काम काफी कठिन है। हर कोई आसानी से इसमें हाथ नहीं डाल सकता। पहले प्लानिंग करनी पड़ती है, नक्शा पास कराना पड़ता है और सबसे बड़ी बात है कि एक ब्रांड इमेज बनानी पड़ती है। एक-एक इंच पर पैसा खर्च होता है। लोगों के मन में बिल्डरों के प्रति कई शंकाएं होती है। घर खरीदने वालों दिल में जगह बनाना सबसे बड़ी जरूरत है। अपने भविष्य की योजना के संबंध में मनीष अग्रवाल ने बताया कि अभी उनका पूरा ध्यान रियल एस्टेट कारोबार में है। भविष्य में दूसरे सेक्टर में भी जा सकते हैं।

शादी के बाद बदली जिंदगी

मनीष कुमार अग्रवाल ने आगे कहा कि शादी हुई तो जिम्मेदारी बढ़ गई। शादी से पहले उनकी हर जरूरतों के लिए पिताजी पैसे उपलब्ध कराते थे। शादी के बाद उनसे पैसे मांगने में हिचक होने लगी। फिर लगा कि अपना कारोबार करना चाहिए। उन्होंने इसकी शुरुआत मोबाइल फोन के डिस्ट्रीब्यूशन से की। कई कंपनियों के मोबाइल फोन की डिस्ट्रीब्यूशन शुरू की। उनका काम चल भी निकला। लेकिन वह कुछ बड़ा करना चाहते थे। मोबाइल फोन के कारोबार से वह पैसे तो कमा लेते थे लेकिन उन्हें इससे भी ज्यादा पैसा कमाना था। इसलिए 3 साल बाद उन्होंने मोबाइल का काम बंद कर दिया और रियल एस्टेट सेक्टर में आ गए। आज के दिन वह 12 लाख स्क्वायर फीट क्षेत्र को डेवलप कर चुके हैं। उनकी तीसरी और सपनों की परियोजना सेवक रोड में शुरू होगी। यह हाई एंड प्रोजेक्ट है। यहां घर के साथ रहने के लिए तमाम अत्याधुनिक सुविधाएं मिलेंगी। एक फ्लैट की कीमत लगभग दो करोड़ रूपये होगी। 


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